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पिथौरागढ़ : 1952 में पहली बार चली थी “बस”

1952 में पहली बार पिथोरागढ़ में बस आयी थी। खर्कवाल बंधुओं के सहयोग से पहली बार सन 1955 में मैला ग्राम से दस हजार रुपया खर्च करके पाइपों के द्वारा पानी वर्तमान जिला अस्पताल के निकट तक आया था. वर्तमान में जहाँ सोलजर बोर्ड है वहां 1857 की क्रांति के बाद सैनिक छावनी बनी थी। सरस्वती देवसिंह मैदान को परेड खेत के नाम से जाना जाता था। वहीं पर एक कोत का नौला भी था जहां पर इस वक्त सुलभ शौचालय बना दिया गया है।

कोत शब्द हथियार रखने के स्थान को कहते थे. इसलिए इसको कोत का नौला कहा जाता था. सैनिक, परेड खेत में कवायत किया करते थे, इस समय जहाँ राजकीय बालिका इंटर कालेज है उस स्थान में गोरखा-किला था. जिसे गढ़ी कहा जाता था. इस गढ़ी में लगभग 150 सिपाही रह सकते थे. इनके जल की आपूर्ति निचले जंगल में स्थित एक नौले से होती थी. किले के पास ही शक्तिपीठ मां उल्का देवी का मंदिर है. इसे गोरखा लोग अपनी कुल देवी मानते थे.

किंवदन्ति है कि कभी इस स्थान पर नरबलि भी होती थी. यह भी कहा जाता है कि पूर्व समय में यह मंदिर वर्तमान भाटकोट के पास था वहां उनके प्रति हुए असम्मान से मां उल्का देवी का मंदिर गढ़ी के पास स्थानांतरित कर दिया गया. जो भी हो एक शिलालेख के माध्यम से यह ज्ञात हुआ कि नौला, मंदिर और किला सन 1790 में श्री पांच राणा सरकार नेपाल द्वारा निर्मित किया गया था. सन 1960 में यह किला टूट गया था.

नगर पालिका भवन के ऊपर के किले में लगे एक लेख के द्वारा ज्ञात हुआ है कि इस किले का निर्माण समय सन 1840 ई में हुआ. इस किले को बनाने में जौहार- दारमा और सोर के लोगों ने मदद की थी. सन 1935 में ग्राम बजेटी से तहसील को हटाकर इस किले में स्थानांतरित कर दिया गया था. इस किले को लन्दन फोर्ट के नाम से जाना जाता था. मध्य शहर में स्थित होने से इस किले का महत्व अधिक था।

सिमलगैर बाजार का नामकरण सेमल वृक्षों की बहुतायत से हुआ है. वर्तमान राजकीय इंटर कालेज पिथौरागढ़ सन 1928 में किंग जार्ज कौरोनेशन हाईस्कूल के नाम से खुला था. शुरुआत में इस जगह का नाम घुड़साल था. घुड़साल के उत्तर पश्चिम में उदयपुर एवं ऊँचाकोट की पहाड़ियां हैं. आज से 500 साल पहले बम राजाओं की यह स्थली थी जो बाद में बमनधौन नामक स्थान चली गयी. आज भी बमनधौन में प्राचीन पुरातत्व मूर्तियाँ- मंदिर में हैं. उदयपुर के पाद प्रदेश में गुरु गोरखनाथ की एक अलख थी इसका एक मंदिर अभी भी पपदेउ गांव में है. यदपि अज्ञानता से जो शिलालेख यहाँ था वह नष्ट हो चुका है.

1962 में राजकीय इंटर कालेज की भूमि के पास ही एक डिग्री कालेज खोला गया. इस महाविद्यालय के खुलने से पहले इस स्थान पर भवानीदेवी प्राइमरी पाठशाला पपदेऊ थी. ग्राम पपदेऊ की एक दानी महिला भवानीदेवी ने पांच हजार रूपया नगद देकर मोतीलाल चौधरी के प्रयासों से यह विद्यालय खुलवाया. किंग जार्ज कौरोनेशन हाईस्कूल के पहले प्रधानाचार्य श्री चंचलावल्लभ पन्त थे.

महाविद्यालय खुलने से पूर्व मिडिल स्कूल, बजेटी में कक्षाएं चला करती थी. बजेटी वह स्थान है जहाँ इस जनपद का पहला मिडिल स्कूल 1906 में खुला था. राजकीय इंटर कालेज, पूर्व में ठा. दानसिंह मालदार के भवन में चला था. सरस्वती देवसिंह स्कूल भी मालदार परिवार के सहयोग एवं प्रेरणा से बना. इसके प्रथम प्रधानाचार्य मोहन सिंह मल्ल थे. राजकीय इंटर कालेज पिथौरागढ़ खोलने में स्वर्गीय कृष्णानन्द उप्रेती के सहयोग को नहीं भुलाया जा सकता है. किंगजार्ज हाईस्कूल की निर्माण कंपनी एल.आर.साह फर्म अल्मोड़ा थी।


संकलनकर्ता : बालकृष्ण शर्मा, बी-006, रेल विहार सीएचएस, प्लॉट नं. 01, सेक्टर 04, खारघर, नवी मुम्बई (महाराष्ट्र)
साभार : काफल ट्री वट्सएप ग्रुप (https://www.kafaltree.com)

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