
देहरादून| प्रधानमंत्री पोषण योजना (पूर्व में मिड डे मील योजना) में तीन करोड़ रुपये के घपले की जांच अब तेज़ हो गई है। सरकार ने मामले को गंभीरता से लेते हुए दो सदस्यीय जांच समिति गठित की है, जिसकी अध्यक्षता एडी गढ़वाल कंचन देवराड़ी कर रही हैं। समिति ने अपनी जांच की शुरुआत कर दी है और दो दिन में रिपोर्ट देने का निर्देश मिला है।
शिक्षा विभाग और बैंकिंग सिस्टम की मिलीभगत का संदेह
शिक्षा महानिदेशक दीप्ति सिंह ने जांच के लिए अपर निदेशक गढ़वाल कंचन देवराड़ी और वित्त नियंत्रक हेमेंद्र गंगवार को नामित किया है। जांच अधिकारियों के अनुसार, यह घोटाला शिक्षा विभाग की आंतरिक लापरवाही तक सीमित नहीं है, बल्कि बैंकिंग कर्मचारियों की भूमिका भी शक के घेरे में है। विभागीय सूत्रों के मुताबिक, इतनी बड़ी धनराशि का ट्रांजैक्शन बिना ओटीपी (वन टाइम पासवर्ड) के पूरा नहीं हो सकता, और हैरानी की बात यह है कि विभाग के पास किसी भी ट्रांजैक्शन का ओटीपी नहीं आया। इससे यह आशंका और गहरी हो जाती है कि बैंक के किसी अंदरूनी व्यक्ति की मिलीभगत के बिना यह संभव नहीं था।
दो दिन में देनी होगी प्रारंभिक रिपोर्ट
जांच टीम को निर्देश दिए गए हैं कि वे 48 घंटे के भीतर प्रारंभिक जांच रिपोर्ट सौंपें। इसके तहत खातों की ऑडिट रिपोर्ट, ट्रांजैक्शन हिस्ट्री, और लाभार्थियों की सूची की गहन पड़ताल की जा रही है। सूत्र बताते हैं कि कुछ फर्जी लाभार्थी खाते, या एक ही लाभार्थी के नाम से कई बार भुगतान की आशंका है।
किस बात की जांच होगी?
- ₹3 करोड़ की राशि किन-किन खातों में गई?
- क्या किसी बैंक शाखा ने नियमों को दरकिनार करते हुए ट्रांजैक्शन की अनुमति दी?
- क्या ओटीपी जानबूझकर विभागीय ईमेल/मोबाइल से हटाकर किसी और माध्यम पर भेजा गया?
- इस घोटाले में कौन-कौन से अधिकारी या कर्मचारी लापरवाही या साजिश में शामिल रहे?
योजनाओं की पारदर्शिता पर उठे सवाल
पीएम पोषण योजना बच्चों के पोषण और शिक्षा में सुधार के लिए देशव्यापी योजना है, लेकिन इस घोटाले ने सिस्टम की पारदर्शिता और जवाबदेही पर बड़ा प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया है। अगर जांच में बैंक और विभागीय कर्मियों की मिलीभगत सामने आती है, तो यह सिर्फ एक वित्तीय अनियमितता नहीं बल्कि नैतिक पतन का उदाहरण होगा—जहां बच्चों के भोजन तक का पैसा हड़प लिया गया।
आगे की कार्रवाई
राज्य सरकार और शिक्षा विभाग का कहना है कि किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा। जांच पूरी होने के बाद घोटाले से जुड़े सभी लोगों पर आपराधिक मामला दर्ज कर कार्रवाई की जाएगी। इसके अलावा भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए ऑडिट और निगरानी प्रणाली को सुदृढ़ करने की योजना बनाई जा रही है। तीन करोड़ के इस घोटाले ने एक बार फिर ये साबित किया है कि यदि निगरानी ढीली हो जाए तो सरकारी योजनाओं का लाभ असली हकदारों तक पहुंचने से पहले ही लूट लिया जाता है। इस मामले का निष्पक्ष और कठोर जांच तथा दोषियों पर कार्रवाई भविष्य के लिए एक चेतावनी होगी।