कैसे जीना है…!

सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान
कैसे जीना है यह बात हमारे हाथ में है लेकिन कितना जीना हैं यह परमात्मा के हाथ में हैं। अतः जो चीज हमारे हाथ में नहीं है उसकी हर वक्त चिंता क्यों करें। चिंता करते-करते हम मर जायेंगे लेकिन हासिल कुछ भी नहीं होगा। पर कैसे जीना हैं यह हमारे हाथ में है तो फिर क्यों न हम प्रेम, स्नेह, भाईचारे की भावना के साथ शांतिपूर्ण तरीके से जीवन व्यतीत करें। खुशी खुशी खुद भी जीएं और दूसरों को भी जीनें दें।
सभी के साथ सद् व्यवहार करें। परमात्मा से अच्छे संबंध बना लें तो फिर आपकों किसी की भी जरूरत नहीं पड़ेगी और आप खुद सबकी जरूरत बन जाओगे। कहते हैं कि तुम बस अपने आप से मत हारना फिर तुम्हें कोई नहीं हरा सकता।याद रखिए हीरा परखने वालें से ज्यादा महत्वपूर्ण पीड़ा परखने वाला होता है। इसलिए जीवन में एक दूसरे का सहयोग करना सीखें। एक दूसरे के साथी बनकर इस प्रतिस्पर्धा की दौड़ में अपने आप का स्थान प्रगति की प्रथम पंक्ति में बनाए रखियेगा। यही जीवन की वास्तविकता हैं। बाकी तो सब कहने की बातें हैं। जो समझ गया वह प्रगतिशील बन गया और जो ना समझ पाया वह पिछड़ गया।
सत्संग की झाड़ू : व्यक्ति को अपना मन हर वक्त साफ रखना चाहिए। उसमें काम, क्रोध, लोभ लालच, बेईमानी, छल कपट जैसी तमाम तरह की गंदगी का कोई भी कूड़ा-करकट नहीं होना चाहिए। जैसे हम अपने घर को साफ सुथरा रखने के लिए रोज झाडू लगाते हैं और रोज़मर्रा की चीजों को साफ कर उसे व्यवस्थित स्थान पर रखते हैं। ठीक उसी प्रकार मन को भी साफ रखना चाहिए। मन में किसी के भी प्रति राग ध्देष नहीं होना चाहिए। मन को साफ रखने के लिए सत्संग, भजन कीर्तन रूपी झाडू रोज लगानी चाहिए। हमारा यह शरीर ही मकान है जिसे साफ रखना हमारा परम दायित्व है।
सोच से मजबूत हो : कहते हैं कि ताकतवर वह व्यक्ति नहीं है जो शरीर से मजबूत हो अपितु ताकतवर वह व्यक्ति हैं जो अपनी सोच से मजबूत हो। शरीर से व्यक्ति को स्वस्थ रहना चाहिए और अपनी दिनचर्या को बनाएं रखना चाहिए वहीं दूसरी ओर व्यक्ति को अपनी सोच को भी मजबूत बनाएं रखना चाहिए। सोच तभी मजबूत हो सकती हैं जब व्यक्ति अपनी सोच को सकारात्मक रखें और हर वक्त सभी के लिए अच्छा सोचें। अपनों के लिए तो हर कोई सोचता हैं लेकिन जो दूसरों के हित के लिए भी सोचता हैं वहीं महान कहलाता है।
हम दर्द : यह दुनियां बड़ी ही मतलबी हैं तभी तो लोग कहते हैं कि दुनियां 420 हैं। यहां हर कदम सोच समझ कर ही रखना चाहिए। मतलब के बिना कोई किसी से बात नहीं करता। सब अपने ही स्वार्थ में व्यस्त हैं। किसी को भी किसी की चिंता नहीं है। इसलिए इस दुनियां में हमारे दोस्त हमदर्द होने चाहिए। दर्द देने के लिए तो सारी दुनियां तैयार बैठी हैं। अतः दोस्त ऐसा हो जो दुःख की घड़ी में भी हमारे साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने को तैयार हो। वैसे भी सच्चे दोस्त की पहचान दुःख की घड़ी में ही होती हैं।
गहरे संबंध : संबंध बड़ी बड़ी बाते करने से नहीं अपितु छोटे-छोटे भावों को समझने से गहरे होते हैं। संबंधों को बनाए रखना और लम्बे समय तक निभाये रखना भी एक कला है और फिर जिसने इस कला को सीख लिया समझो उसका जीवन धन्य हो गया। हमारे बड़े बुजुर्ग लोगों ने जिस तरह से अपने परिवारजनों से संबंध बनाये रखें वे आज भी चल रहे हैं। लेकिन आज के समय में संयुक्त परिवार टूट कर एकाकीपन का जीवन व्यतीत कर रहे हैं और जो संबंध हमारे बड़े बुजुर्ग लोगों ने बनाये थे.
उन्हें हमने तिनके की भांति बिखेर दिया। जब भाई भाई में प्रेम नहीं, पिता पुत्र में प्रेम नहीं, मित्र मित्र में प्रेम नहीं फिर भला रिश्तेदारों से कैसे प्रेम निभा पाता। नतीजन सारे रिश्ते झाडू की भांति बिखर गये और इंसान मोबाइल की दुनियां में खो गया। एक ही कमरे मैं बच्चें, माता-पिता, भाई बहन सभी बैठे है और फिर भी किसी में भी कोई भी संवाद नहीं हो रहा है और सभी अपने-अपने मोबाइल पर व्यस्त हैं और माता-पिता दोनों बच्चों को देख रहे हैं कि बच्चे कब उनसे बात करेंगे। लेकिन कोई भी उनसे बात करने को तैयार नहीं है। यह कैसी विडम्बना है। इसलिए कहते हैं कि संबंध बड़ी बड़ी बाते करने से नहीं बल्कि छोटे-छोटे भावों को समझने से गहरे होते हैं। इसलिए बच्चों को दिन में कुछ समय माता-पिता के संग बिताना चाहिए और उनके जीवन के अनुभवों का लाभ लेना चाहिए।