रेनियर मारिया रिल्के की कविताओं में निहित जीवन यथार्थ और उसका विवेचन
पुस्तक समीक्षा : टूटे पंखों वाला समय (कविता संग्रह)

रेनियर मारिया रिल्के की कविताओं में निहित जीवन यथार्थ और उसका विवेचन, मनुष्य के मनप्राण में निरंतर रचे बसे संगीत की लहरियों की तरह से कविता निरंतर जीवन को आत्मा की ऊष्मा, राजीव कुमार झा की कलम से…
समकालीन विश्व कविता में जीवन के प्रति अजस्रप्रेम के साथ निरंतर इसके भीतर उभरते संकटों को लेकर प्रतिनाद के रूप में लिखी जाने वाली कविताओं की आत्मिक धारा में जर्मन कवि रेनर मारिया रिल्के की कविताओं की चर्चा हमारे समकालीन साहित्यिक विमर्श में प्रमुख रूप से शामिल है और इस प्रसंग में इला कुमार के द्वारा अनूदित उनकी प्रतिनिधि कविताओं के संग्रह ‘टूटे पंखों वाला समय’ की चर्चा महत्वपूर्ण है।
इला कुमार का नाम समकालीन हिंदी लेखन में महत्वपूर्ण है और उन्होंने औपनिषदिक चिंतन पर आधारित साहित्य का लेखन भी किया है और यहां तत्वदर्शी कवि के रूप में उनके द्वारा रिल्के की प्रतिनिधि कविताओं के अनुवाद पर आधारित काव्य संग्रह ‘टूटे वाला समय’ की चर्चा समकालीन साहित्यिक विमर्श में महत्वपूर्ण है। रेनर मारिया रिल्के की कविताएं प्रकृति की सान्निध्यता में जीवन के सहज स्पंदन और नानाविध रूपों में ईश्वर की महिमा और उसकी सृष्टि की सुंदरता के गान के साथ वर्तमान जीवन संकटों के बीच मनुष्य के आकुल व्याकुल मनोभावों से हमारा रागात्मक परिचय कराती हैं।
काव्य लेखन में अपने इन सृजन सरोकारों को लेकर रेनर मारिया रिल्के की कविताएं बेहद पठनीय प्रतीत होती हैं। इनमें पर्वत, पहाड़, मैदान, जंगल, नदी, सागर, आकाश और बाग बगीचों की हरियाली में सुबह की ऊष्मा को लेकर धरती पर रोज दस्तक देने वाली रंगबिरंगी किरणों का सतरंगा संसार समाया है और इनकी ओट में यहां कवि संसार की असंख्य बातों को अपनी अनुभूतियों में समेटता हुआ जीवन से संवाद में प्रवृत्त होता है। इस तरह जीवनधर्मिता का भाव और उसी अनुरूप अपनी भाषा और शैली को गढ़ती इन कविताओं में हमारे हृदय की नैसर्गिक आहट का समावेश है।
इनमें जीवन की प्रकट होने वाली हलचल जीवन के उत्थान और पतन उदय और अवसान के साथ धरती पर सबके आसपास और दूर सुदूर जो भी दृश्य अदृश्य घटित हो रहा है, इन सबके उत्स और अंत के बीच स्थित मनोलोक को निरंतर किसी बहुमूल्य स्मृति के रूप में उद्घाटित करती है। कविता को आत्मीय जीवन संस्कारों के प्रकटन का माध्यम कहा जाता है और इसमें स्वाभाविक रूप से सृजन के साथ संवाद का गुण भी सदैव दृष्टिगोचर होता रहता है, रेनर मारिया रिल्के की कविताएं इसी प्रसंग में हमारे हृदय के आत्मिक तत्वों की पहचान और उनके सहारे संसार के सच झूठ के संधान की प्रवृत्तियों को अपने कथ्य के प्रतिपादन में समेटती हैं और इनमें कालातीत भावों का समावेश हुआ है।
