कविता : जाता हुआ दिसंबर
कविता : जाता हुआ दिसंबर, आओ समेट लो खुशियां तुम, मना लो त्यौहार मैं जा रहा हूं!, आने वाले कल में,याद बनकर, मैं एक अच्छी याद चाहता हूं। मैं सबकी दुआएं चाहता हूं, मैं सबसे मिलना चाहता हूं, सबके लिए एक अच्छी खबर चाहता हूं, ग्वालियर, मध्य प्रदेश से आशी प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका) की कलम से…
जाता हुआ ये दिसंबर
देखो कुछ कह रहा है,
बीते साल की स्मृतियों को ,
खुशियों संग विदा किया हैं।।
आने वाले समय के भव्य ,
स्वागत के लिए तत्पर खड़ा
मुख मंडल पर मुस्कान लिए,
जाता हुआ ये दिसंबर कुछ कह रहा ।।
आओ समेट लो खुशियां तुम
मना लो त्यौहार मैं जा रहा हूं!
आने वाले कल में,याद बनकर
मैं एक अच्छी याद चाहता हूं।।
मैं सबकी दुआएं चाहता हूं,
मैं सबसे मिलना चाहता हूं,
सबके लिए एक अच्छी खबर चाहता हूं
जाता हुआ मैं कुछ कहना चाहता हूं।।
गिले शिकवे भूलकर सब ,
तुम सबको ही गले लगाना
कोई यदि ना याद करे तुमको तो ,
नए साल में तुम ही कदम बढ़ाना ।।
बांटकर प्रेम के फूल तुम सबको
मुझे हर्षित कर, विदा कर जाना
कि जाता हुआ दिसंबर तुमसे
ये कुछ कहना चाहता है ।।
आत्मसम्मान को मत गवाना..
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