कविता : संस्पर्श

कविता : संस्पर्श, स्नेह की अजस्र अमृतधारा यहां अनंत कालों तक सुरभित सुवासित बहती रहेगी प्रियतम। यह नगर का उजियारा नदी के किनारे चांद सितारों की मुस्कान से अटल प्रेम में हारा। #राजीव कुमार झा
प्रियतम…
भगवान् तुम आना कभी
जीवन की नदी प्रेमजल से
भरी बहती
सुबह की धूप में प्रेम का
संस्पर्श देकर
आकाश ने सबके हृदय को
आनंद से आज विह्वल कर
दिया
सूरज की रश्मियों ने
पूरब के स्वर्णिम शिखर पर
तुम्हारी कीर्ति गाथा का
अमर वह गान गाया
यहां हरे भरे जंगल में
प्रेम की बहती नदी का
किनारा
स्नेह की अजस्र अमृतधारा
यहां अनंत कालों तक
सुरभित सुवासित बहती
रहेगी
प्रियतम।
यह नगर का उजियारा
नदी के किनारे चांद
सितारों की मुस्कान से
अटल प्रेम में हारा।
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