रिल्के की कविताएं समकालीन पाश्चात्य काव्य की धरोहर मानी जाती हैं और अपनी संरचना में बेहद वैयक्तिक जीवनानुभवों को प्रकट करने वाली इनकी कविताएं आनन्द और उत्कंठा की झिलमिल प्रातवेला में रात्रिकाल की गहन कालिमा में सितारों की टिमटिमाहट की मानिंद मनुष्य के मनप्राण में सतत स्थित आनंद और उल्लास के अक्षय तंतुओं को शब्दों के वर्णित सामर्थ्य में समेटकर उन्हें असीम विस्तार में बदलती प्रतीत होती हैं। शायद उनकी कविताओं के इस काव्यगुण ने उन्हें संसार की कविता में यश और प्रसिद्धि का पात्र बनाया है।
प्रस्तुत काव्य संग्रह की तमाम कविताओं को पढ़ते हुए इस बात को निकटता से देखा समझा जा सकता है और उनकी कविताओं की विषयवस्तु भाषा शैली पर अंग्रेजी कविता की रोमांटिक धारा के प्रभाव से भी शायद इंकार नहीं किया जा सकता है। कविता में आत्मा की असीम शांति में पसरी गहरी चुप्पी के बीच कविता अक्सर किसी नदी की तरह बहती दिखाई देती है और इसके पास से आकर कवि अपने गांव के तालाब के किनारे उसके शांत और स्वच्छ जल में निर्मल आकाश का प्रतिबिंब निहारते हुए कविता में विभिन्न मौसमों ऋतुओं की आवाजाही के साथ जीवन की तान और उसकी लय के सहारे तमाम तरह की उठापटक और खींचतान के बीच शांत और संयत भावमुद्रा में कविता का आलाप छेड़ता प्रतीत होता है।
रिल्के की कविताएं अपनी भाव भंगिमा में इस तरह जीवन की झंकार सुनाती हैं और इनको पढ़ते हुए प्राय: ऐसा लगता है मानो इनमें किसी नर्तकी के पायल की रुनझुन निरंतर गूंज रही हो और इसके स्वर में सारा मौन सूर्य रश्मियों के आगमन के साथ दूर दिशाओं में कहीं तिरोहित हो रहा हो। जीवन में असीम विश्वास और आस्था को जगाती इस संग्रह में ज्यादातर आत्मिक भावों से परिपूर्ण कविताओं को समेटा गया है और अनुवाद में हिंदी की विभिन्न कोटियों के पदों के माध्यम से कविता के भाषिक सौंदर्य को अक्षुण्ण बनाए रखने की चेष्टा की गयी है. इला कुमार के द्वारा हिन्दी में अनूदित रेनर मारिया रिल्के की इन कविताओं को पढ़ना एक दिलचस्प आत्मीय अनुभव के समान प्रतीत होता है-
“इस अंदरूनियत के लिए बाहरी विन्यास कहां है?
आखिर किस दर्द पर ये सूतें रखी गई हैं
कौन से आकाश इन खुले गुलाबों के अंतर्निहित पोखर में
स्वयं को प्रतिबिंबित पाते हैं
देखो, किस श्लथता से वे अपनी निर्बंधता में विश्राम,
जैसे कि कोई भी कंपित बाहु
उन्हें कभी भी बिखेर नहीं पाएगा
वे स्वयं को चुटकी भर भी कहां संभाल सकते हैं!
