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उत्तराखंड सरकार ने सात प्रमुख कानूनों में संशोधन करते हुए छोटे अपराधों पर जेल की सजा हटाकर जुर्माना लगाने का निर्णय लिया है। यह सुधार जन विश्वास अध्यादेश 2025 के तहत लाया गया है, जिसके जरिए 52 अधिनियमों को चरणबद्ध तरीके से अपराध मुक्त और अधिक नागरिक–हितैषी बनाया जाएगा।
- राज्य सरकार ने छोटे अपराधों की श्रेणी से हटाई कारावास की सजा
- जुर्माने की राशि में भारी बढ़ोतरी, हर तीन साल में होगा 3% इजाफा
- सात प्रमुख अधिनियमों में दंडात्मक संशोधन लागू
- व्यापार सुगमता और प्रशासनिक सुधार की दिशा में बड़ा कदम
देहरादून। केंद्र सरकार के जनविश्वास अधिनियम की तर्ज पर उत्तराखंड सरकार ने भी छोटे अपराधों को अपराध की श्रेणी से बाहर निकालने और कारावास को समाप्त कर उसे मौद्रिक दंड से प्रतिस्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया है। बुधवार को हुई कैबिनेट बैठक में उत्तराखंड जन विश्वास (प्रावधानों में संशोधन) अध्यादेश 2025 को मंजूरी दे दी गई, जिसके पहले चरण में सात कानूनों में बदलाव किए गए हैं। इन संशोधनों के बाद कई छोटे उल्लंघनों पर अब जेल नहीं भेजा जाएगा बल्कि भारी जुर्माना लगाया जाएगा। कुछ अधिनियमों में कारावास की अवधि भी घटाई गई है। इसके साथ ही जुर्माने की राशि को भी नया स्वरूप दिया गया है, जिसमें हर तीन वर्ष में स्वतः तीन प्रतिशत बढ़ोत्तरी का प्रावधान किया गया है। राज्य सरकार ने अब तक ऐसे 52 अधिनियम चिह्नित किए हैं जिनमें इस प्रकार के दंडात्मक सुधार किए जाने हैं।
सरकार का कहना है कि इन सुधारों का मुख्य उद्देश्य छोटे तकनीकी या प्रक्रियागत उल्लंघनों के लिए नागरिकों पर आपराधिक मुकदमे दर्ज करने की आवश्यकता को समाप्त करना है। इसके स्थान पर प्रशासनिक दंड लगाने से न्यायालयों पर बोझ कम होगा, व्यापारिक गतिविधियों का माहौल सरल बनेगा, और निवेशकों के लिए राज्य अधिक आकर्षक होगा। यह नीति न्यूनतम सरकार—अधिकतम शासन की अवधारणा को भी मजबूत बनाती है, जिसमें नागरिक–केंद्रित कानूनों को बढ़ावा दिया जाता है। सरकार का मानना है कि इस कदम से उद्यमिता, नवाचार और निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा तथा नियामक ढांचा अधिक संतुलित और व्यावहारिक बन सकेगा।
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अधिनियमों में हुए संशोधन भी महत्वपूर्ण हैं। आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए लोक सेवा आरक्षण अधिनियम के उल्लंघन में कारावास अब पूरी तरह समाप्त कर दिया गया है और जुर्माना 20,000 से बढ़ाकर 40,000 रुपये कर दिया गया है। जैविक कृषि अधिनियम में पहले मौजूद एक वर्ष के साधारण कारावास को हटा दिया गया है तथा जुर्माना 50,000 से बढ़ाकर अधिकतम पाँच लाख रुपये कर दिया गया है। साथ ही जुर्माना चुकाने में देरी होने पर प्रतिदिन 1,000 रुपये की अतिरिक्त राशि वसूली जाएगी। फल नर्सरी विनियमन अधिनियम में कारावास अवधि को घटाकर अधिकतम छह माह कर दिया गया है और जुर्माना सीमा 50,000 से बढ़ाकर पाँच लाख रुपये कर दी गई है।
प्लास्टिक और गैर–बायोडिग्रेडेबल कचरा विनियमन अधिनियम के उल्लंघन पर तीन माह का कारावास अब घटाकर एक माह कर दिया गया है। बाढ़ मैदान जोनिंग अधिनियम में अब पाँच हजार रुपये तक का जुर्माना लगाया जाएगा और गलती दोहराने या गंभीर पर्यावरणीय प्रदूषण की स्थिति में 20 हजार रुपये तथा दो माह के कारावास का प्रावधान है। नदी घाटी विकास एवं प्रबंधन अधिनियम में अधिकृत अधिकारी को बाधित करने पर पाँच हजार रुपये का तत्काल जुर्माना लगाया जाएगा, जबकि पहले उल्लंघन के लिए दो से दस हजार और बाद के लिए दस से बीस हजार रुपये का दंड निर्धारित किया गया है। विनाशकारी गतिविधि की संभावना वाले अपराधों में 50 हजार रुपये का जुर्माना और दो माह के कारावास का विकल्प रखा गया है। इसके अतिरिक्त झुग्गी विनियमन और पुनर्वास अधिनियम में कारावास की अवधि छह माह से कम कर तीन माह कर दी गई है तथा प्रतिदिन पाँच सौ रुपये के अर्थदंड का प्रस्ताव किया गया है।
राज्य सरकार का दावा है कि इस व्यापक सुधार के बाद प्रशासनिक कार्यप्रणाली अधिक सरल होगी, नागरिकों पर गैर–जरूरी कानूनी बोझ नहीं पड़ेगा, और छोटे उल्लंघनों के लिए लोगों को जेल की सजा से बचाया जा सकेगा। यह कदम प्रदेश को निवेश–अनुकूल, न्यायिक रूप से सुगठित और विकास–उन्मुख बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल माना जा रहा है।





