
अजय एहसास
हमको हमारे दुख का
ये एहसास न होता
सांसों की महक तेरी
मेरे सांस में होता
बनता नहीं शायर न
मैं यूं करता शायरी
बिछड़ा जो मेरा तुम सा
कोई खास ना होता
हमको हमारे दुख का
ये एहसास न होता।
आंखों में आंसू बन के
दर्द बहते ही गए
पूछा जो किसी ने
तो ये हम कहते ही गए
मुझको न जलाती तो
फिर ये प्यास न होता
हमको हमारे दुख का
ये एहसास न होता
सांसो की महक तेरी
मेरे सांस में होता ।।
वो चल दिए थे ऐसे
जैसे झोंका हवा का
दर्दों को मेरे ना थी
जरूरत भी दवा का
हो मित्र आप जैसे
कहां शत्रु की कमी
हंसते ही रहे देख
मेरे आंख की नमी
तू भूल कर भी जो
हमारे पास न होता
हमको हमारे दुख का
ये एहसास ना होता
सांसों की महक तेरी
मेरे सांस में होता ।
बरसात के दिनों में
वो जो नाव बनी थी
पानी के थपेड़ों से
वो भी डूब गई थी
धरती को मोहब्बत का
ये एहसास ना होता
बाहों को थामें उसके
जो आकाश ना होता
सांसों की महक तेरी
मेरी सांस में होता
हमको हमारे दुख का
ये एहसास ना होता
सांसों की महक तेरी
मेरे सांस में होता।।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
![]() | From »अजय एहसाससुलेमपुर परसावां, अम्बेडकर नगर (उत्तर प्रदेश)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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