लोक संस्कृति का अभिन्न अंग है ‘इगास’ लोकपर्व
ओम प्रकाश उनियाल (स्वतंत्र पत्रकार)
लोकपर्व लोक संस्कृति और परंपराओं का द्योतक होते हैं। अपने-अपने क्षेत्र की पहचान का बोध कराते हैं लोकपर्व। उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों का एक लोकपर्व है ‘इगास-बग्वाल’। जो कि परंपरागत रूप से हर्षोल्लासपूर्वक मनाया जाता है। ‘इगास’ दीपावली को कहा जाता है। पर्वतीय अंचल में दीपावली(बग्वाल) के ग्यारह दिन बाद अर्थात कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को ‘इगास’ मनाने की परंपरा है।
कहीं ‘बूढ़ी दिवाली’ या ‘पहाड़ी दिवाली’ भी कहा जाता है। इस लोकपर्व को मनाने को लेकर अलग-अलग मान्यताएं जरूर हैं लेकिन तरीका एक जैसा ही है। इस दिन स्वाले(मीठी पूरियां)-भूड़े (उड़द दाल के पकौड़े) बनाए जाते हैं। प्रसाद के तौर पर पास-पड़ौस में बांटे जाते हैं। पालतू पशुओं की पूजा की जाती है।
उन्हें पीण्डू (विभिन्न प्रकार का पका हुआ मिश्रित अन्न) खिलाया जाता है। सींगों पर तेल लगाकर, हल्दी का टीका लगाया जाता है। उनके सिर पर फूल या माला सजायी जाती है। शाम के समय ‘भैलो’ (जलती मशालों वाला खेल जिसमें आस-पास के गांवों के लोगों से व्यंगात्मक तरीके से मजाक की जाती है)। पारंपरिक वाद्य-यंत्रों ढोल-डमाऊ की थाप पर नृत्य व गीत का आयोजन किया जाता है। अब तो इस प्रकार का वातावरण सुदुर ग्रामीण इलाकों में ही देखने को मिलता है।
बदलते समय के साथ-साथ पर्व मनाने के तरीके भी बदल रहे हैं। कहीं पलायन की मार झेलते हुए गांव हैं तो कहीं शहरों की छाप का असर। इगास पर्व पर अब लोग पहाड़ों में भी आतिशबाजी करते हैं। जिससे पहाड़ों की आबोहवा दूषित होती हैं। पशु-पक्षियों में भय का वातावरण पनपता है। नयी पीढ़ी को लोकपर्वों से अवगत कराने के लिए पर्वों की परंपरा बनाए रखना व संरक्षण जरूरी है। साथ ही साथ व्यापक प्रचार-प्रसार भी।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »ओम प्रकाश उनियाललेखक एवं स्वतंत्र पत्रकारAddress »कारगी ग्रांट, देहरादून (उत्तराखण्ड) | Mob : +91-9760204664Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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