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चमोली जिले के गोपेश्वर स्थित पॉक्सो न्यायालय ने बहुचर्चित मामले में अभियुक्त राजेन्द्र सिंह उर्फ राजू को नाबालिग से यौन अपराध का दोषी मानते हुए 20 वर्ष के कठोर कारावास और 20 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों में कठोर दंड समाज में निवारक संदेश देने के लिए आवश्यक है और दोषी के प्रति किसी भी तरह की नरमी उचित नहीं।
- राजेन्द्र सिंह उर्फ राजू पॉक्सो अधिनियम में दोषी करार
- जुर्माना न भरने पर अतिरिक्त सजा का भी प्रावधान
- साक्ष्य और गवाहों के आधार पर अदालत का फैसला
- अन्य सह-अभियुक्तों को साक्ष्य के अभाव में राहत
गोपेश्वर (चमोली) | जनपद चमोली के गोपेश्वर स्थित विशेष सत्र न्यायालय (पॉक्सो) ने एक बहुचर्चित और संवेदनशील मामले में अहम फैसला सुनाते हुए अभियुक्त राजेन्द्र सिंह उर्फ राजू को पॉक्सो अधिनियम के तहत दोषी करार दिया है। न्यायालय ने दोष सिद्ध होने पर अभियुक्त को 20 वर्ष के कठोर कारावास तथा 20 हजार रुपये के अर्थदंड से दंडित किया है। साथ ही यह भी स्पष्ट किया गया कि यदि अभियुक्त जुर्माने की राशि अदा नहीं करता है तो उसे नियमानुसार अतिरिक्त सजा भुगतनी होगी।
विशेष सत्र न्यायाधीश विंध्याचल सिंह की अदालत में राज्य बनाम राजेन्द्र सिंह उर्फ राजू एवं अन्य आरोपितों के विरुद्ध यह मामला विचाराधीन था। लंबी सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष की ओर से प्रस्तुत साक्ष्यों, गवाहों के बयानों और चिकित्सकीय प्रमाणों का गहन परीक्षण किया गया। न्यायालय ने इन सभी तथ्यों के आधार पर अभियुक्त को पॉक्सो अधिनियम की धारा 5/6 के अंतर्गत दोषी पाया, जबकि भारतीय दंड संहिता की धारा 302 और 201 के आरोपों में अभियुक्त को दोषमुक्त कर दिया गया।
मामले की पृष्ठभूमि वर्ष 2020 की है, जब मई माह में पीड़िता की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी। परिजनों द्वारा व्यापक तलाश के बावजूद उसका कोई सुराग नहीं मिल पाया। 25 मई 2020 को गांव के समीप भड़कीयाधार जंगल क्षेत्र में एक पेड़ से लटका हुआ पीड़िता का शव बरामद हुआ, जिससे पूरे क्षेत्र में सनसनी फैल गई। सूचना मिलने पर राजस्व पुलिस और बाद में नियमित पुलिस ने मौके पर पहुंचकर आवश्यक विधिक कार्रवाई की और मामले की गहन जांच शुरू की।
जांच के दौरान यह तथ्य सामने आया कि पीड़िता नाबालिग थी और अभियुक्त राजेन्द्र सिंह के साथ उसका पूर्व से संपर्क था। हाईस्कूल प्रमाण पत्र और अन्य शैक्षणिक अभिलेखों के आधार पर पीड़िता की उम्र 18 वर्ष से कम पाई गई। अभियोजन पक्ष का आरोप रहा कि अभियुक्त ने नाबालिग पीड़िता को बहला-फुसलाकर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए, जो पॉक्सो अधिनियम के अंतर्गत गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है। मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष ने कुल 13 गवाहों को अदालत में पेश किया, जिनमें वादी, प्रत्यक्षदर्शी, पुलिस अधिकारी और चिकित्सक शामिल थे।
पोस्टमार्टम रिपोर्ट को भी महत्वपूर्ण साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया गया, जिसमें मृत्यु का कारण दम घुटना बताया गया। घटनास्थल से बरामद कपड़े, रस्सी, चुन्नी और अन्य भौतिक साक्ष्यों को भी न्यायालय के समक्ष रखा गया। अभियुक्त पक्ष ने स्वयं को निर्दोष बताते हुए आरोपों से इनकार किया और बचाव पक्ष के साक्ष्य भी प्रस्तुत किए, लेकिन न्यायालय ने अभियोजन पक्ष के साक्ष्यों को अधिक विश्वसनीय मानते हुए अभियुक्त को दोषी ठहराया। न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि पॉक्सो अधिनियम का मूल उद्देश्य नाबालिग बच्चों को यौन अपराधों से संरक्षण देना है और ऐसे अपराधों में कठोर सजा समाज में निवारक प्रभाव डालने के लिए आवश्यक है।
सजा सुनाते समय अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि अभियुक्त को विचाराधीन अवधि के दौरान जेल में बिताए गए समय का लाभ दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 428 के अंतर्गत दिया जाएगा। वहीं, मामले में नामजद अन्य सह-अभियुक्तों मंगल सिंह, धनुली देवी, योगेन्द्र सिंह, नरेंद्र सिंह और वीरेंद्र सिंह के विरुद्ध आरोप सिद्ध न होने के कारण न्यायालय ने उन्हें दोषमुक्त कर दिया। इस फैसले को क्षेत्र में बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों के प्रति न्यायिक सख्ती के रूप में देखा जा रहा है। कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के निर्णय समाज में स्पष्ट संदेश देते हैं कि नाबालिगों के साथ यौन अपराध करने वालों को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा। अदालत के आदेश के बाद दोषी अभियुक्त को सजा भुगतने के लिए जेल भेज दिया गया है।





