
देहरादून | उत्तराखंड सरकार ने प्रदेश में भूस्खलन और ग्लेशियर झीलों से संभावित आपदाओं को रोकने के लिए एक मल्टी इंस्टीट्यूशनल टास्क फोर्स बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया है। मंगलवार को मुख्य सचिव श्री आनन्द बर्द्धन ने वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (GSI), इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग (IIRS), सेंट्रल वॉटर कमीशन (CWC) सहित अन्य राष्ट्रीय संस्थानों के वरिष्ठ वैज्ञानिकों और अधिकारियों के साथ बैठक की। बैठक का उद्देश्य प्रदेश में भूस्खलन न्यूनीकरण की समस्याओं का विश्लेषण करना और इसके लिए आवश्यक तकनीकी और वैज्ञानिक उपायों को लागू करना था।
मुख्य सचिव श्री आनन्द बर्द्धन ने बैठक में कहा कि प्रदेश में भूस्खलन संभावित क्षेत्रों का चिन्हीकरण किया जाना आवश्यक है। इसके लिए एक वैज्ञानिक प्रिडिक्शन मॉडल विकसित किया जाएगा, जो सैटेलाइट इमेज और धरातल परीक्षण के आधार पर यह पूर्वानुमान लगाएगा कि किसी विशेष क्षेत्र में कितनी वर्षा होने पर भूस्खलन की संभावना है। उन्होंने कहा, “हमें एक ऐसा मैकेनिज्म तैयार करना होगा, जिससे निचले इलाकों के लोगों को समय रहते सुरक्षित स्थानों तक पहुँचाया जा सके। यह मॉडल केवल तकनीकी समाधान नहीं है, बल्कि जनता की सुरक्षा सुनिश्चित करने वाला एक महत्वपूर्ण उपकरण होगा।”
मुख्य सचिव ने निर्देश दिए कि वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टिट्यूट मिलकर इस दिशा में कार्य करें। उन्होंने कहा कि इस कार्य में यू-सैक और अन्य आवश्यक वैज्ञानिक संस्थानों की सहायता भी उपलब्ध कराई जाएगी। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इस परियोजना के लिए आवश्यक वित्तीय संसाधनों की कोई कमी नहीं होगी। सरकार सुनिश्चित करेगी कि सभी उपकरण, तकनीकी सहायता और फंडिंग समय पर उपलब्ध हो। मुख्य सचिव ने प्रदेश की 13 ग्लेशियर झीलों में सेंसर लगाने के निर्देश दिए।
शुरुआत में 6 संवेदनशील झीलों पर सैटेलाइट और धरातलीय परीक्षण किया जाएगा, ताकि उनके जलस्तर और संभावित खतरे का निरंतर मॉनिटरिंग किया जा सके। उन्होंने कहा, “सेंसर लगाने का उद्देश्य केवल जलस्तर का आंकलन करना नहीं है, बल्कि संभावित आपदा से पहले चेतावनी प्रणाली विकसित करना है। इससे प्रभावित क्षेत्रों में समय रहते सुरक्षा उपाय किए जा सकते हैं।” मुख्य सचिव ने बैठक में सभी वैज्ञानिकों और अधिकारियों से कहा कि यह एक मल्टी इंस्टीट्यूशनल टास्क है और इसे गंभीरता और तत्परता के साथ तत्काल लागू किया जाना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह कार्य केवल तकनीकी प्रयास नहीं, बल्कि जन सुरक्षा और जीवन रक्षा का मुद्दा है।
बैठक में सचिव श्री विनोद कुमार सुमन, आईजी SDRF श्री अरुण मोहन जोशी, महानिदेशक यूकॉस्ट प्रो. दुर्गेश पंत, वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान, IIRS, GSI, CWC के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अन्य अधिकारी उपस्थित रहे।