सम्पादक के नाम पत्र : लेखक की पीडा और कमेंट्स की समस्या
सम्पादक के नाम पत्र : लेखक की पीडा और कमेंट्स की समस्या, लेखक सभी को न्याय दिलाने हेतु आवाज उठाते है। कडी मेहनत कर लिखते है। चूंकि वे समाज के सच्चे सेवक होते हैं। जोधपुर, राजस्थान से सुनील कुमार माथुर की कलम से…
आज के इस तकनिकी युग में लेखन का कार्य आनलाईन हो गया है । यह रचनाकारों के लिए एक अनोखा सिरदर्द बन गया हैं । रचनाकार आफ लाईन में चिंतन मनन करते थे और जागरूक नागरिक बन कर लेखन करते थे और आज भी कर रहें हैं । वे अपना मानवीय धर्म पूरी ईमानदारी व निष्ठा के साथ निभा रहे हैं । वे समाज के सजग प्रहरी हैं और अन्याय के खिलाफ आवाज न उठाए यह कैसे संभव है।
वे चिंतन मनन करके एक श्रेष्ठ विचारधारा जन जन तक अपनी लेखनी के माध्यम से पहुंचा रहे हैं । इसके बावजूद कोई कमेंट्स करें या न करे । यह पढने वाले पर निर्भर करता है , लेखक किसी को बाध्य नहीं कर सकता हैं । मगर आलेख प्रकाशित करने वाले प्रकाशकों का लेखकों पर दबाव बढता ही जा रहा है कि अधिक से अधिक लोगों को अपनी रचना प्रकाशन के बाद भेज कर कमेंट्स करावे । जबकि यह कार्य लेखकों का नही़ है।
लेखक सभी को न्याय दिलाने हेतु आवाज उठाते है। कडी मेहनत कर लिखते है। चूंकि वे समाज के सच्चे सेवक होते हैं। अगर दूसरे शब्दों में यह कहा जाये कि वे राष्ट्र के सही मायने में स्वंतत्रता सेनानी है तो कोई अति शयोक्ति नही़ होगी । चूंकि वे समाज के भले के लिए व समाजहित में निस्वार्थ भाव से लिखते हैं।
अपनी ठनठनी लेखनी से अपने देश की आवाज बुलंद करते है । सच्चाई से सबको अवगत कराते हैं चूंकि यही उनका रचनात्मक ध्येय है। मगर कमेंट्स के लिए लेखको पर दबाव बनाना लेखकों की लेखनी का गला घोटना ही कहा जायेगा । अतः लेखकों की कलम को बिना दबाव के निर्बाध रूप से चलने दीजिये।
उसे समय समय पर प्रशस्ति-पत्र देने और उचित मानदेय दीजिए । अगर आप ऐसा करने में असमर्थ है तो मानदेय किसी भामाशाहों से , जनप्रतिनिधियों से व सरकारी स्तर पर दिलाने व सम्मानित कराने का प्रयास कीजिये । लेकिन ऐसा करना तो दूर रहा अपितु कमेंट्स मांगने को बाध्य कर रहे हैं जो मेरी निगाह में एक कलमकार के लिए न्याय संगत बात नहीं हैं । अब निर्णय आपके हाथ में हैं । अगर मेरी बात किसी को कडवी लगी हो तो क्षमा चाहता हूं।
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