बिहार की जेल से अपराधियों रिहा कराने में वामपंथियों का भी हाथ : राणा
बिहार की जेल से अपराधियों रिहा कराने में वामपंथियों का भी हाथ : राणा, बिहार राज्य के गोपालगंज के तत्कालीन दलित डीएम “जी कृष्णैया हत्याकांड” में पहले आनंद मोहन को मौत की सजा हुई थी। सतीश राणा, वाम विचारक
पहले बिहार के जेल मैनुअल में लिखा था कि सरकारी अफसर की ऑन ड्यूटी हत्या करने पर उम्र कैद की सजा खत्म होने पर रिहाई नहीं होगी। यानी अगर आप किसी सरकारी अफसर की हत्या करते हैं और अगर आप को उम्र कैद की सजा मिलती है तो जेल में आप अच्छा व्यवहार भी करते हैं तो भी आप की रिहाई नहीं होगी। लेकिन अब इस दुर्दांत अपराधी को बाहर निकालने के लिए नीतीश कुमार ने इस लाइन को ही हटा दिया है और इसे अपवाद की श्रेणी से हटाकर सामान्य श्रेणी में ला दिया। बदले हुए नियम के अनुसार, अब ऑन ड्यूटी सरकारी सेवक की हत्या अपवाद नहीं होगी। यानी अपनी जान की बाजी लगाकर लोगों की सेवा करने वाले ऑफिसर की हत्या करने वाले हत्यारे अब हत्या करके जेल में कुछ दिन अच्छे से रहेंगे और बाहर आ जाएंगे।
नीतीश सरकार द्वारा जेल कानून में बदलाव किए जाने के बाद गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में 20 अप्रैल को हुई राज्य दंडादेश परिहार पर्षद की बैठक में इन कैदियों को छोड़ने से संबंधित प्रस्ताव पर सहमति बनी। इसके बाद विधि विभाग ने सभी पहलुओं पर समीक्षा करने के बाद इसकी अनुमति देते हुए आदेश जारी कर दिया। यह आदेश विधि सचिव रमेश चंद्र मालवीय की तरफ से जारी किया गया है। इसके आधार पर जेल निदेशालय ने सभी संबंधित कैदियों को छोड़ने से जुड़ा निर्देश संबंधित जेलों को भेज दिया।
बिहार राज्य के गोपालगंज के तत्कालीन दलित डीएम “जी कृष्णैया हत्याकांड” में पहले आनंद मोहन को मौत की सजा हुई थी। फिर बाद में मौत सजा को आजीवन कारावास मे बदल दिया गया । आजीवन कारावास की सजा काट रहे पूर्व सांसद आनंद मोहन को जेल से स्थायी तौर पर रिहा करने का आदेश जारी हो गया है। आनंद मोहन के साथ दर्जन भर जेलों में बंद 27 बंदियों को मुक्त करने का आदेश दिया गया है नितिश सरकार की असम्बेदनशिलता को देखिये 6 या 8 महीना पहले एक मृत कैदी का नाम भी रिहाई वाले लिस्ट मे शामिल हैं।नितिश जी आरा कोर्ट परिसर मे बम ब्लाष्ट आरोपी बढई बिश्वकर्मा लम्बू शर्मा जो कई वर्षो से जेल मे बन्द हैं इस आरोपी बढई बिश्वकर्मा लम्बू शर्मा को भी रिहाई लिस्ट मे शामिल कर लेते।तो क्या हो जाता? दूर्रांत अपराधी आनंद मोहन के साथ इन बंदियों की रिहाई हो रही हैं।
फासिष्टो को मात देने के नाम पर राजद जेडयू के साथ भाकपा माले के नेता महागठबंधन सरकार के सहयोगी के रुप मे शामिल हैं लेकिन दलितो के बहे खुन की कीमत पर ऐसे महागठबंधन मे शामिल होना शहीद दलितो के साथ धोखा हैं ये वही राजद जेडयू हैं एक ने भाकपा माले के बिधायको को तोड रणबीर सेना से मिलकर द्रजनो गावों मे सैकडो गरीब दलितो का नरसंहार कारवाया?
दुसरे ने सैकडो सबुत गवाह होने के बावजुद नरसंहार के आरोपियो को न्यायलय से बरी कराय़ा,?ऐसे लोगो के सानिध्य मे महागठबंधन चल रहा हैं ऐसे मे आनन्द मोहन के रिहाई मे भाकपा माले के नेता भी बराबर के ज़िम्मेवार हैं भाकपा माले के नेताओ को शायद याद नही या जान बुझकर कर रहे हैं ये वही आनंद मोहन + प्रभूनाथ सिंह थे जिसने आरा के रमना मैंदान की एक सभा मे भाकपा माले को खुला चुनौती दिया था कहा था कि भाकपमाले के लोग एक मारते हैं तो तुम 10 को मरो।
आनन्द मोहन ने कहा था कि अगर भाकपा माले मे ताकत हैं तो कही भी झंडा गाडो देखते हैं कौन पहले उखाडता हैं यही नही इसने रणबीर सेना को आधुनिक हथियार भी दिये थे अगर सही मायने भाकपा माले अगर दलितो की अगुआई करती हैं तो तत्काल दलित के हत्यारे के रिहाई पर महागठबंधन से अलग हो जाना चाहिए नही तो आने वाले किसी चुनाव मे भाकपा माले का फजीहत होगी।जनता को जवाब देना इन बामपंथीओ को मुश्किल हो जायेगा।क्योकि नीतीश सरकार की दलित विरोधी व अपराध समर्थक कार्य से बिहार ही नही देशभर के दलित समाज में काफी रोष है।
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