मंतव्य : गरीब लोगों को प्रभावित कर रही है ‘घटिया राजनीति’

जनकल्याण की राशि की लूट में अफसरशाही भी पीछे नहीं है। गरीब लोग नेताओं से क्या आशा करते हैं। वे ज्यादातर जाति धर्म संप्रदाय में बंटे हैं और उन्हें अपनी इस एकता पर काफी विश्वास है। निराशाजनक स्थितियों से समाज को उबारने में की दिशा में यह सबसे बड़ी त्रासदी है। #राजीव कुमार झा
हम इस बात को मान सकते हैं कि हमारा लोकतंत्र गैर जिम्मेदार लोगों के हाथों में है और जाहिर है कि आपके समाज में नैतिक धरातल पर जिंदगी की एक ही किसी बात को समझने में अगर आप आपस में दृष्टि का फर्क कायम करते हैं तो आप भ्रष्टाचार को मिटाने में एकजुट नहीं हो पाएंगे। अटल बिहारी वाजपेयी हंसोड़ नेता नहीं थे और उनमें मृदुलता थी।
जगन्नाथ मिश्र के शासन काल काल उदाहरण देकर आप लालू प्रसाद की सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार का समर्थन नहीं कर सकते हैं। उसी प्रकार बलात्कार की वीभत्स सामाजिक समस्या को चार लोगों को भारी गहमागहमी के बीच फांसी पर लटका कर आप इस अपराध की रोकथाम नहीं कर सकते।
कभी लालू प्रसाद को जेल की सजा देने पर तेजस्वी यादव ने देश के शराब और नागरिक उड्डयन उद्योग के कारोबारी विजय माल्या कांग्रेस की देखरेख में देश से फरारी पर सवाल पूछा था। इस तरह के प्रश्नों में औचित्य का प्रसंग समस्या खड़ी करता है।
जनकल्याण की राशि की लूट में अफसरशाही भी पीछे नहीं है। गरीब लोग नेताओं से क्या आशा करते हैं। वे ज्यादातर जाति धर्म संप्रदाय में बंटे हैं और उन्हें अपनी इस एकता पर काफी विश्वास है। निराशाजनक स्थितियों से समाज को उबारने में की दिशा में यह सबसे बड़ी त्रासदी है।
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