साहित्य लहर
एक दिन…!
मो. मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर
जाना था
जाना है
जाएंगे
नियत है
पक्का है
सबको
मुझको
तुझको
फिर
ये मारामारी
हकमारी
बेकरारी
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क्यों?
किसलिए?
रूको!
सब्र करो
दम धरो
हंसो मुस्कुराओ
बोलो बतियाओ
हलवा पूरी खाओ
आए बुलावा
तो जाओ!
यूं आगे आगे ना पग बढ़ाओ
बड़ी तकलीफ़ होती है
मानवता को
सभ्यता को
संस्कृति को।
ठहरो
तनिक विचार करो
फिर जो समझ आए करो
दोष मुझे न देना
समझाया नहीं!
यही कहता था
कहता है
कहेगा मंजूर नवाब कवि!
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »मो. मंजूर आलम ‘नवाब मंजूरलेखक एवं कविAddress »सलेमपुर, छपरा (बिहार)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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