अपने ही पराये हो गये
अपने ही पराये हो गये, आज इंसान केवल अपनी प्रसन्नता चाहता हैं। येन केन प्रकारेण पत्र पत्रिकाओं में अपना नाम व फोटों देखना चाहता है और दिन भर उसी प्रयास मे़ बावला हुआ फिरता रहता हैं। भला ऐसे में उनसे कैसे उम्मीद करें कि वे अपने हैं। #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर (राजस्थान)
अपना अपना ही होता हैं और पराया पराया ही होता हैं। यह बात मुझे सेवानिवृत्ति के बाद पता चली। जिन्हें मैं इतने दिनों तक अपना समझ रहा था वहीं आज पराया हो गया। उन्होंने तनिक भी नहीं सोचा कि हम इनके साथ इतने रहे और इन्होंने अपनी कितनी मदद की, लेकिन एक झटके में ही सारे संबंध खत्म हो गये। आज जब अपने ही पराये हो गये तो इतना दुःख हुआ मानों अपने शरीर से अपना एक अंग अलग हो गया।
ह सही है कि समय के अनुसार बदलाव आना ही चाहिए और परिवर्तन भी होना चाहिए। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम अपनों से ही दूर हो जाये। पहले टी वी ने और अब मोबाइल ने इंसान को इंसान से दूर कर दिया है। जब देखों तब लोग मोबाइल से चिपके मिलते हैं। कौन आया कौन गया से कोई मतलब नहीं रहा।
व्हाट्सएप पर बेकार की बकवास देख लेगे लेकिन घर आये मेहमान से बात करने की फुर्सत नहीं है। इतना ही नहीं मोबाइल पर झूठ बोलना भी सीख गया है। आज इंसान केवल अपनी प्रसन्नता चाहता हैं। येन केन प्रकारेण पत्र पत्रिकाओं में अपना नाम व फोटों देखना चाहता है और दिन भर उसी प्रयास मे़ बावला हुआ फिरता रहता हैं। भला ऐसे में उनसे कैसे उम्मीद करें कि वे अपने हैं। अगर यूं कहा जाए कि इंसान स्वार्थी हो गया है तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी ।
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