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विख्यात साहित्यकार की बौद्धिक विरासत NGO को देने का विरोध

विख्यात साहित्यकार की बौद्धिक विरासत NGO को देने का विरोध, मेरा मानना है कि मेरे पिता ने कठोर तपस्या से जो बौद्धिक संपत्ति अर्जित की, उसे इस तरह से किसी को सौंपा नहीं जा सकता। 

देहरादून। विश्वप्रसिद्ध साहित्यकार और अपनी घुमक्कड़ी के लिए ख्यातिलब्ध महापंडित राहुल सांकृत्यायन की बेटी जया सांकृत्यायन बिहार के पटना म्यूजिमय में पिता की रखी बौद्धिक विरासत को नौकरशाहों की एक स्वयंसेवी संस्था बिहार म्यूजियम को सौंपे जाने से व्यथित हैं। देहरादून के पुरुकुल इलाके में रह रहीं उनकी पुत्री ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिखकर इस कवायद का कड़ा विरोध किया है।

पत्र में उन्होंने लिखा है कि बिहार सरकार संग्रह की देखरेख के योग्य नहीं है तो उनके परिवार और देश के गंभीर अनुसंधानकर्ताओं की कमेटी बनाकर उसे इसके भविष्य का निर्णय करने का अधिकार देना चाहिए। बता दें कि जया इससे पहले वर्ष 2017 में भी मुख्यमंत्री को पत्र लिख चुकी हैं।

बकौल जया, तब पत्र लिखने के बाद म्यूजियम में पिता की रखी धरोहर को सौंपने की कोशिशें थम गई थीं। उन्हें फिर पता लगा कि बिहार सरकार पटना म्यूजियम के प्रबंधन का अधिकार बिहार म्यूजियम को सौंप रही है। बताया जा रहा है कि यह म्यूजियम सेवानिवृत्त नौकरशाहों की एक स्वयंसेवी संस्था द्वारा संचालित हो रहा है। मैंने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर इसका कड़ा विरोध किया है।

मेरा मानना है कि मेरे पिता ने कठोर तपस्या से जो बौद्धिक संपत्ति अर्जित की, उसे इस तरह से किसी को सौंपा नहीं जा सकता। वहां 106 साल पुरानी दुर्लभ धरोहर रखी है। दुनिया को समझने के लिए नई पीढ़ी के अध्ययन की वह एक नायाब विरासत है। राहुल सांकृत्यायन के संग्रह के बारे में कोई भी फैसला लेने से पहले उनके परिवार से परामर्श लिया जाना चाहिए, क्योंकि उन्होंने यह अमूल्य धरोहर पटना म्यूजियम को सशर्त उपहार स्वरूप दिया था।

पटना म्यूजियम में रखी तिब्बत से लाई हुई थांगका पेंटिंग अमूल्य हैं। उन्होंने तिब्बत की तीन और यात्राएं कीं। वहां से बहुत सी पांडुलिपियां, सिक्के, कपड़े व चित्र व अन्य सामग्री की मूल व छाया प्रतियां लाएं। 1956 तक राहुल संग्रह में और भी चीजें जुड़ीं। करीब 6400 किताबें और फोटो बिहार रिसर्च सोसाइटी में संग्रहित हैं। अगर ये चीजें लाने ले जाने में खराब हो गईं तो इसका कौन जिम्मेदार होगा? उन्होंने कहा कि यह प्रस्ताव उनके पिता की स्मृति, बौद्धिक विरासत व देश के लिए उनकी दृष्टि का अपमान है। इसे किसी भी हालत में सरकार के नियंत्रण से बाहर जाने की इजाजत नहीं दी जा सकती।

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