मोहंद घाटी और हरिद्वार के भूगर्भीय रहस्यों की पड़ताल
बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के छात्रों ने किया भूवैज्ञानिक अध्ययन

अंकित तिवारी
देहरादून। लखनऊ स्थित बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, केंद्रीय विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग के स्नातक चतुर्थ सेमेस्टर के छात्रों ने मोहंद घाटी और हरिद्वार क्षेत्र का भूवैज्ञानिक अध्ययन किया। इस शैक्षणिक भ्रमण के दौरान छात्रों ने हिमालय की तलहटी में स्थित शिवालिक समूह, मुख्य ललाट थ्रस्ट (एमएफटी) और भू-आकृतिक विशेषताओं का गहन अध्ययन किया।
शैक्षणिक दौरे के दौरान डा. अनूप कुमार सिंह ने छात्रों को बताया कि मोहंद घाटी और हरिद्वार क्षेत्र की भूवैज्ञानिक विशेषताएँ शिवालिक समूह की उपस्थिति से निर्धारित होती हैं। शिवालिक समूह में निचला, मध्य और ऊपरी शिवालिक संरचनाएँ शामिल हैं, जो हिमालय की पर्वत श्रृंखला के निर्माण के दौरान बनी तलछटी चट्टानों का हिस्सा हैं। इसके अतिरिक्त, इस क्षेत्र की एक महत्वपूर्ण भूवैज्ञानिक विशेषता मुख्य ललाट थ्रस्ट (एमएफटी) है, जिसे स्थानीय रूप से मोहंद थ्रस्ट के रूप में भी जाना जाता है। यह थ्रस्ट क्षेत्र के परिदृश्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
उन्होंने मोहंद घाटी की भू-आकृतिक विशेषताएँ बताते हुए बताया कि बताया कि दून घाटी जलोढ़ क्षेत्र इस क्षेत्र का एक बड़ा भाग दून घाटी जलोढ़ से ढका हुआ है, जिसे तृतीयक और पूर्व-तृतीयक चट्टानों के ऊपर स्थित माना जाता है। मोहंद एंटीकलाइन यह क्षेत्र की एक प्रमुख भूवैज्ञानिक संरचना है, जो हिमालयन फ्रंटल थ्रस्ट (एचएफटी) और मुख्य ललाट थ्रस्ट (एमएफटी) के बीच स्थित है।मोहन राव नदी यह नदी मध्य और ऊपरी शिवालिक तलछट को उजागर करती है और क्षेत्र की भूवैज्ञानिक संरचना को समझने में सहायक है।
हरिद्वार क्षेत्र का भूवैज्ञानिक महत्व : बताते हुए बताया कि हरिद्वार भूवैज्ञानिक दृष्टि से एक संक्रमणकालीन क्षेत्र में स्थित है, जहाँ निचले शिवालिक और भाबर क्षेत्र का मिलन होता है। इस क्षेत्र में नदी की धाराओं का वेग कम हो जाता है, जिससे बड़ी मात्रा में तलछट का जमाव होता है। भूविज्ञान विभाग के डा. पवन कुमार गौतम और डा. प्रियंका सिंह ने छात्रों के विभिन्न प्रश्नों का समाधान किया।
इस क्षेत्र की जटिल भूवैज्ञानिक संरचनाओं को विस्तार से समझाया। छात्रों ने इस शैक्षणिक भ्रमण को एक स्मरणीय अनुभव बताया और इसके सफल आयोजन के लिए विभागाध्यक्ष प्रो. नरेंद्र कुमार तथा भूविज्ञान विभाग के अन्य शिक्षकों का आभार व्यक्त किया।