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कीरतपुर गांव का मछली पालन आज ग्रामीण अर्थव्यवस्था की एक मिसाल बन चुका है, जहां आठ तालाबों से हर साल दो हजार क्विंटल मछली बाजारों तक पहुंचती है। 39 वर्षों की निरंतर मेहनत से तैयार हुआ यह मॉडल रोजगार, उत्पादन और नवाचार—तीनों मोर्चों पर प्रेरक सफलता साबित हो रहा है।
- चार एकड़ से शुरू हुआ सफर अब 13 एकड़ में फैला
- मलखान सिंह बने जिले के सबसे बड़े मत्स्य उत्पादक
- हर साल 20–25 लाख की शुद्ध आय, व्यापारी खुद आते हैं गांव
- सर्दियों में तापमान सबसे बड़ी चुनौती
ऊधम सिंह नगर: कभी चार एकड़ के छोटे तालाब से शुरू हुआ मछली पालन आज कीरतपुर गांव में एक प्रेरक आर्थिक मॉडल बनकर खड़ा है। धीरे-धीरे बढ़ते प्रयासों और कभी हार न मानने वाली सोच ने इस गांव को आठ बड़े तालाबों वाले एक उत्कृष्ट मत्स्य उत्पादन केंद्र में बदल दिया है। मछली पालन को व्यवसाय से अधिक साधना मानने वाले मत्स्य उत्पादक मलखान सिंह ने 1986 में चार एकड़ भूमि में तालाब बनाकर यह सफर शुरू किया था। उस समय मछली 20 रुपये प्रति किलो बिकती थी, जबकि आज इसकी कीमत 95 से 150 रुपये प्रति किलो तक पहुंच चुकी है। समय के साथ तालाबों का विस्तार हुआ और आज कुल 13 एकड़ क्षेत्र में फैले आठ तालाबों का उत्पादन जिले की मत्स्य आपूर्ति का बड़ा हिस्सा बन चुका है।
इन तालाबों में रोहू, कतला, ग्रास कार्प और पंगेसियस जैसी प्रजातियों का उत्पादन किया जाता है। हर साल लगभग दो हजार क्विंटल मछली रुद्रपुर, बाजपुर, बरेली, पीलीभीत और बिलासपुर के बाजारों तक पहुंचती है। इसकी खास बात यह है कि उत्पादकों को खुद बाजार नहीं जाना पड़ता, बल्कि व्यापारी ही गांव आकर मछली खरीद लेते हैं। इससे परिवहन और बिचौलियों का खर्च बचता है और आय स्थिर रहती है। उत्पादन और रखरखाव पर सालाना 70 से 80 लाख रुपये तक का खर्च आता है, जबकि 20 से 25 लाख रुपये की शुद्ध आय निकल जाती है। इस कार्य से गाँव के चार स्थानीय लोगों को स्थायी रोजगार भी मिला है।
सर्दी के मौसम में तापमान मछली पालन के लिए सबसे बड़ी समस्या बनकर उभरता है। 16 डिग्री सेल्सियस से नीचे का तापमान मछलियों के लिए जानलेवा हो सकता है, इसलिए ठंड के महीनों में रात के समय तालाबों में ताजा पानी छोड़कर तापमान नियंत्रित करना पड़ता है। यह अतिरिक्त मेहनत और खर्च की मांग करता है, लेकिन उत्पादन की सुरक्षा के लिए आवश्यक है।
39 वर्षों की निरंतर तपस्या के बाद मलखान सिंह जिले के सबसे बड़े मत्स्य उत्पादक बन चुके हैं। उनके प्रयास बताते हैं कि योजनाओं, तकनीकी सहायता और समर्पित मेहनत के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी बड़े आर्थिक अवसर विकसित किए जा सकते हैं। सहायक निदेशक मत्स्य संजय छिम्वाल के अनुसार, कीरतपुर का मॉडल अन्य किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत है और यह दिखाता है कि सही दिशा में किए गए प्रयास ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती दे सकते हैं।





