उत्तराखण्ड समाचार

निगम की भूमि अभिलेखों में जालसाजी

राज्य सूचना आयुक्त ने निगम को फटकार

निगम की भूमि अभिलेखों में जालसाजी, आयोग में सुनवाई के दौरान कुछ अभिलेखों के परीक्षण में पाया कि भवन कर से संबंधित खसरा नंबर नगर निगम के रिकार्ड में हैं ही नहीं। हालांकि, एक रिपोर्ट में निगम ने इस जमीन के खसरा नंबर 652 व 653 बताए हैं।

देहरादून। सरकारी भूमि पर कब्जा करने का खेल भूमाफिया धड़ल्ले से खेल रहे हैं और इसमें कार्मिकों की भूमिका भी संदेह में है। नगर निगम की भूमि खुर्दबुर्द करने के भी कई मामले आते रहे हैं। ऐसे ही एक मामले में करनपुर क्षेत्र में स्थित निगम के भूखंड का जाली दस्तावेजों के आधार पर सहारनपुर के व्यक्ति ने संपत्ति कर जमा करा दिया। हालांकि, बाद में हंगामा होने पर निगम ने कर निर्धारण को निरस्त कर दिया।

अब इस मामले में आरटीआइ के तहत मांगी गई सूचना से असंतुष्ट पूर्व पार्षद ने आयोग में अपील दायर की, जिसकी सुनवाई करते हुए राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने इसे आपराधिक षड्यंत्र मानते हुए निगम को फटकार लगाई और मामले की एसआइटी जांच के निर्देश दिए हैं। आदेश की प्रति मुख्य सचिव व प्रमुख सचिव गृह को भेजी गई है। ताकि प्रकरण की जांच हाल में रजिस्ट्री फर्जीवाड़े में गठित एसआइटी या अन्य उच्च एजेंसी से कराई जा सके।

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सूचना आयुक्त योगेश भट्ट के आदेश के मुताबिक, सहारनपुर निवासी मो. तारिक अतहर ने डालनवाला थाने के बगल वाली करीब तीन बीघा भूमि (पुराना खसरा नंबर 495, नया खसरा नंबर 497 से 508, 576 से 583 व 792 से 796) पर अपना हक जताते हुए नौ नवंबर 2021 को 39,671 रुपये का भवन कर जमा करा दिया। जबकि मो. अतहर का नाम नगर निगम के किसी भी वर्ष की कर निर्धारण सूची में नहीं था।

इसको लेकर पूर्व पार्षद विनय कोहली ने शिकायत दर्ज कराई थी और इसका संज्ञान लेकर अधिकारियों ने 30 नवंबर 2021 को भवन कर की प्रवष्टि को त्रुटिपूर्ण बताते हुए निरस्त कर दिया। इसके बाद पूर्व पार्षद विनय कोहली भवन कर जमा कराने के लिए दाखिल स्वामित्व के अभिलेखों की सूचना निगम से आरटीआइ में मांगते हैं। तय समय के भीतर सूचना न दिए जाने पर पूर्व पार्षद कोहली अपील दायर करते हैं और इस दौरान निगम अधिकारी प्रकरण की जांच भी करा लेते हैं।

प्रथम अपील से होते हुए प्रकरण सूचना आयोग जा पहुंचता है। सुनवाई में सामने आता है कि अधिकारियों ने जांच के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की है। आयोग ने पाया कि बिना उचित प्रमाण के भवन कर की प्रविष्टि दर्ज करने के लिए आउटसोर्स कर्मी/डाटा एंट्री आपरेटर उर्मिला, गुरफान व अंकिता की सेवा समाप्त कर दी गई है। जांच में निगम के किसी भी अधिकारी की भूमिका को संदिग्ध नहीं पाया जाता है।



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आयोग में सुनवाई के दौरान कुछ अभिलेखों के परीक्षण में पाया कि भवन कर से संबंधित खसरा नंबर नगर निगम के रिकार्ड में हैं ही नहीं। हालांकि, एक रिपोर्ट में निगम ने इस जमीन के खसरा नंबर 652 व 653 बताए हैं। फिर भी जमीन की पुष्टि शेष प्रतीत होती है। आयोग ने सवाल किया कि क्या यह जमीन सिर्फ रिकार्ड में दर्ज है या इसका कोई असली वारिस भी है।



क्योंकि, आयोग के संज्ञान में सहारनपुर के ही निवासी नदीम की एक शिकायत लाई जाती है, जिसमें उसने आरोप लगाया है कि मो. तारिक अतहर उसके दादा की जमीन को फर्जी दस्तावेज के माध्यम से कब्जाना चाहता है। यह दस्तावेज भवन कर के लिए निगम कार्यालय में लगाए गए हैं। यह भूमि भी डालनवाला थाने के पास की ही बताई जाती है।



सूचना आयुक्त योगेश भट्ट अपनी टिप्पणी में कहा है कि यह प्रकरण भी हाल में सामने आए रजिस्ट्री फर्जीवाड़े से संबंधित हो सकता है। क्योंकि, यहां भी मूल दस्तावेज गायब करने या उनमें छेड़छाड़ की आशंका है। लिहाजा, इसकी जांच जरूरी है। आदेश की प्रति सचिव शहरी विकास व नगर आयुक्त को भी भेजी गई है। उनसे अपेक्षा की गई है कि वह नगर निगम की समस्त भूमि को मौजूदा स्थिति के साथ अपडेट करें और रिकार्ड के रखरखाव के लिए बेहतर इंतजाम कराएं।


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निगम की भूमि अभिलेखों में जालसाजी, आयोग में सुनवाई के दौरान कुछ अभिलेखों के परीक्षण में पाया कि भवन कर से संबंधित खसरा नंबर नगर निगम के रिकार्ड में हैं ही नहीं। हालांकि, एक रिपोर्ट में निगम ने इस जमीन के खसरा नंबर 652 व 653 बताए हैं।

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