जब तक वे दिवसों के अंदर संचरित और प्रवाहमान होने पाएं”
मनुष्य के मनप्राण में निरंतर रचे बसे संगीत की लहरियों की तरह से कविता निरंतर जीवन को आत्मा की ऊष्मा और इसके ताप से परिपूर्ण करती है और इसके राग विराग में जब बेहद पवित्रता से आत्मालाप का शोर कविता के भीतर स्वरबद्ध होता है तो कविता अपनी अभिव्यक्ति में विराट हलचल को लेकर किसी शांत संयत सुर में अद्भुत संगीत की रचना करती हुई नदी की तरह से जीवन पथ पर प्रवहमान हो जाती है और इसकी राग रागिनियों में हृदय के सहज भावों में समाये मन की तन्मयता में सबकुछ साकार होता दिखाई देता है। रिल्के की ज्यादातर कविताएं आत्म उद्बोधन के रूप में लिखी गयी हैं।
इनमें कवि अक्सर अपने आसपास के परिवेश के अलावा दूर सुदूर की बातों के अलावा अपने इस जाने पहचाने संसार की तमाम सम – विषम बातों और इसमें सृजन के साथ निरंतर चलने वाले संघातों के बीच जीवन को किसी सफर की तरह व्याख्यायित करता अपनी मंजिल के बारे में सतत सोचता विचारता भाव विचार के दो अक्षों की दूरी को पाटने में संलग्न प्रतीत होता है. इसमें स्मृतियां कविता में जीवनानुभवों की रचना करती हैं और इनके सहारे इतिहास और वर्तमान के द्वंद्व की कथा जीवन की तमाम परिस्थितियों को यहां कविता में प्रामाणिकता से रुपायित करती दृष्टिगोचर होती हैं। कविता में भाव और भाषा का संबंध काफी पुराना है और इसे कविता के साथ मनुष्य की आत्मा के मूलभूत रिश्ते के रूप में देखना भी समीचीन होगा।
रिल्के की कविताएं इस संदर्भ में अपनी विशिष्ट अर्थवत्ता से रचनात्मक हस्तक्षेप करती दिखाई देती हैं और इनके कैनवास पर जिंदगी के सच और झूठ का वर्तमान फलसफा किसी आदिम संगीत के सम्मोहन से सबकी आत्मा को नीरवता के बीच प्रवाहित ऊर्जस्वित भावों से आकंठ आप्लावित कर देता है। विश्व साहित्य में रिल्के के लेखनकर्म का यह दौर साहित्य में यथार्थवादी प्रवृत्तियों के उदय और इसके माध्यम से चतुर्दिक संवाद और विमर्श के युग के रूप में जाना जाता है और इसी काल में रिल्के की कविताओं ने भी सबका ध्यान आकृष्ट किया था।
उनके काव्य लेखन पर पाश्चात्य काव्य परंपरा के सहज तत्वों के साथ तद्युगीन लेखन प्रवृत्तियों का सुंदर सामंजस्य दृष्टिगोचर होता है।रिल्के कवि होने के अलावा चिंतक भी थे और उनके विचारों में आस्तिकता के अलावा उदारता का समावेश गहराई से था। वह मनुष्य के जीवन को सृष्टि की सुंदर छाया के समान मानते थे और ईश्वर को संबोधित उनकी कविताओं में मनुष्य की लौकिक इहलीलाओं के बीच धरती पर सृष्टि के कोलाहल और इसकी निस्संगता में जीवन के नैसर्गिक स्पंदन को समेटतीउनकी कविताओं में अभिव्यक्ति का दायरा बहुत व्यापक है और इसे निरंतर समझने की चेष्टा की जानी चाहिए।
