
विनोद सिंह नामदेव “शजर”
आज नहीं तो कल निकलेगा।
हर मुश्किल का हल निकलेगा।
तख्ती पर नारे लिख लिखकर
सड़कों पर जब दल निकलेगा।
जल जायेगी लेकिन यारो,
रस्सी से नहीं बल निकलेगा।
निकला है फिर भाषण देने,
बातों से कब छल निकलेगा।
गाद बची रहने दो ताल में,
इसमें से ही कमल निकलेगा।
ऐसा दिन आयेगा यक़ीनन,
बादल में भूतल निकलेगा।
हो जायेगी पाक मुहब्बत,
आँखों से जब जल निकलेगा।
तलबे चांट रहा है बता दे,
लेकर कब पत्तल निकलेगा।
हाथों में पैरहन लेकर कब,
उस घर से पागल निकलेगा।
ग़लती से मैं दिख जाऊं तो,
रस्ता वो भी बदल निकलेगा।
भट्टी में पिघलाकर देखो,
सोने में पीतल निकलेगा।
कुछ तो है उसके हाथों में,
मैल नहीं तो मल निकलेगा।
धूप छुपाने ज़ज्बातों की,
फिर काला बादल निकलेगा।
अंधों के इन बाज़ारों में,
खोटा सिक्का चल निकलेगा।
दम तो उसके पैरो में है,
जो घर से पैदल निकलेगा।
सुर्ख़ ‘शजर’ धरती के दिल से,
तेरा भी दल-दल निकलेगा।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
![]() | From »विनोद सिंह नामदेव“शजर शिवपुरी”Address »लेखक एवं कवि, इन्दौर (मध्य प्रदेश)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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