भगवान और भक्त
भगवान और भक्त, वे अपने भक्तों पर कभी भी कोई आंच नहीं आने देते हैं। क्योंकि ईश्वर भक्तों के लिए है और भक्त ईश्वर के लिए। अगर हम अच्छे कर्म करते हैं तो भगवान भी संकट की घडी में हमारी मदद करते हैं। #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर (राजस्थान)
ईश्वर जो कुछ भी करता है उसमें हमारा भला ही छिपा होता हैं। हमारे माता – पिता और गुरू ईश्वर के प्रतिनिधि ही हैं, इसलिए इनके प्रति भी ईश्वर जैसी ही श्रध्दा होनी चाहिए और यही हमारे आदर्श संस्कार हैं । दुकानदार के लिए जैसे ग्राहक ईश्वर तुल्य होता है, ठीक उसी प्रकार गृहस्थी के लिए मेहमान ईश्वर तुल्य होता है। इसलिए इंसान को अपने धर्म का पालन निष्पक्ष होकर करना चाहिए।
व्यक्ति को हर वक्त अपने स्वार्थ के लिए ही नही सोचना चाहिए, चूंकि कभी – कभी कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पडता हैं। दूसरों की खुशियों के लिए अपनी खुशी का भी त्याग करना पडता हैं। जीवन में ऐसे भी अवसर आते है जब कोई बात हम किसी को आसानी से नही समझा सकते, उसी बात को एक अनजान और अशिक्षित व्यक्ति उसे आसानी से समझा देता हैं।
चूंकि ऐसे लोगों के पास जीवन का अनुभव होता है। नेक का करने का कोई समय नहीं होता हैं। जब भी कार्य करे तब नेक कर्म ही करे।रिश्तों की प्रगाढता में नियत देखी जाती है न कि कीमत। एक मां अपने बच्चे की अच्छाई और भलाई के लिए बहुत कुछ अच्छी तरह से समझती हैं ठीक उसी प्रकार ईश्वर भी अपने सच्चे भक्तों के कल्याण के लिए सदैव तत्पर रहते हैं।
वे अपने भक्तों पर कभी भी कोई आंच नहीं आने देते हैं। क्योंकि ईश्वर भक्तों के लिए है और भक्त ईश्वर के लिए। अगर हम अच्छे कर्म करते हैं तो भगवान भी संकट की घडी में हमारी मदद करते हैं। शक्कर चाहे दूध में डालों या दही में वह अपनी मिठास नही़ छोडती है़, ठीक उसी प्रकार व्यक्ति को भी हर परिस्थिति में समान बने रहना चाहिए और अंहकार, क्रोध, घमंड से दूर रहकर प्यार व स्नेह को बनाये रखना चाहिए।
कोई भी व्यक्ति धन दौलत से पूंजीपति नहीं बनता है अपितु अपने आदर्श संस्कारों व नेक व्यवहार से ही बनता हैं। चूंकि यही वह पूंजी है जो हमारे इस लोक को और परलोक को सुधार सकती हैं। अतः जीवन में पूजा, पाठ, कथा, भजन व कीर्तन करते रहना चाहिए। प्रभु तो हमारे भाव के भूखे है। वे भक्त के कपडे, अमीरी, गरीबी, शिक्षा, डिग्री नहीं देखते अपितु भक्त का भाव देखते है।
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वर्तमान परिस्थितियों में एक महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति एवं उत्तम विचार ।
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