आधुनिक विश्व साहित्य में जर्मन भाषा महान कवि के रूप में रिल्के को साहित्य में गहन आत्मानुभूतियों को प्रकट करने वाले कवि के रूप में देखा समझा जाता है और इस प्रसंग में उनकी कविताएं स्पष्टता से जीवन से सार्थक संवाद रचती प्रतीत होती हैं। रेनर मारिया रिल्के की कविताओं में जीवन का अंतरबाह्य यथार्थ संश्लिष्ट भाषा शैली में एकाकार होकर सजीवता से आकार ग्रहण करता है और इसको इनकी कविताओं की सबसे बड़ी विशिष्टता के रूप में भी देखा समझा जा सकता है। रिल्के की कविताएं हमारे वर्तमान युग की यांत्रिक जीवन संस्कृति और इसमें समाहित मनुष्य की भौतिक लिप्साओं की किसी अनंतिम कथा के साथ धरती पर उसके जीवन के संघर्ष में प्रवाहित प्रेम की अनंत धाराओं से समन्वित होकर अपनी भावभूमि को कविता के कैनवास पर निर्मित करती हैं और इनमें हमारे सरल सहज सात्विक उद्गारों का निश्छल समावेश हुआ है।
रिल्के की कुछ प्रेम कविताओं को भी इसमें संकलित किया गया है और इनमें गहन अनुभूतियों के सहारे मन की हलचल में जीवन की आपाधापी से भटकता मन कविता के फलक पर विश्रांत करता दिखाई देता है। सचमुच उन्हें सभ्यता और संस्कृति के युगकवि के रूप में देखना अभिष्ट होना चाहिए और अपनी कविताओं में वह निरंतर दुख और पीड़ा की अनेकानेक परिस्थितियों के बीच कविता में मनुष्य जीवन के प्रति सतत् सुख और शांति की खोज में तल्लीन प्रतीत होने वाले कवि हैं। समकालीन जीवन में व्याप्त आत्मीय संकट की बातें रिल्के की कविताओं में इसी परिप्रेक्ष्य में उजागर होती हैं और इन्हें जानना समझना साहित्य के किसी रोचक अध्याय के समान होगा।
रिल्के अपनी कविताओं में जिन बिम्बों को लेकर कविता बुनते हैं, उनमें हमारे पारंपरिक जीवन के साथ वर्तमान जीवन के अंतर्विरोधों का साक्ष्य कविता की विषयवस्तु में बहुत साफ-साफ सिमटता दिखाई देता है और अपनी काव्य यात्रा के विभिन्न पड़ावों पर अक्सर वह इससे उपजे जीवन चिंतन को लेकर अपनी विचारमग्नता में समय और समाज की यथार्थ से भी मुठभेड़ करते प्रतीत होते हैं। वैयक्तिक भावबोध की कविताओं में संवेदनाओं की गहनता अपने अर्थ की परिधि में स्वभावत: जीवनानुभूतियों को विस्तार देती है और इस प्रसंग में रेनियर मारिया रिल्के की कविताओं का भाव विचार के पक्ष धरातल पर विवेचन आसान काम नहीं है और इसी वजह से समकालीन यूरोपीय कविता में वह अपनी विशिष्ट पहचान भी अर्जित कर पाते हैं।
कवि के रूप में रेनर मारिया रिल्के का जीवन काल काफी छोटा रहा और काफी कम आयु में वह चल बसे और उनकी कविताओं में हर जगह रोमांटिक अंदाज में समाज और जीवन को देखने उसके बारे में कुछ कहने का एक युवा अंदाज दिखाई देता है लेकिन इसे कविता में प्रकट होने वाली कोरी भावुकता के रूप में भी शायद नहीं देखा जा सकता है। वह जीवन के सच्चे अध्येता थे और उनकी कविताओं में इसकी बानगी जीवंतता से प्रकट हुई है। यहां कल्पना और यथार्थ का द्वंद्व कविता में भाव विचार की सृजनभूमि पर स्पष्टता से है एकमेक होता काव्य लेखन के नये क्षितिज को उद्घाटित करता है और इसकी सुंदर झलक प्रस्तुत काव्य संग्रह में समाहित है-
इस शहर के अंत में
वह अकेला घर
इतना अकेला
मानों वह दुनिया में स्थित बिलकुल अकेला घर हो
गहराती हुई रात्रि के अंदर
शनै: शनै: प्रविष्ट होता हुआ राजमार्ग जिसे
यह नन्हा शहर रोक सकने में सक्षम नहीं
यह छोटा सा शहर मात्र एक गुजरने की जगह
दो विस्तृत जगहों के बीच
चिंतित और डरा हुआ
पुल के बदलें में घरों के बगल से
गुजरता हुआ रास्ता
जो शहर छोड़ जाते हैं
एक लंबे रास्ते पर
भटकन के बीच गुम हो जाते हैं
और शायद कई
सड़कों पर प्राण त्याग देते हैं.
