साहित्य लेखन भी एक कला हैं…
सुनील कुमार माथुर
इस नश्वर संसार में हर व्यक्ति प्रतिभावान व हुनरबाज है । कोई अपनी प्रतिभा को निखारने के साथ ही साथ अपनी रचनात्मक भूमिका को निभाकर समाज व राष्ट्र के उत्थान में अहम् भूमिका निभाता हैं वही दूसरी ओर समाज में ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो दूसरों के हुनर व प्रतिभा का अपने लाभ में न केवल उपयोग ही करते हैं अपितु उसका इस्तेमाल अपने नाम से भी करने से नहीं चूकते है और दूसरों की मेहनत अपने नाम से कर लेते हैं ।
साहित्य सेवा और लेखन एक श्रेष्ठ कार्य हैं और लेखन एक कला भी हैं । हर कोई जिस तरह से पढ – लिखकर डाॅक्टर – इंजिनीयर, कलक्टर नहीं बन सकता चूंकि कि हर व्यक्ति की सोच – समझ अलग – अलग होती हैं । उनकी प्रतिभा भी अलग-अलग होती हैं । ठीक उसी प्रकार एक श्रेष्ठ लेखन का कार्य एक रचनाकार ही कर सकता हैं । चूंकि कि श्रेष्ठ लेखन का कार्य वही व्यक्ति कर सकता हैं जिसकी सकारात्मक सोच हो , दूरदृष्टि हो , चिंतन – मनन करने की क्षमता हो और शब्दों का जिसके पास अथाह भंडार हो ।
आज कोरोना काल में लेखन का कार्य व्हाइटसएप और ई – मेल के द्धारा ही हो रहा हैं । ऐसे समय में साहित्य चोरों की मौज हो गयी हैं और वे रचनाकारों से रचनाएं आमंत्रित कर उसे तोड – मरोड कर रचना को अपने नाम कर रहें है । भले ही इनकी संख्या अभी कम हो लेकिन यही ढर्रा रहा तो साहित्य चोरों की बाढ सी आ जायेगी जिस पर बाद में काबू पाना कठिन सा हो जायेगा ।
साहित्यकार निमित्त ने एक व्यक्ति को एक श्रेष्ठ आलेख भेजा । उस व्यक्ति ने उस आलेख में थोडी हेराफेरी कर उस पर एक नाटक बना डाला और पात्र के रूप में अपने मित्रों व परिजनों को डाल दिया और अपने पिता को नाटक का लेखक तथा निमित्त को मात्र विशेष सहयोगी बनाकर इतिश्री कर ली जबकि उस नाटक की विषय वस्तु का असली लेखक निमित ही था ।
जब निमित्त को वस्तु स्थिति का पता चला तो उसने आपति की तो ऊन सज्जन ने कहा कि अंकल आपका नाम दिया हैं न । इस तरह साहित्य चोरी से रचनाकारों की भावना को जो चोट पहुँचती है यह वही जानता हैं चूंकि कोई भी रचना बिना चिंतन मनन के नहीं लिखी जाती हैं और उसे लिखने के लिए अलग से समय भी चाहिए और फिर कोई उसका उपयोग अपने नाम से करें तो लेखक को कितनी पीडा होती हैं यह भुगतभोगी ही जानता हैं । चूंकि साहित्य लेखन भी एक कला है जो हर किसी के बस की बात नहीं है । अतः साहित्य की चोरी न करे अपितु श्रेष्ठ साहित्य पठन में रूचि रखें ।
व्यक्ति अपने आप पर विश्वास रखें एवं आत्मविश्वास के बलबूते पर आगें बढें । वही अपने संबंधों के प्रति लापहरवाही न बरतें । समय का सदुपयोग करें और जीवन में खूब मेहनत करें लेकिन हेराफेरी जैसे अनैतिक कृत्य न करें । समय पर कार्य करना सीखें, सत्य बोले , जरूरत पडने से अपने अनुभवी मित्रों व परिजनों से सलाह – मशविरा करें ताकि इस तरह की बदमाशी न करनी पडें ।
व्यर्थ के दिखावे से दूर रहें एवं मानसिक शांति के साथ रहें । समाज में प्रशंसा व वाहवाही लूटने और मान – सम्मान पाने के लिए कम से कम अनैतिक कृत्य तो न करें । अतः आज आवश्यकता इस बात की हैं कि व्यक्ति बहुत ही जल्दी किसी के विश्वास में न आयें और हर वक्त हर क्षण सजग रहें व सतर्क रहें विपरीत परिस्थितियों का दृढता से सामना करें।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »सुनील कुमार माथुरलेखक एवं कविAddress »33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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