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हांसी, जो कभी हरियाणा क्षेत्र की राजधानी और प्रशासनिक शक्ति का केंद्र रहा, 1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेजी दंड नीति का शिकार होकर दशकों तक हाशिये पर चला गया। वर्ष 2025 में जिले का दर्जा मिलना केवल प्रशासनिक निर्णय नहीं, बल्कि हांसी के इतिहास, संघर्ष और आत्मसम्मान की पुनर्स्थापना का प्रतीक है।
- हांसी को मिला ऐतिहासिक न्याय, 2025 में जिला बनने की घोषणा
- 1857 के प्रतिरोध से 2025 की पहचान तक हांसी की यात्रा
- सत्ता का केंद्र रहा हांसी, उपेक्षा के बाद फिर उभरा
- इतिहास ने छीना, वक्त ने लौटाया—हांसी का जिला सपना साकार
डॉ. प्रियंका सौरभ
इतिहास कभी अचानक नहीं बदलता, वह धीरे-धीरे करवट लेता है। हरियाणा की प्राचीन नगरी हांसी इसका जीवंत उदाहरण है। एक समय यह नगर सत्ता, प्रशासन, व्यापार और सामरिक दृष्टि से उत्तरी भारत के सबसे महत्वपूर्ण केंद्रों में गिना जाता था। आज वही हांसी, जिसने सदियों तक शासन का भार उठाया, लंबे समय तक प्रशासनिक उपेक्षा झेलने के बाद एक बार फिर जिले के रूप में अपनी पहचान पाने की ओर अग्रसर हुई है। वर्ष 2025 में हांसी को नया जिला बनाए जाने की घोषणा केवल एक प्रशासनिक फैसला नहीं, बल्कि इतिहास के एक अधूरे अध्याय को पूरा करने की कोशिश के रूप में देखी जा रही है।
अंग्रेजों के भारत आगमन से बहुत पहले हांसी का गौरव अपने चरम पर था। जॉर्ज थॉमस के दौर में हांसी हरियाणा क्षेत्र की राजधानी के रूप में स्थापित थी। उस समय यह नगर दिल्ली परगना के अधीन उत्तरी भारत के प्रमुख व्यापारिक केंद्रों में शामिल था। हांसी से ही प्रशासनिक आदेश जारी होते थे और आसपास के बड़े भूभाग पर शासन संचालित किया जाता था। यह नगर केवल सत्ता का केंद्र नहीं था, बल्कि व्यापारिक गतिविधियों, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और सैनिक रणनीतियों का भी प्रमुख केंद्र था।
मुगल काल में भी हांसी का महत्व कम नहीं हुआ। अकबर के शासनकाल के ऐतिहासिक दस्तावेज़ों और नक्शों में हांसी को एक महत्वपूर्ण मुगल केंद्र के रूप में दर्शाया गया है। यहां एक टकसाल स्थापित थी, जहां सिक्कों का निर्माण होता था। किसी भी नगर में टकसाल का होना उसकी आर्थिक और प्रशासनिक ताकत का प्रतीक माना जाता था। इससे स्पष्ट होता है कि हांसी केवल एक कस्बा नहीं, बल्कि उस दौर की अर्थव्यवस्था का अहम स्तंभ था। हांसी की भौगोलिक स्थिति ने भी इसे सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण बना दिया था। दिल्ली, पंजाब और राजस्थान की ओर जाने वाले मार्गों पर स्थित होने के कारण यहां मुगलों ने सैनिक छावनी स्थापित की।
बाद में अंग्रेजों ने भी इसी सामरिक महत्ता को समझते हुए यहां अपनी सैन्य मौजूदगी बनाए रखी। हांसी की किलेबंदी, प्रशासनिक ढांचा और सैन्य व्यवस्था इसे उत्तरी भारत के सुरक्षित और संगठित नगरों में शामिल करती थी। लेकिन इतिहास की दिशा 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के साथ बदल गई। हांसी और आसपास के क्षेत्रों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ खुलकर विद्रोह किया। यह क्षेत्र उन इलाकों में शामिल था जहां अंग्रेजों को सबसे तीव्र प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। स्थानीय जनता, सैनिकों और जमींदारों ने अंग्रेजी सत्ता को चुनौती दी। 1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेजों ने प्रतिशोध की नीति अपनाई। जिन क्षेत्रों ने सबसे अधिक प्रतिरोध किया, उन्हें प्रशासनिक रूप से कमजोर किया गया। हांसी भी इसी नीति का शिकार बना।
इतिहासकारों के अनुसार लगभग 1870–80 के बीच हांसी से जिला मुख्यालय हटाकर हिसार को जिला बनाया गया, जिससे हांसी का प्रशासनिक महत्व लगभग समाप्त कर दिया गया। स्वतंत्रता के बाद 1966 में हरियाणा के गठन के समय हिसार राज्य का सबसे बड़ा जिला था। इसके बाद 1972 में भिवानी, 1975 में सिरसा, 1997 में फतेहाबाद और 2016 में चरखी दादरी को अलग जिले बनाए गए, लेकिन हर बार हांसी को प्रतीक्षा ही करनी पड़ी। इससे स्थानीय स्तर पर यह भावना मजबूत होती गई कि यह केवल प्रशासनिक देरी नहीं, बल्कि ऐतिहासिक उपेक्षा है।
पिछले लगभग दस वर्षों से हांसी को जिला बनाए जाने की मांग एक संगठित जन आंदोलन का रूप ले चुकी थी। सामाजिक संगठनों, व्यापार मंडलों और जनप्रतिनिधियों ने इसे केवल सुविधा का प्रश्न नहीं, बल्कि ऐतिहासिक न्याय का विषय बताया। वर्ष 2025 में जिले की घोषणा ने इस लंबे संघर्ष को सार्थकता दी। हांसी का जिला बनना प्रशासनिक विकेंद्रीकरण के साथ-साथ क्षेत्रीय विकास की नई संभावनाएं खोलता है। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और बुनियादी ढांचे के विस्तार के साथ यह निर्णय हांसी को फिर से केंद्र में लाने की दिशा में एक निर्णायक कदम है। यह उस नगर की आत्मा की पुनर्स्थापना है, जिसने कभी हरियाणा को राजधानी दी थी और जिसने उपेक्षा के बावजूद अपनी पहचान नहीं खोई।
लेखक: डॉ. प्रियंका सौरभ
परिचय: रिसर्च स्कॉलर (राजनीतिक विज्ञान), कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार
पता: उब्बा भवन, आर्यनगर, हिसार (हरियाणा)








