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हरिद्वार में 18 दिनों से चल रहा ‘स्वच्छ-सुंदर शहर’ अभियान शुरुआत में तो प्रभावी दिखा, लेकिन शहर की तंग गलियों, घाटों और संवेदनशील क्षेत्रों में गंदगी का ढेर अभी भी जस का तस बना हुआ है। प्रशासनिक सक्रियता के बावजूद अभियान ज़मीनी स्तर पर व्यापक बदलाव नहीं ला सका है।
- हरिद्वार में स्वच्छता अभियान की स्थिति खराब, हरकी पैड़ी के आसपास गंदगी बरकरार
- 18 दिन बाद भी ‘स्वच्छ-सुंदर’ अभियान अधूरा, कई क्षेत्रों में नहीं पहुंची टीमें
- हरिद्वार में स्वच्छता का सच: शुरुआत दमदार, लेकिन नतीजे बेहद कमजोर
- घाटों, गलियों और मोहल्लों में गंदगी का अंबार, अभियान की रफ्तार सवालों के घेरे में
हरिद्वार। धार्मिक नगरी हरिद्वार में प्रशासन द्वारा चलाए जा रहे ‘स्वच्छ-सुंदर शहर’ अभियान की शुरुआत भले ही उत्साहजनक रही हो, लेकिन वास्तविकता इसके बिल्कुल विपरीत नजर आ रही है। 18 दिनों से अभियान का व्यापक प्रचार-प्रसार हो रहा है, अधिकारियों और कर्मचारियों ने शुरुआती दिनों में कई प्रतीकात्मक स्वच्छता गतिविधियाँ कीं, परंतु इसका असर अब तक व्यापक स्तर पर दिखाई नहीं देता। शहर की तंग गलियों, भीतरी बस्तियों और गंगा तटों तक यह अभियान अभी नहीं पहुंच पाया है, जिसके कारण धरातलीय हालात अभियान की सफलता के दावों पर गंभीर सवाल खड़े कर रहे हैं।
सबसे चिंताजनक तस्वीर हरिद्वार के सबसे संवेदनशील और धार्मिक महत्व वाले क्षेत्र हरकी पैड़ी के आसपास दिखाई देती है। कांगड़ा घाट, नाई घाट और मलवीय द्वीप से जुड़े लकड़ी के पुल के दोनों ओर कूड़े और गंदगी के ढेर खुलेआम पड़े हैं। यह स्थिति न केवल स्वच्छता अभियान की विफलता को दर्शाती है, बल्कि प्रशासनिक निगरानी के अभाव पर भी सवाल खड़े करती है। हरकी पैड़ी को ड्राई ज़ोन घोषित किया गया है, लेकिन कांगड़ा घाट के अपर ब्रिज की एप्रोच दीवार पर देशी शराब की खाली पॉलिथीन और पैकेटों का ढेर साफ-साफ यह संदेश देता है कि नियमों के पालन में भारी लापरवाही बरती जा रही है।
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विडंबना यह है कि इन गंदगी से भरे स्थानों से पुलिस चौकी दूरी पर ही स्थित है, लेकिन उल्लंघन और कचरा फैलाने के मामलों पर कोई प्रभावी कार्रवाई होती नहीं दिखती। हरकी पैड़ी के पास जल पुलिस के वॉच टावर में भी गंदगी का अंबार जमा है, जो स्वच्छता और जिम्मेदारी के बीच के अंतर को स्पष्ट रूप से सामने लाता है। इसके अलावा क्राउड कंट्रोल रूम (सीसीआर) से सौ मीटर की दूरी पर स्थित दीनदयाल पार्किंग के निकासी मार्ग और आस्था पथ के बीच बड़ी मात्रा में कूड़ा फैला हुआ है। यह दृश्य बताता है कि अभियान मुख्य मार्गों तक सीमित रह गया है और अंदरूनी क्षेत्रों की ओर प्रशासन का ध्यान अभी भी न के बराबर है।
शहर की भीतरी बस्तियों, संकरी गलियों और बाहरी मोहल्लों में भी अभियान का असर बिल्कुल नगण्य है। लोग अब भी कूड़ा खुले में फेंक रहे हैं, न तो पर्याप्त डस्टबिन उपलब्ध हैं और न ही नियमित सफाई व्यवस्था। प्रशासनिक टीमें भी उन्हीं क्षेत्रों में सक्रिय दिखती हैं जहां से प्रदर्शनात्मक तस्वीरें और वीडियो बनाए जा सकते हैं। जबकि शहर की वास्तविक समस्या उन गलियों और मोहल्लों में है जहां सफाई कर्मियों की पहुंच नियमित नहीं होती।
जिलाधिकारी मयूर दीक्षित ने दैनिक जागरण से बातचीत में माना कि स्वच्छ-सुंदर हरिद्वार बनाना किसी अल्पकालिक अभियान का परिणाम नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि बदलाव में समय लगता है और लोगों की आदतों को बदलने में कम से कम तीन महीने का लगातार प्रयास जरूरी है। उन्होंने स्वीकारा कि जिस हाईवे पर एक सप्ताह पहले स्वच्छता अभियान चलाया गया था, वहां फिर से कूड़ा बिखरा पाया गया, जो यह दर्शाता है कि केवल सरकारी पहल पर्याप्त नहीं है—समुदाय की सहभागिता भी उतनी ही आवश्यक है।
प्रशासन का कहना है कि अभियान में निरंतर सुधार के प्रयास जारी रहेंगे और अधिक से अधिक लोगों को इससे जोड़ा जाएगा। हालांकि, शहरवासियों का कहना है कि जब तक घाटों, गलियों और मोहल्लों की स्थिति में वास्तविक सुधार नहीं आता और नियमित सफाई व्यवस्था सुनिश्चित नहीं की जाती, तब तक ‘स्वच्छ-सुंदर शहर’ का लक्ष्य केवल कागज़ों में ही सुंदर बना रह जाएगा। हरिद्वार की पवित्रता और स्वच्छता को बनाए रखने के लिए प्रशासन और जनता के बीच सामूहिक सामंजस्य व दीर्घकालिक रणनीति की जरूरत है, तभी इस अभियान की वास्तविक चमक शहर में दिखाई दे सकेगी।





