प्रेम के इजहार का दिन वेलेंटाइन डे
सुनील कुमार माथुर
दुनियां भर में 14 फरवरी को प्यार के इजहार का दिन वेलेंटाइन डे मनाया जाता हैं । जब यह बात सभी लोग जानते हैं कि प्रेम अनमोल है तो फिर प्रेम एक ही दिन क्यों दर्शाना साल के 364 दिन क्यों नहीं । यह ठीक है कि यह दिन प्रेम का उत्सव का दिन हैं तो फिर प्रेम व स्नेह पूरी जिन्दगी बनाये रखनें में कहां दिक्कत हैं ।
आज पाश्चात्य संस्कृति के रंग में रंग कर लोग बावले हो रहें है और लडके – लडकियां रात्रि में होटलों में जाकर शराब पीते हैं , प्यार के इजहार के नाम पर मर्यादाओं को लांघ रहें है, एक – दूसरें को गुलाब का फूल भेंट करतें है । एक – दूसरें से प्रेम करने वालें अपनी मोहब्बत का इजहार करतें है । आज यह रोमांटिक प्रेम का दिवस बनकर रह गया हैं ।
बहुत से लोग अपने जीवन साथी को कार्ड , पत्र , फूलों के गुलदस्ते या अन्य उपहार देते हैं । वे किसी रेस्तरां में या रात में किसी होटल में भोजन की व्यवस्था करते हैं । कहीं कहीं पार्कों में भी प्रेम का इजहार करतें है । चूंकि वे इसे अपनी शान समझते है शराब व नाच गानों में लिप्त होकर आई लव यूं कहकर वे भारतीय सभ्यता और संस्कृति को ताक पर रख देते हैं व अश्लीलता पर उतर जातें है ।
आज हम अपनी ही संस्कृति को भूलकर पाश्चात्य संस्कृति को अपनाते जा रहें है जो न्यायसंगत नहीं है इसे प्यार का त्यौहार न मानें । प्यार का इजहार सही तरीके से व सभ्यता और संस्कृति के अनुरूप करें जिसमें अश्लीलता व फूहडता न हो । प्यार में भाईचारा हो , प्रेम हो , विश्वास हो , प्रगाढ़ता हो । कुछ लोग वेलेंटाइन डे का विरोध करतें है वे प्यार का विरोध नहीं करते हैं वरन् वे उस प्रेम की फूहडता व अश्लीलता का विरोध करतें है न कि शालीनता का । प्यार जरूर करें मगर प्यार की नुमाईश न लगायें । प्यार को बदनाम व कलंकित न करें ।
प्रेम अनमोल है । यह ईश्वर का दिया हुआ अनूठा तौहफा हैं । प्रेम शाश्वत हैं । प्रेम तो प्रेम हैं । इसे कई नामों से जाना जाता हैं । इस दिन दिल रूपी गुब्बारे व गुलाब दिये जातें है जो उपहार में प्यार के प्रतीक माने जातें है । इस दिन गुलाब का बडा ही महत्व रहता हैं । सफेद निर्मलता का प्रतीक हैं । पिंक रोज प्रतिष्ठा का प्रतीक हैं । रेड रोज में प्रेम का प्रतीक झलकता है । यही वजह हैं कि प्यार के सागर में कूद कर वेलेंटाइन डे मनाया जाता है ।
वेलेंटाइन डे प्रेम दिवस हैं तो फिर साल में एक दिन ही क्यों सच्चा प्रेम माता – पिता व गुरूजनों का पूजन करके मनाया जाना चाहिए । उन्हें मालाएं पहनावे, प्रणाम करें , उनका आशीर्वाद प्राप्त करें तभी सच्चा प्रेम जग पायेगा । इस दिन युवापीढ़ी भारतीय संस्कारों को जागृत करें । भारतीय संस्कृति के अनुसार अपने में संस्कार भरें व पाश्चात्य संस्कृति से बचकर अपने समाज में सुसंस्कारों की खुशबु फैलायें यहीं इस दिन का मुख्य उद्देश्य है ।
भगवान ने तो इस संसार की रचना की परन्तु इसका दर्शन व ज्ञान हमारे माता – पिता व गुरूजनों ने दिया । इसलिए हमारे माता पिता हमारे पहलें गुरु और जागृत देव हैं । माता पिता यही चाहते है कि बच्चों की आयु , विधा , यश और बल बढें इसलिए बच्चों को भी माता – पिता व गुरूजनों का आदर करना चाहिए और उनकी पूजा करनी चाहिए । एक – दूसरें के लिए जीने का नाम ही जिन्दगी हैं इसलिए वक्त उन्हीं को दो जो तुम्हें दिल से अपना मानता हो ।
जीवन में कुछ संबंध ऐसे होते हैं जो किसी पद या प्रतिष्ठा के मोहताज नहीं होते हैं, वे स्नेह व विश्वास की बुनियाद पर टिके होते हैं । परवाह न करों चाहें सारा जमाना खिलाफ हो , चलों उस रास्ते पर जो सच्चा व साफ हो।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »सुनील कुमार माथुरलेखक एवं कविAddress »33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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