कविता : ज्ञानी बने, अज्ञानी नहीं
सुनील कुमार माथुर
कश्मीर से कन्याकुमारी तक हमारा देश एक है
यहां की सभ्यता और संस्कृति
विश्व की सभी संस्कृतियों में से सर्वश्रेष्ठ है
यह अज्ञानी को ज्ञानवान बनाती हैं
अज्ञानता रुपी अंधकार से यह हमें
ज्ञान रुपी प्रकाश की ओर ले जाती है
हम ज्ञानी होकर भी अज्ञानियों जैसी
बेहूदा हरकते कर रहें हैं , यह कैसी विडम्बना है ?
ज्ञानी बनें , अज्ञानी नहीं
ज्ञान का प्रकाश फैलाइये न कि अंधकार
जीवन मैं आदर्श संस्कारों को अंगीकार कीजियें
दीपक की लौ बनकर ज्ञान का प्रकाश फैलाइयें
दीपोत्सव पर अंहकार का नाश कीजिये तभी
दीपोत्सव का असली आनंद हैं.
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¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »सुनील कुमार माथुरस्वतंत्र लेखक व पत्रकारAddress »33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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