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वर्ष 2022 की आखिरी चिट्ठी

वर्ष 2022 की आखिरी चिट्ठी, फिल्मों में देखा है, किताबों में पढ़ा है कि भारतीय नेता कितने बड़े धूर्त होते हैं। लेकिन जुलाई महीने में साक्षात् देखा भी… क्षेत्रीय विधायक (अब पूर्व) के सफेद झूठ का दर्शन हुआ… आगरा, उत्तर प्रदेश से मुकेश कुमार ऋषि वर्मा की कलम से…

वर्ष 2022 की आखिरी चिट्ठी, फिल्मों में देखा है, किताबों में पढ़ा है कि भारतीय नेता कितने बड़े धूर्त होते हैं। लेकिन जुलाई महीने में साक्षात् देखा भी... क्षेत्रीय विधायक (अब पूर्व) के सफेद झूठ का दर्शन हुआ... आगरा, उत्तर प्रदेश से मुकेश कुमार ऋषि वर्मा की कलम से...कौन जिया, कौन मरा… समय किसी के लिए नहीं रुकता। समय अच्छा हो या बुरा बीतता चला जाता है। अच्छे -बुरे समय को ही संसार सुख- दुःख कहता है। जो सुख – दुःख को सहना सीख लेता है, वही सही मायने में जीना सीख लेता है। परिवर्तन संसार का नियम है। इसे स्वीकार करना ही सही है, अन्यथा दुःख का जन्म होना निश्चित है।

इस खुले पत्र के माध्यम से मैं अपनी निजी जिंदगी के बारे में प्रकाश डाल रहा हूं। वैसे प्रत्येक वर्ष ‘आत्मकथ्य : कैसी रही साल ….. मेरे लिए’ नामक शीर्षक से वर्ष के अंतिम समय में आलेख लिखता आ रहा हूं। परंतु इस वर्ष मैंने शीर्षक बदल दिया है। परिवर्तन संसार का नियम है….

जनवरी :- वर्ष का प्रथम महीना सामान्य गुजरा, छुटपुट लेखन के साथ खेती किसानी का कार्य चलता रहा।

फरवरी :- हताशा-निराशा मुझ पर हावी होने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाती रहती है, परंतु मां शारदे की कृपा से मुझे हरा नहीं पाती। पारिवारिक समस्याओं को नजरअंदाज करके निरंतर स्वयं को साहित्य सृजन में व्यस्त रखा। गांव की एक दुष्टा औरत व उसके मर्द से बाल-बाल बच गया। वरना लोग कहते साहित्यकार ऐसे भी होते हैं क्या ?

मार्च-अप्रैल :- कुछ आर्थिक हानि हुई। बाकी दोनों महीने सामान्य रहे। कृषि कार्य में व्यस्तता बनी रही। भाई पुत्तू सिंह के इलाज हेतु आगरा भी जाना हुआ।

मई-जून :- मई महीने में रूडसेट संस्थान (आगरा) में एक दस दिवसीय कोर्स हेतु प्रवेश लिया। हॉस्टल में रुका। बीच में एक-दो दिन घर पर भी गया। बहुत सारे नये मित्र बने। एक हरामी भी मिल गया, जो मेरे पड़ोसी गांव का ही निकला।



आठ जून को पहली बार पड़ोसी देश नेपाल की यात्रा का शुभ मुहूर्त बना। यह मेरी पहली विदेश यात्रा रही। इस यात्रा का श्रेय आदरणीय डॉक्टर नरेश कुमार सिहाग एडवोकेट व डॉ. विकास शर्मा जी (हरियाणा वालों) को जाता है।



जुलाई :- फिल्मों में देखा है, किताबों में पढ़ा है कि भारतीय नेता कितने बड़े धूर्त होते हैं। लेकिन जुलाई महीने में साक्षात् देखा भी… क्षेत्रीय विधायक (अब पूर्व) के सफेद झूठ का दर्शन हुआ और सबूतों के अभाव में मैं कोई विधिक कार्यवाही भी न कर सका।

अगस्त- सितंबर- अक्टूबर- नवंबर :- पूरे चार महीने साहित्य सृजन, साहित्यिक कार्यक्रम, खेती किसानी में व्यस्त रहा। इस बीच कई जगह प्राइवेट सेक्टरों में नौकरी की तलाश भी करता रहा। सितंबर महीने में हिंदी दिवस के पावन अवसर पर अपने संपादित संग्रह – भूमिपुत्र का विमोचन पूर्व विधायक राजेंद्र सिंह के कर कमलों से संपन्न कराया। साथ रहे अवधेश कुमार निषाद मझवार, भूरीसिंह, रामकुमार, हिम्मत सिंह, जीतेंद्र वर्मा आदि।



दिसंबर :- इस महीने मेरा लघुकथा संग्रह – ‘जगंल की इज्जत’ पंजाब से प्रकाशित हुआ। प्रयास लघु है, परंतु प्रसन्नता बहुत बड़ी है। एक लघुफिल्म में अभिनय करने का मौका भी मिला। बाकी चल रहा है…

समय के थपेड़े खाते हुए। हंसते -रोते पूरा वर्ष कब -कैसे निकल गया पता ही नहीं चला। खैर जो समय निकल गया अब उसका मलाल क्या ? दिसंबर खत्म होने को है। नया वर्ष – 2023 बाहें फैलाये सामने खड़ा है। मुझे नहीं पता कि ये मुझे क्या-क्या नया देगा और और मेरा क्या-क्या नया पुराना मुझसे छीनेगा। जो भी हो प्रकृति का निर्णय सहर्ष स्वीकार रहेगा। सच बताऊं ! सहर्ष स्वीकारने में ही हम सबकी भलाई है।



सभी जाने-अनजाने मित्रों, शुभचिंतकों से क्षमा प्रार्थी हूं। कभी वैचारिक मतभेद का टकराव हुआ हो और वे अभी भी मुझसे मुंह फुलाए बैठे हों। मैं मानवता के नाते उन सभी सम्मानित महानुभावों के श्रीचरणों में क्षमा प्रार्थी हूं।

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वर्ष 2022 की आखिरी चिट्ठी, फिल्मों में देखा है, किताबों में पढ़ा है कि भारतीय नेता कितने बड़े धूर्त होते हैं। लेकिन जुलाई महीने में साक्षात् देखा भी... क्षेत्रीय विधायक (अब पूर्व) के सफेद झूठ का दर्शन हुआ... आगरा, उत्तर प्रदेश से मुकेश कुमार ऋषि वर्मा की कलम से...

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