गऊ माता की सेवा से ही हमारा धर्म व राष्ट्र सुरक्षित होगा
सुनील कुमार माथुर
गाय का हमारे जीवन में बडा ही महत्व है । यह हमारे जीवन का अभिन्न अंग है । गाय हमारी माता हैं यही वजह है कि हम इसे गऊमाता कहते है । इतना ही नहीं गऊमाता की भारतीय संस्कृति में पूजा भी की जाती है । प्राचीनकाल में यह हमारे जीवन व्यापन का साधन थी । लोग अपने घरों में गायों को पालते थे । उसकी सेवा करते थे और गाय का दूध बेचकर घर – परिवार की गाडी चलाया करतें थे । गाय का दूध अमृत के समान होता हैं ।
मगर यह कैसी विडम्बना है कि लोगों ने आज गाय की सेवा करने की भावना तक को मन से निकाल दिया है । आज गाय की सेवा बहुत कम लोग ही कर पा रहें है और जो लोग सेवा कर रहें है वे धन्यवाद एवं साधुवाद के पात्र है । आज गाय को गऊमाता कहने वालों की संख्या घटती ही जा रहीं है और इसे चारा डालना भी आज कई लोगों के लिए लोक दिखावा बनकर रह गया है वे अपने वाहन में बैठे ‘ बैठे ही चारा डलवा रहें है उनके पास इतना भी समय नहीं है कि वे अपने वाहन से नीचे उतर कर अपने हाथों से गऊमाता को रोटी दे या चारा खिलाये ।
अगर हमारी गऊमाता सुरक्षित है तो समझों राष्ट्र सुरक्षित है । गाय स्वस्थ रहें तो हम स्वस्थ हैं । आज विडम्बना कि बात यह है कि लोग गायों को पालना बोझ समझ रहें है और विदेशी कुतों को पाल रहें है । उन्हें कारों में घूमा रहें है । इतना ही नहीं हर माह उन पर हजारों रूपये फूंक रहें है लेकिन गायों को चारा नहीं डाल रहें है । अतः भूख के मारे वे कूडा कचरा खा रहीं है । प्लास्टिक की थैलियों को खा रहीं है जिसके कारण प्रतिदिन गायों की मौतें हो रहीं है । वे बीमार पडी हैं लेकिन उनकी सही देखभाल करने वालें नहीं है ।
गायों की सेवा अवश्य कीजिए । वे गऊमाता है न कि लावारिश पशु । इन्हें लावारिश कहना ही महापाप हैं । गाय हमारे जीवन का अभिन्न अंग है । गाय से ही हमारा आस्तित्व है । गाय बचेगी तभी तो हमारा राष्ट्र व धर्म बचेगा । गाय का दूध अमृत के समान है । लेकिन हम वर्तमान में जो दूध पी रहें है वह नकली दूध हैं । यही वजह है कि हम प्रायः बीमार रह्ते है और तरह – तरह की दवा लेने के बाद भी ठीक नहीं हो रहें है । चूंकि इस नकली दूध में रोगों से लडने की क्षमता नहीं है ।
अगर हमारी गऊमाता सुरक्षित है तो समझों राष्ट्र सुरक्षित है। गाय स्वस्थ रहें तो हम स्वस्थ हैं।
हमें जन्म देने वाली माता भी हमें कुछ समय तक ही दूध पिलाती हैं बाद में अपना दूध पिलाना वह भी छोड देती है लेकिन गऊमाता तो जीवन भर दूध पिलाती हैं । गऊमाता की कितनी विशेषता हैं अगर हम गिनना आरम्भ करें तो सही ढंग से गिन भी नहीं पायेंगे । गऊमाता के लिए आवारा पशु के शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है जो ठीक नहीं है । उसके लिए ऐसे अपशब्दों का प्रयोग न करें । वो हमारे जीवन का अभिन्न अंग है । हमारा अस्तित्व गाय से ही हैं ।
घर से बाहर की बनी चीजें खाने से ही तो इंसान बीमार पडता है चूंकि वे चीजें नकली व हानिकारक खाध पदार्थों से बनी होती है । यही वजह है कि आज बच्चों को हम नकली चीजें व मिलावटी चीजें खिलाकर बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड कर रहें है और वे बहुत छोटी उम्र में ही इस लोक से परलोक सिधार रहें है । गाय का दूध अमृत के समान है अतः गऊमाता की सेवा कीजिए उसके दर्शन मात्र से ही हमें अनेकानेक देवी – देवताओं के दर्शन हो जातें है चूंकि गऊमाता में देवी – देवताओं का वास होता है । आज हम गायों की विशेषताओं का वर्णन भी नहीं कर सकतें चूंकि उसमें अनेकानेक विशेषताएं हैं ।
गाय हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग है । इसके बावजूद इसकी सर्वत्र उपेक्षा हो रहीं है । आज हमारे पशु पालक गायों को दुहने के बाद सडकों पर खुला छोड़ देते हैं । उन्हें चारा तक नहीं देते हैं और वे भूखी मरती कागज व प्लास्टिक की थैलियां खा रही है जो उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है । चाहें राज्य हो या केन्द्र सरकार । सरकारें आती हैं और चली जाती हैं लेकिन गायों के कल्याण के लिए कुछ भी नहीं करती हैं । हां गायों की रक्षा के नाम पर वोट जरूर बटोर लेते हैं ।
यह कैसी विडम्बना है कि लोगों ने आज गाय की सेवा करने की भावना तक को मन से निकाल दिया है।
आज दिन तक सरकार ने गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित नहीं किया हैं । यह कैसी विडम्बना है । गऊ माता का कल्याण होगा , उसका मान – सम्मान होगा , उसकी सही तरीके से देखभाल हो तभी तो देश का कल्याण होगा । हमें अपनी कथनी और करनी में अंतर को मिटाना होगा । दूध दुह कर गायों को सडकों व गलियों में खुला छोडने वालों को दंडित करना होगा । केवल एक दिन साल में हम बछ बारस पर गाय व उसके बछडे की पूजा कर उसे सुरक्षित नहीं कह सकतें । गऊ माता सुरक्षित व तंदुरुस्त रहेगी तभी तो हमें दूध , दही , छाछ , मक्खन व घी शुद्धता के साथ मिल पायेगा अन्यथा दूध , दही , छाछ व मक्खन व घी के नाम पर दूषित खाध एवं पेय पदार्थों का सेवन कर अपने स्वास्थ्य से खिलवाड करते रहिए ।
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