समाज में स्त्रियों का महत्व दर्शाती है नवरात्रि : डॉ. अंजना तिवारी
समाज में स्त्रियों का महत्व दर्शाती है नवरात्रि : डॉ. अंजना तिवारी… वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, डॉ. तिवारी ने नवरात्र के महत्त्व को ऋतु परिवर्तन के संदर्भ में समझाते हुए कहा कि इस समय मानव शरीर में शारीरिक और मानसिक बदलाव होते हैं। इस बदलाव के समय उपवास का विशेष महत्त्व होता है, क्योंकि यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करता है।
डॉ. अंजना तिवारी, वरीय प्राध्यापक, संस्कृत, पालि एवं प्राकृत विभाग, कला संकाय, महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, बड़ौदा, वडोदरा ने गुरुवार को देर शाम ई गोष्ठी में कहा कि नवरात्र केवल धार्मिक या आध्यात्मिक पर्व नहीं है, बल्कि इसका सामाजिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी गहरा महत्त्व है। उन्होंने कहा कि नवरात्र का पर्व संयम, शक्ति और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है, जो समाज को नैतिकता और सदाचार की दिशा में आगे बढ़ाता है। मॉडल कॉलेज राजमहल के प्राचार्य डॉ रणजीत कुमार सिंह ने कहा कि नवरात्रि दुर्गा पूजा वैज्ञानिक दृष्टि से, मनुष्य के शारीरिक और मानसिक संतुलन को बनाए रखने में सहायक होता है।
डॉ. तिवारी ग्लोबल संस्कृत फोरम, झारखंड प्रांत एवं अविराम कॉलेज ऑफ एजुकेशन, टिको, कुरु, लोहरदगा के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय ई-संगोष्ठी में ‘नवरात्र का सामाजिक एवं वैज्ञानिक महत्त्व’ विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में ज़ूम प्लेटफार्म पर प्रतिभागियों को सम्बोधित कर रही थीं। डॉ. तिवारी ने अपने वक्तव्य में नवरात्र व्रत के सांस्कृतिक और वैज्ञानिक पक्षों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया। डॉ रणजीत कुमार सिंह ने कहा कि ऋतु परिवर्तन के इस समय नवरात्र का महत्त्व और भी अधिक हो जाता है, क्योंकि इस दौरान उपवास और सात्त्विक आहार से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और मनोवैज्ञानिक शांति प्राप्त होती है।
उन्होंने कहा कि नवरात्र केवल एक धार्मिक अनुष्ठान न होकर नारी शक्ति के सम्मान और समाज में स्त्रियों के महत्त्व को दर्शाता है। देवी दुर्गा को नव शक्तियों का प्रतीक मानते हुए यह पर्व नारीत्व के आदर्शों को समाज में स्थापित करता है। डॉ. तिवारी ने नवरात्र को शुद्धता, संयम और सदाचार के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि नवरात्र का व्रत केवल व्यक्तिगत साधना तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह समाज में समरसता, सौहार्द और नैतिक मूल्यों को प्रोत्साहित करने वाला पर्व है। इस पर्व से समाज में सांस्कृतिक और नैतिक धरोहरों का संरक्षण और विकास होता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, डॉ. तिवारी ने नवरात्र के महत्त्व को ऋतु परिवर्तन के संदर्भ में समझाते हुए कहा कि इस समय मानव शरीर में शारीरिक और मानसिक बदलाव होते हैं। इस बदलाव के समय उपवास का विशेष महत्त्व होता है, क्योंकि यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करता है। सात्त्विक आहार से शरीर शुद्ध होता है और मानसिक शांति मिलती है, जिससे व्यक्ति स्वस्थ और उर्जावान रहता है। डॉ. तिवारी ने नवरात्र के दौरान किए जाने वाले विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों का भी वैज्ञानिक विश्लेषण किया। उन्होंने कहा कि नवरात्र के समय मंत्रोच्चारण, पूजा, ध्यान और आराधना जैसी गतिविधियों से मानसिक स्वास्थ्य को सुदृढ़ता मिलती है और व्यक्ति में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
यह पर्व व्यक्ति को मानसिक संतुलन और शांति प्रदान करता है, जो उसके समग्र विकास में सहायक सिद्ध होता है। कार्यक्रम में ग्लोबल संस्कृत फोरम के राष्ट्रीय सचिव डॉ. राजेश कुमार मिश्र, झारखंड प्रांत के अध्यक्ष डॉ. श्रीप्रकाश सिंह, अविराम कॉलेज ऑफ एजुकेशन के सचिव श्री इन्द्रजीत कुमार, ग्लोबल संस्कृत फोरम, झारखंड प्रांत के महासचिव डॉ. राणा प्रताप सिंह, उपाध्यक्ष डॉ. शैलेश कुमार मिश्र मॉडल कॉलेज राजमहल के प्राचार्य डॉ रणजीत कुमार सिंह, शिक्षक और डॉ. धनंजय वासुदेव द्विवेदी सम्मिलित थे।
कार्यक्रम का संचालन अविराम कॉलेज ऑफ एजुकेशन की प्राचार्या डॉ. प्रतिमा त्रिपाठी ने किया, जिन्होंने अपने कुशल निर्देशन में इस संगोष्ठी को सफलतापूर्वक संपन्न किया।