पत्रों की प्रर्दशनी

पत्रों की प्रर्दशनी, वहीं दूसरी ओर देश भर में चरमराई डाक वितरण व्यवस्था के कारण भी साधारण डाक जनता तक नहीं पहुंच पा रही है जिसके कारण पत्र लेखन प्रभावित हो रहा है। पत्रों की इस प्रर्दशनी में वर्ष 2002 से लेकर अब तक के पत्र देखने को मिलें। #कार्यालय संवाददाता
जोधपुर। पत्र लेखन भी एक कला है। पत्र लेखन से आपसी प्रेम, स्नेह और भाईचारे की भावना विकसित होती हैं वहीं दूसरी ओर विचार शक्ति, बौद्धिकता, श्रद्धा, सक्रिय संवेदनशीलता और निष्ठा बढती हैं तथा विचारों, भावनाओं को भी उर्धवगामी बनाने में लेखन सहयोग करता है।
यह उद् गार साहित्यकार सुनील कुमार माथुर ने शौभावतों की ढाणी, खेमें का कुंआ, पालरोड में आयोजित पत्रों की प्रर्दशनी के दौरान अपने उद् बोधन में व्यक्त किये. माथुर ने कहा कि आज आनलाईन शिक्षा के चलते व मोबाइल क्रांति के कारण लोगों में लेखन की प्रवृति समाप्त होती जा रही है और यही वजह है कि विधार्थी परीक्षा में अपनी लेखन प्रतिभा में पिछडते जा रहे हैं।
वहीं दूसरी ओर देश भर में चरमराई डाक वितरण व्यवस्था के कारण भी साधारण डाक जनता तक नहीं पहुंच पा रही है जिसके कारण पत्र लेखन प्रभावित हो रहा है। पत्रों की इस प्रर्दशनी में वर्ष 2002 से लेकर अब तक के पत्र देखने को मिलें। जिन्हें देखकर दर्शक दंग रह गए और दांतों तले अंगुली दबा ली।
‘पंडित दीनदयाल उपाध्याय’ राष्ट्रवादी पत्रकारिता के पुरोधा : डॉ सुनीता