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उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में ब्रेस्ट कैंसर के बढ़ते मामलों ने चिकित्सा विशेषज्ञों और स्थानीय परिवारों की चिंता गहरा दी है। केवल छह महीनों में अल्मोड़ा और बागेश्वर से 25 महिलाओं को कीमोथेरेपी तक पहुंचने पर मजबूर होना पड़ा, जबकि जागरूकता की कमी को इसका सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है।
- पहाड़ों में ब्रेस्ट कैंसर का खतरा बढ़ा, छह माह में 25 महिलाएं कीमोथेरेपी पर
- कामकाजी महिलाओं में बढ़ रहा ब्रेस्ट कैंसर, अल्मोड़ा-बागेश्वर में हालात चिंताजनक
- देर से जांच और जागरूकता की कमी ने बढ़ाया खतरा, कम उम्र की महिलाएं भी प्रभावित
- बेस अस्पताल में बढ़े ब्रेस्ट कैंसर के मामले, डॉक्टरों ने दी जल्द जांच की सलाह
अल्मोड़ा/बागेश्वर। उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में महिलाओं की सेहत एक बड़े खतरे की ओर बढ़ रही है, क्योंकि पर्वतीय जिलों में ब्रेस्ट कैंसर के मामलों में अचानक आई तेज़ वृद्धि ने चिंताओं को नया आयाम दे दिया है। पहाड़ों की कामकाजी और घरेलू जिम्मेदारियों में उलझी महिलाएं अक्सर शरीर में दिखाई देने वाले शुरुआती संकेतों को नजरअंदाज कर देती हैं, और यह लापरवाही बीमारी को गंभीर अवस्था तक पहुंचा रही है। बीते छह महीनों में अकेले अल्मोड़ा और बागेश्वर जिलों से 25 महिलाएं कीमोथेरेपी तक पहुंच चुकी हैं, जो स्थानीय स्वास्थ्य ढांचे और जागरूकता की कमी दोनों पर गंभीर सवाल खड़े करती है।
बेस अस्पताल के सर्जरी विभाग में हाल के महीनों में स्तन संबंधी समस्याओं के साथ आने वाली महिलाओं की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। अस्पताल प्रबंधन के अनुसार, पिछले दो महीनों में हुई लगभग 40 जांचों में से 10 से अधिक मरीजों में ब्रेस्ट कैंसर जैसे गंभीर लक्षण पाए गए। विशेषज्ञ बताते हैं कि कई महिलाएं स्तन या बगल में नई गांठ बनने, सूजन आने, निप्पल में बदलाव, असामान्य डिस्चार्ज या त्वचा में लालिमा दिखने पर भी संकोच या सामाजिक झिझक के कारण चिकित्सकीय सलाह नहीं लेतीं। यह देरी बीमारी को तीसरी या चौथी अवस्था तक पहुंचा देती है, जिससे फेफड़ों और अन्य अंगों तक कैंसर फैलने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।
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चिकित्सकों के अनुसार, ब्रेस्ट कैंसर के बढ़ते मामलों के पीछे मुख्य कारण आनुवंशिक प्रवृत्ति, तनाव, हार्मोनल बदलाव, देर से मातृत्व और स्तन में अनदेखी की गई पुरानी गांठें हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि समय रहते की गई जांच और उपचार इस बीमारी को पूरी तरह नियंत्रित कर सकता है, लेकिन समस्या तब बढ़ती है जब महिलाएं लक्षणों को हल्के में लेती हैं या इलाज में अत्यधिक देर कर देती हैं। शुरुआती अवस्था में ट्यूमर का आकार छोटा होता है, जिससे सर्जरी और उपचार की सफलता दर भी काफी बढ़ जाती है।
डॉ. अंकुर यादव, असिस्टेंट प्रोफेसर और बेस अस्पताल के कैंसर विशेषज्ञ, बताते हैं कि विशेष रूप से 40 वर्ष से अधिक आयु की महिलाओं के लिए मैमोग्राफी कराना बेहद जरूरी है। शुरुआती पहचान होने पर उपचार के परिणाम काफी बेहतर होते हैं और मरीज की स्वस्थ होने की संभावना भी अधिक रहती है। उन्होंने बताया कि बेस अस्पताल में कीमोथेरेपी और उन्नत सर्जिकल तकनीकों की उपलब्धता से पर्वतीय महिलाओं को बड़े शहरों पर निर्भर हुए बिना ही प्रभावी और समय पर इलाज मिल रहा है।
बीमारी के बढ़ते मामलों के बीच स्वास्थ्य विभाग और चिकित्सा विशेषज्ञों ने ग्रामीण और पर्वतीय क्षेत्रों में जागरूकता अभियान चलाने, महिलाओं को आत्म-परीक्षण के तरीकों के बारे में बताने और मैमोग्राफी को नियमित जांच का हिस्सा बनाने पर जोर दिया है। लगातार बढ़ते मामलों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि पहाड़ों में महिलाओं की सेहत को लेकर एक मजबूत और सामुदायिक स्तर पर गंभीर पहल की आवश्यकता है, ताकि बीमारी का पता समय रहते लगाया जा सके और अनावश्यक मौतों को रोका जा सके।





