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देहरादून : नगर निगम में फर्जीवाड़े का पर्दाफाश

इससे आशंका व्यक्त की गई कि पूर्व में उपलब्ध सूची के अनुसार दिया जा रहा वेतन गलत व्यक्तियों को दिया जा रहा था। वहीं, कर्मचारियों की संख्या भी वास्तविक से अधिक बताई जा रही थी। इसकी जांच प्रशासक एवं जिलाधिकारी सोनिका ने मुख्य विकास अधिकारी झरना कामठान को सौंपी।

देहरादून। नगर निगम की ओर से शहर की सफाई व्यवस्था में लगाए गए कर्मचारियों के वेतन के नाम पर फर्जीवाड़े की जांच पूरी हो गई है। जिसमें 100 से अधिक अज्ञात कर्मचारियों के नाम पर वेतन जारी होने की पुष्टि हुई है। स्वच्छता समितियों की ओर से उपलब्ध कराई गई सूची में शामिल कर्मचारी मौके पर नहीं पाए गए। जबकि, उनके नाम पर लाखों का भुगतान लिया जा रहा था। मुख्य विकास अधिकारी ने जांच पूरी कर रिपोर्ट प्रशासक एवं जिलाधिकारी को सौंप दी है। जिस पर अब नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।

दरअसल, कुछ वर्ष पूर्व नगर निगम ने सभी 100 वार्डों में सफाई के लिए स्वच्छता समितियां गठित की थीं। प्रत्येक वार्ड में गठित समिति में आठ से 12 सफाई कर्मचारी रखे गए। ऐसे में शहरभर में इनकी सख्या एक हजार से अधिक दर्शायी गई। पूर्व में सफाई कर्मियों का वेतन स्वच्छता समिति को एकमुश्त आवंटित कर दिया जाता था, लेकिन बीते दो दिसंबर को बोर्ड भंग होने के बाद नई व्यवस्था बनाने का प्रयास किया गया।

साथ ही कर्मचारियों के वेतन और पीएफ आदि में गड़बड़ी की शिकायत मिलने के बाद सीधे कर्मचारी के खाते में वेतन ट्रांसफर करने का निर्णय लिया गया। इसके लिए नगर निगम ने समितियों के एक-एक कर्मचारी की भौतिक उपस्थिति, आधार कार्ड और बैंक खाता संख्या जुटाए। निगम की टीम ने सत्यापन में पाया कि पूर्व उपलब्ध कराई गई सूची में से करीब आधे कर्मचारी नदारद मिले या उनके स्थान पर कोई अन्य व्यक्ति कार्य करता पाया गया।

इससे आशंका व्यक्त की गई कि पूर्व में उपलब्ध सूची के अनुसार दिया जा रहा वेतन गलत व्यक्तियों को दिया जा रहा था। वहीं, कर्मचारियों की संख्या भी वास्तविक से अधिक बताई जा रही थी। इसकी जांच प्रशासक एवं जिलाधिकारी सोनिका ने मुख्य विकास अधिकारी झरना कामठान को सौंपी। हाल ही में जांच पूरी कर मुख्य विकास अधिकारी ने रिपोर्ट प्रशासक को सौंप दी है। जिसमें 100 से अधिक अज्ञात कर्मियों के नाम पर वेतन का भुगतान किए जाने की बात पुष्ट हुई है।

स्वच्छता समिति के तहत कर्मचारियों के वेतन के लिए नगर निगम की ओर से हर माह प्रत्येक कर्मचारी के नाम पर 15 हजार रुपये वेतन जारी किया जाता रहा। ऐसे में प्रतिवर्ष करीब 18 करोड़ रुपये के हिसाब से बीते पांच वर्ष में निगम करीब 90 करोड़ रुपये का भुगतान कर चुका है। जांच में यह भी बात सामने आई है कि कर्मचारियों को नियमानुसार पीएफ और ईएसआइ की सुविधा नहीं दी गई। साथ ही वेतन का भुगतान सीधे कर्मचारियों के खाते में न करना भी नियमविरुद्ध है।


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