
देहरादून | उत्तराखंड में मदरसों को अब धार्मिक शिक्षा देने के लिए राज्य द्वारा गठित प्राधिकरण से दोबारा मान्यता लेना अनिवार्य होगा। साथ ही, शिक्षकों की नियुक्ति भी अब निर्धारित मानकों और योग्यता के अनुसार करनी होगी। यह कदम राज्य सरकार द्वारा लागू किए गए नए अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान कानून के तहत लिया गया है।
मदरसों में यदि केवल धार्मिक शिक्षा दी जानी है, तब भी प्राधिकरण से मान्यता लेना जरूरी होगा। नए कानून के लागू होने के बाद, उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड से मान्यता प्राप्त कोई भी मदरसा उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2016 और उत्तराखंड अरबी एवं फारसी मदरसा मान्यता नियमावली 2019 के प्रावधानों के अनुसार शैक्षिक सत्र 2025-26 में ही शिक्षा दे सकेगा।
अगले शैक्षिक सत्र 2026-27 से धार्मिक शिक्षा देने वाले सभी मदरसों को इस कानून के तहत गठित प्राधिकरण से दोबारा मान्यता लेनी होगी। यह मान्यता तीन सत्रों के लिए वैध होगी, जिसके बाद इसे नवीनीकरण कराना अनिवार्य होगा।
मान्यता प्राप्त करने के नियम और शर्तें
- शैक्षिक संस्थान की जमीन संस्था की सोसाइटी के नाम होनी अनिवार्य है।
- सभी वित्तीय लेन-देन बैंक खाते के माध्यम से, जो संस्थान के नाम से खोले गए हों, ही किए जाएंगे।
- मदरसों के छात्र या कर्मचारी किसी भी धार्मिक गतिविधि में भाग लेने के लिए बाध्य नहीं किए जा सकते।
- शिक्षकों की नियुक्ति अब प्राधिकरण द्वारा निर्धारित योग्यता और मानकों के अनुसार ही होगी।
पूर्व स्थिति और बदलाव
इस कानून के लागू होने से पहले, उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड से मान्यता प्राप्त मदरसों में शिक्षकों की नियुक्ति और वित्तीय संचालन पर इतनी सख्ती नहीं थी। नए नियमों के साथ यह सुनिश्चित किया जाएगा कि मदरसों में शिक्षा की गुणवत्ता और संचालन के मानक सभी के लिए समान हों।
यह कदम मुख्य रूप से मदरसों और अन्य अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों में समान नियम लागू करने और शिक्षा के मानकों को नियंत्रित करने के लिए उठाया गया है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि धार्मिक शिक्षा देने वाले संस्थान पारदर्शी, व्यवस्थित और गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा प्रदान करने वाले हों।