गौरैया
प्रेम बजाज
हर पेड़ पर चहकती थी गौरैया,
मीठे गीत सुनाती थी गौरैया,
बच्चो के मन को भाती थी गौरैया।
फूदक-फुदक कर नाच दिखाती
लुका-छिपि का जैसे खेल हो खेलती।
जाने कहां खो गई वो चिरईया,
अब तो कहीं नज़र ना आती है,
घरों में भी कहां रह गए झरोखे जहां जाकर वो डेरा डाले।
ना ही दिखती अब वो चिड़िया,
ना चुं- चुं सुनाई देती है,
नज़र लगी ना जाने किस काले बिल्ले की,
दाना भी तो ना चुगने वो आती है।
रहे ना अब वो मकान मिट्टी के,
जिनमें वो घोंसला बनाया करती थी,
देख के आंगन में शीशे को चोंच उससे लड़ाया करती थी।
फुदकती थी, चहकती थी बच्चो संग खेला करती थी,
कच्चे मकान बन गए पक्के,
पेड़ भी तो हमने काट डाले ,
ग़र फिर से ना पेड़ लगाए,
चिरैया बोलो कहां फिर घोंसला बनाए।
एक दिन ऐसा आएगा , पुछेंगे बच्चे कौन थी गौरैया,
कैसी वो दिखा करती थी, कैसे समझाएंगे उनको,
रह गई जो अब कहानी बन कर,
वो सुन्दर प्यारी चिरैया हुआ करती थी।
आओ मिल कर पेड़ लगाए,
जिस पे गौरैया घोंसला बनाए, प्यारी गौरैया को फिर से बुलाएं,
संग- संग उसके हम चहचहाऐं ,
20 मार्च को सब गौरेया दिवस मनाएं।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »प्रेम बजाजलेखिका एवं कवयित्रीAddress »जगाधरी, यमुनानगर (हरियाणा)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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