कविता : कॉलेज के दिन
अलग-अलग रंग से हैं नाखून सजायें, काले बाल अब गोल्डन कलर में लहरायें, कलर कॉम्बिनेशन में कमी कहीं नहीं, लड़कियां अब सेल्फी क्वीन बन रहीं, पढ़ने-पढ़ाने का ढंग है वही, पर बच्चों की सोच काफी बदल गयी, #सिद्धार्थ राय
“ये कॉलेज के दिन है अजब हैं, गजब हैं वस्त्र हैं निराले,
बहुत ही सहज हैं,
अलग वेश भूषा, अलग कुछ ये रंग है ,
जवानी के दिन का सुंदर ये रंग हैं
कपड़ों के ढंग पर बात तब ये आती बदलाव उनमें ये कविता दिखाती,
कॉलर उठें हैं, बाजू मुड़ें हैं
बटन कमीज में अब कम ही जुड़े हैं
खड़े हैं बाल कुछ के, कुछ के हैं घूमें देखो पार्टियों में कैसे ये झूमें,
सोने की माला गले में विराजे
चेहरों पर दाढ़ी, अलग ही है साजे,
पैंट है इतनी नैरो कि पूछो ही मत
अंदाज है निराला चाल मदमस्त,
जूते हैं पतले हैं तीखे नुकीले
काले हैं भूरे लाल हरे पीले,
सज संवर के अब तो, लड़के भी आते हैं
लड़कियों से ज्यादा वे इतराते हैं,
सजने-संवरने में लड़कियां कहाँ पीछे
मेकअप है इनका जो मन को खीचें,
आखों में काजल और होंठों पर लाली
लगता है जैसे परफयूम से नहा ली,
अलग-अलग रंग से हैं नाखून सजायें
काले बाल अब गोल्डन कलर में लहरायें,
कलर कॉम्बिनेशन में कमी कहीं नहीं
लड़कियां अब सेल्फी क्वीन बन रहीं,
पढ़ने-पढ़ाने का ढंग है वही
पर बच्चों की सोच काफी बदल गयी,
पुराना वो कॉलेज खो गया कहीं है
अब तो बस सजना संवरना यही है।
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