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कोटद्वार में आवारा कुत्तों का हमला लगातार बढ़ रहा है, और पिछले सात दिनों में 104 लोग इसके शिकार बने हैं। बढ़ते मामलों के बावजूद नगर निगम की निष्क्रियता ने लोगों की परेशानियों और डर को और गहरा कर दिया है।
- कोटद्वार में कुत्तों का कहर, प्रशासन की बड़ी लापरवाही उजागर
- सात दिनों में 104 लोगों को काटा, नगर निगम के इंतज़ार में एबीसी सेंटर
- सड़कों पर आवारा कुत्तों का कब्ज़ा, शहरवासी दहशत में
- एंटी-रेबीज़ इंजेक्शन की मांग बढ़ी, बेस अस्पताल में रोज़ाना 20 पीड़ित पहुंच रहे
कोटद्वार। कोटद्वार शहर और उसके आसपास के क्षेत्रों में पिछले कुछ महीनों से आवारा कुत्तों का आतंक लगातार बढ़ता जा रहा है, लेकिन पिछले एक सप्ताह में हालात इतने बिगड़ गए कि मात्र सात दिनों के भीतर 104 लोगों को इन कुत्तों ने काट लिया। यह आंकड़ा न केवल खतरे की गंभीर तस्वीर पेश करता है बल्कि यह भी दिखाता है कि प्रशासन इस पूरी स्थिति को लेकर कितना सुस्त और लापरवाह है। शहर में रहने वाले लोगों के लिए सुबह-शाम घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया है।
विकास नगर, लकड़ी पड़ाव, मानपुर, लालपानी, ध्रुवपुर, कलालघाटी, झंडीचौड़ और बालासौड़ जैसे क्षेत्रों में हर दिन 15 से 20 लोग कुत्तों के हमलों से घायल होकर बेस चिकित्सालय पहुंच रहे हैं। अस्पताल में एंटी रैबीज़ इंजेक्शन की मांग बढ़ गई है, जबकि कई लोग निजी क्लीनिकों का सहारा भी ले रहे हैं। इसके बावजूद नगर निगम की ओर से न कोई सक्रिय अभियान चलाया गया और न ही सड़कों पर बढ़ती कुत्तों की संख्या का कोई ठोस सर्वे किया गया। शहर में कितने आवारा कुत्ते हैं—यह बुनियादी जानकारी तक निगम के पास नहीं है, जो उनकी उदासीनता का स्पष्ट उदाहरण है।
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कुत्तों की बढ़ती आबादी और हमलों को नियंत्रित करने के लिए निगम प्रशासन ने हल्दूखाता पट्टी के उत्तरी झंडीचौड़ क्षेत्र में एनिमल बर्थ कंट्रोल (एबीसी) सेंटर के निर्माण के लिए जमीन का चयन किया था। इस परियोजना से जुड़े कागज़ात भी शासन को भेजे गए, किंतु फ़ाइल वहीं अटककर रह गई। सेंटर निर्माण अब तक शुरू नहीं हो सकता, जिसका सीधा असर शहर में आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या पर पड़ रहा है। यदि एबीसी सेंटर समय पर बन जाता, तो कुत्तों का प्रजनन नियंत्रण में होता और आज की स्थिति शायद इतनी भयावह न होती। इस बीच नगर निगम ने कुत्तों का टीकाकरण करवाने की बात जरूर कही है, लेकिन यह उपाय न पर्याप्त है और न ही प्रभावी। टीकाकरण की सीमित कोशिशों के बावजूद कुत्तों को रखने, आबादी नियंत्रित करने या आपातकालीन कार्रवाई करने की कोई ठोस व्यवस्था निगम के पास मौजूद नहीं है।
इस स्थिति को देखते हुए शहरवासियों में नाराजगी और भय दोनों तेजी से बढ़ रहा है। खासकर महिलाएं, बुजुर्ग और बच्चे इन हमलों के मुख्य शिकार बन रहे हैं। सुबह के समय ऑफिस जाने वाले लोग और शाम को बाजार की ओर निकलने वाले नागरिक समूहों में घूम रहे कुत्तों से परेशान हैं। कई स्थानों पर कुत्ते झुंड बनाकर चलते हैं और वाहनों का पीछा तक करते हैं। नगर निगम ने आवारा कुत्तों के भोजन और पानी के लिए कुछ स्थान चिह्नित किए हैं और कुत्ता काटने की शिकायतों के लिए नोडल अधिकारी भी नियुक्त किए हैं, लेकिन ये उपाय वर्तमान संकट के मुकाबले बेहद कमजोर साबित हो रहे हैं।
जब तक एबीसी सेंटर का निर्माण नहीं होता और शहर में कुत्तों की आबादी का वास्तविक सर्वे कर उनके लिए उचित योजना तैयार नहीं की जाती, तब तक हालात सुधरने के आसार कम ही हैं। नगर आयुक्त पीएल शाह के अनुसार सेल्टर हाउस की प्रक्रिया जारी है, लेकिन शहरवासी इस धीमी गति के चलते खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। कोटद्वार की सड़कों पर फिलहाल आवारा कुत्तों का राज है और प्रशासन का ढीला रवैया लोगों की परेशानी को और बढ़ाता जा रहा है।





