
सुनील कुमार माथुर
साहित्य सृजन भी अन्य कलाओं की भांति एक कला है और साहित्य का सृजन वहीं लोग कर सकते हैं जिन पर मां सरस्वती की असीम कृपा होती है। वरना हमारे देश में शिक्षित लोगों की कोई कमी नहीं है। मगर कलम उन्हीं लोगों की साहित्य सृजन में चलती है जिनकी सच्ची साधना होती है, मन निर्मल होता है और जिनमें सकारात्मक सोच के साथ आंखों देखा सत्य लिखने की निर्भीक और निष्पक्ष भावना होती है। साहित्य सृजन करने वाले लोगों का मन हर वक्त कुछ नया करने को तत्पर रहता है। यही कारण है कि वे जहां बैठे होते हैं, वहां चारों ओर अपनी पैनी नजर रखते हैं और फिर अपनी लेखनी के माध्यम से पाठकों को ऐसा प्रस्तुत करते हैं कि पाठक उस साहित्य को पढ़कर वाह-वाह कर उठते हैं।
साहित्य सृजनकर्ता एक अच्छा शिल्पी होता है। उनका ध्येय मात्र लोगों को सत्य से अवगत कराना होता है। कोरोना काल आया। पत्र-पत्रिकाओं का जो कारोबार था, उस पर संकट के बादल छा गए और सब कुछ चौपट हो गया। अनेक पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन बंद हो गया और उनका स्थान ऑनलाइन पत्र-पत्रिकाओं ने ले लिया। इसके कारण साहित्य सृजनकर्ताओं के समक्ष अनेक परेशानियां खड़ी हो गई हैं। ऑनलाइन लेखन में अनेक लोगों ने साहित्य सृजन के स्थान पर साहित्य की चोरी कर अपने नाम से रचनाएं प्रकाशित कराना शुरू कर दिया। इतना ही नहीं, वे प्रकाशकों को धनराशि देकर सम्मानित होने लगे और सम्मान पत्र व शिल्ड ऐसे बिकने लगे जैसे किसी फर्जी कॉलेज या शिक्षण संस्थान की मार्कशीट और डिग्रियां बिक रही हों। यह एक दुर्भाग्यपूर्ण बात है।
इससे वास्तव में मेहनत करने वाले साहित्य सृजनकर्ताओं के समक्ष संकट पैदा हो गया। नकलची लेखकों को संपादक और प्रकाशक यह कहकर अपनी पत्र-पत्रिकाओं में स्थान दे रहे हैं कि नए रचनाकारों को भी स्थान मिलना चाहिए। वे उन्हें नए रचनाकार इसलिए मान रहे हैं कि ये नकलची पैसा देकर सम्मानित हो रहे हैं और उन्हें वार्षिक शुल्क देते हैं। उनके लिए विज्ञापन और ग्राहक जुटाए जा रहे हैं। इतना ही नहीं, धनराशि देकर लोग अतिथि संपादक भी बन रहे हैं। यही वजह है कि आज मेहनत करके साहित्य सृजन करने वालों की रचनाएं अब यदा-कदा ही प्रकाशित हो रही हैं और वह भी संपादक मंडल की मेहरबानी से। भला ऐसे में श्रेष्ठ साहित्य सृजन की कल्पना करना भी बेमानी होगा।
-सुनील कुमार माथुर
सदस्य अणुव्रत लेखक मंच एवं, स्वतंत्र लेखक व पत्रकार, जोधपुर, राजस्थान
Nice article
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