रेनर मारिया रिल्के की कविताओं में सभ्यता संस्कृति की त्रासदियों से निरंतर आकुल व्याकुल मन में उपजे स्वरों की आहट चतुर्दिक सुनाई देती है और यहां उन्हें कविता लेखन के लिए अवकाश के अलावा ईश्वर से मिला उनका प्रेमाकुल हृदय भी काव्य लेखन का उल्लेखनीय उपादान साबित हुआ और उनकी कविताओं को जीवन साधना के रूप में देखा जाना ही अभिष्ट मानना होगा। रिल्के ने अत्यंत नये अंदाज में कविताएं और लिखीं और कवि के रूप में मनुष्य की जीवन चेतना के समस्त जटिल युगीन तंतुओं को कविता की भाषा में टटोलने और उसके बारे में बताने की चेष्टा में वह निरंतर संलग्न रहे, इस प्रकिया को जानना और समझना शायद संपूर्णता में अपने जीवन और जगत को फिर से पाने की तरह से देखा जाना चाहिए।
मनुष्य की अस्मिता और उसके पहचान की जद्दोजहद से जुड़ीं रेनर मारिया रिल्के की कविताएं इस प्रकार मनुष्य की अदम्य जिजीविषा को कविता की दुनिया में रेखांकित करती हैं। रेनर मारिया रिल्के की कविताओं में जीवन का अंतरबाह्य यथार्थ संश्लिष्ट भाषा शैली में एकाकार होकर सजीवता से आकार ग्रहण करता है और इसको इनकी कविताओं की सबसे बड़ी विशिष्टता के रूप में भी देखा समझा जा सकता है। रिल्के की कविताएं हमारे वर्तमान युग की यांत्रिक जीवन संस्कृति और इसमें समाहित मनुष्य की भौतिक लिप्साओं की किसी अनंतिम कथा के साथ धरती पर उसके जीवन के संघर्ष में प्रवाहित प्रेम की अनंत धाराओं से समन्वित होकर अपनी भावभूमि को कविता के कैनवास पर निर्मित करती हैं और इनमें हमारे सरल सहज सात्विक उद्गारों का निश्छल समावेश हुआ है।
रिल्के की कुछ प्रेम कविताओं को भी इसमें संकलित किया गया है और इनमें गहन अनुभूतियों के सहारे मन की हलचल में जीवन की आपाधापी से भटकता मन कविता के फलक पर विश्रांत करता दिखाई देता है। सचमुच उन्हें सभ्यता और संस्कृति के युगकवि के रूप में देखना अभिष्ट होना चाहिए और अपनी कविताओं में वह निरंतर दुख और पीड़ा की अनेकानेक परिस्थितियों के बीच कविता में मनुष्य जीवन के प्रति सतत् सुख और शांति की खोज में तल्लीन प्रतीत होने वाले कवि हैं। समकालीन जीवन में व्याप्त आत्मीय संकट की बातें रिल्के की कविताओं में इसी परिप्रेक्ष्य में उजागर होती हैं और इन्हें जानना समझना साहित्य के किसी रोचक अध्याय के समान होगा।
लेखक : रेनर मारिया रिल्के
अनुवाद : इला कुमार
समीक्षक : राजीव कुमार झा
प्रकाशक : इंडिया नेटबुक्स प्राइवेट लिमिटेड, C 122, सेक्टर 19, नोएडा 201301, गौतम बुद्धनगर (एनसीआर, दिल्ली)
मूल्य : 275:00
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