खिचड़ी

खिचड़ी, क्यों दूसरों के घर में झांके। अपने काम से काम रखिए और समाज का एक आदर्श नागरिक बनकर समाज की निस्वार्थ भाव से सेवा करे़ और जन जन के प्रिय बनें। यही वक्त की पुकार हैं। #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर (राजस्थान)
किसी ज्ञानी महापुरुष ने कहा है कि खिचड़ी जब बर्तन में पकती हैं तो वह खिचड़ी रोगी को ठीक कर देती है लेकिन वही खिचड़ी किसी के दिमाग में पकती हैं तब सब कुछ गुड़ गोबर कर देती हैं अर्थात् सब कुछ बिगाड़ देती हैं।
आज देश में यही हो रहा हैं। हर किसी के दिमाग के किसी न किसी कोने में कहीं न कहीं हर वक्त खिचड़ी पकती ही रहती हैं। यही वजह है कि आज देश में चारों ओर अशांति का माहौल है। लोग अपनों की परवाह नहीं करते है और दूसरों के घर में तांका झांकी कर उनका घर उजाडने में लगे हुए हैं।
किसके घर में कब कौन आया, क्यों आया, किसके घर में कौन क्या कर रहा हैं, क्या खा रहा हैं, किसकी शर्ट की कालर फटी हैं। बस इसी बात का ध्यान रखते हैं। इससे उन्हें मिलने वाला कुछ भी नहीं है लेकिन फिर भी तांक-झांक करने से बाज नहीं आते।
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अगर ऐसे लोग दूसरों के घरों में तांक-झांक करना बंद कर दे तो समाज में व्याप्त अशांति में से आधी अशांति ( टेंशन ) यूं ही समाप्त हो जायेगा और हर व्यक्ति व परिवार तनाव मुक्त हो जायेगा। इसलिए जीवन को शान्ति के साथ जीओं और दूसरों को भी शांति से जीने दो।
जब हमें यह अमूल्य मानव जीवन मिला हैं तो अपार खुशियों के साथ जीवन व्यतीत कीजिए। क्यों किच किच करें। क्यों दूसरों के घर में झांके। अपने काम से काम रखिए और समाज का एक आदर्श नागरिक बनकर समाज की निस्वार्थ भाव से सेवा करे़ और जन जन के प्रिय बनें। यही वक्त की पुकार हैं।
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