कविता : युद्धभूमि
आकाश युद्धभूमि घर के बाहर अब बन जाता प्यार की इस बेला में मंदिर में आकर वह घंटा रोज बजाता ईश्वर का यह दरबार शाम में दीपों से सजता रहता नफ़रत की दुनिया में गीत प्रेम का गाता बड़प्पन की बात आदमी बतलाता #राजीव कुमार झा
अरी प्रिया
तुमसे जीवन की
सारी अच्छी बात सुनें
आदमी जीवन में
जो भी करता रहता
सबसे अलग-थलग
वह इस धरती पर
रहता
वह अक्सर घमंड में
कहता
मनुष्य सोच में
सदा श्रेष्ठ प्राणी होता
उसकी बात निराली है
यह सब सुनकर
आकाश घुटन
और गर्मी से घिरता
बादल बनकर
खूब बरसता
समंदर के ऊपर
आकर
उसका मन
खाली हो जाता
हवाई जहाज की
आहट बनकर
पक्षियों को खूब डराता
मानो सबको कहता
आकाश युद्धभूमि
घर के बाहर
अब बन जाता
प्यार की इस बेला में
मंदिर में आकर
वह घंटा रोज बजाता
ईश्वर का यह दरबार
शाम में दीपों से
सजता रहता
नफ़रत की दुनिया में
गीत प्रेम का गाता
बड़प्पन की बात
आदमी बतलाता
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