
सुनील कुमार माथुर
सदस्य अणुव्रत लेखक मंच
33 वर्धमान नगर, शोभावतों की ढाणी खेमे का कुंआ, पालरोड, जोधपुर, राजस्थान
महोदय जी, देवभूमि समाचार पत्र के पटल पर विज्ञापन नीति को लेकर पिछले कुछ दिनों से काफी कुछ लिखा जा रहा है। विज्ञापन नीति पारदर्शी होनी चाहिए, जिसमें छोटे व मंझोले समाचार पत्रों का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। चूंकि वे सरकार की नीतियों व योजनाओं को जन-जन तक पहुंचाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं और जन समस्याओं को उजागर करने के लिए जनता-जनार्दन व सरकार के बीच में एक पूल का काम करते हैं। जो दैनिक बड़े समाचार पत्र नहीं कर सकते, क्योंकि उनका एकमात्र लक्ष्य विज्ञापन प्राप्त करना होता है, न कि छोटे व मंझौले समाचार पत्रों के हितों का ध्यान रखना।
यही वजह है कि आज बड़े दैनिक समाचार पत्रों ने अधिकाधिक सरकारी विज्ञापन पाने के लिए एक ही राज्य में अपने अनेक संस्करण निकाल रखे हैं और हर गांव व शहर के सरकारी विभागों से विज्ञापन प्राप्त कर पत्रकारिता कम, व्यवसाय अधिक कर रहे हैं। इसी व्यवसाय करण के चलते उन्होंने अन्य राज्यों में भी अपने संस्करण निकाल कर सरकारी व प्राइवेट विज्ञापन हासिल करने शुरू कर दिए हैं। नतीजन छोटे व मंझौले समाचार पत्रों का हक मार दिया गया।
अतः सभी राज्यों की सरकारों को चाहिए कि वे छोटे व मंझौले समाचार पत्रों के हितों को ध्यान में रखते हुए इतने विज्ञापन अवश्य दें कि उनका अखबार बिना किसी बाधा के नियमित रूप से प्रकाशित होता रहे और पत्रकारों के परिवारजनों का जीवन-यापन भी बिना किसी परेशानी के चलता रहे। सरकारी विज्ञापन की नीति स्पष्ट हो, पारदर्शी हो, ताकि हर पत्रकार अपना पत्र निर्भीकतापूर्वक निकाल सके, जहां पीत पत्रकारिता की कोई गुंजाइश न हो।
इसी के साथ ही साथ पत्रकारों को हर संभव आवश्यक सुविधाएं प्रदान की जाएं। समस्या तो समाधान चाहती है, न कि दलगत राजनीति। अगर पत्रकार ही सरकारी नीतियों से हताश व परेशान हो तो कैसे मिशनरी पत्रकारिता की उनसे आस की जाए। हर समस्या का समाधान है। बस जरूरत है तो मिल बैठकर समस्या का हल निकालने की।
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-देवभूमि समाचार
Nice