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देहरादून का वायु गुणवत्ता सूचकांक 300 के करीब पहुंचकर साल की सबसे खराब स्थिति में पहुंच गया है, जिससे राजधानी की हवा दिल्ली जैसी हो गई है। दीपावली से भी अधिक प्रदूषण के चलते सांस के रोगियों और संवेदनशील वर्गों की चिंता लगातार बढ़ रही है।
- दिसंबर में लगातार बिगड़ती हवा, स्मॉग की चादर में लिपटा दून
- पीएम 2.5 और पीएम 10 बने प्रदूषण के मुख्य कारण
- सांस के मरीजों, बुजुर्गों और बच्चों के लिए बढ़ा खतरा
- बारिश और तेज हवाओं के बिना राहत के आसार कम
देहरादून। देशभर में बढ़ते वायु प्रदूषण का असर अब उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में भी गंभीर रूप से दिखाई देने लगा है। अपनी स्वच्छ आबोहवा के लिए पहचाने जाने वाले दून की हवा इस समय बेहद खराब श्रेणी में पहुंच चुकी है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार मंगलवार को देहरादून का वायु गुणवत्ता सूचकांक 294 दर्ज किया गया, जबकि उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में एक दिन पहले यह आंकड़ा 299 तक पहुंच गया था। यह स्थिति इस पूरे वर्ष में अब तक की सबसे खराब मानी जा रही है।
आंकड़े बताते हैं कि देहरादून में इस बार दिसंबर के महीने में लगातार प्रदूषण का स्तर ऊंचा बना हुआ है। दीपावली के बाद 20 अक्तूबर को अधिकतम 254 एक्यूआई दर्ज किया गया था, लेकिन अब यह उससे भी ऊपर चला गया है। शाम ढलते ही शहर के कई इलाकों में स्मॉग की परत दिखाई देने लगी है, जिससे दृश्यता कम हो रही है और लोगों को सांस लेने में दिक्कत महसूस हो रही है। राजधानी की हवा की तुलना अब दिल्ली-एनसीआर से की जा रही है, जहां बढ़ता प्रदूषण पहले ही जनस्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा बन चुका है।
उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार प्रदूषण बढ़ने का मुख्य कारण पीएम 2.5 और पीएम 10 कणों का स्तर है। सोमवार को पीएम 2.5 का स्तर 119.83 और पीएम 10 का स्तर 134.11 दर्ज किया गया। विशेषज्ञों का कहना है कि पीएम 2.5 कण अपने बेहद छोटे आकार के कारण फेफड़ों के भीतर गहराई तक जाकर रक्त में मिल सकते हैं, जिससे यह स्वास्थ्य के लिए अधिक खतरनाक साबित होते हैं। यही वजह है कि एक्यूआई 200 के पार होते ही सांस से जुड़ी बीमारियों का जोखिम तेजी से बढ़ जाता है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक इस समय सबसे ज्यादा खतरा दमा, अस्थमा और अन्य श्वसन रोगों से पीड़ित लोगों, बुजुर्गों और छोटे बच्चों को है। डॉक्टरों का कहना है कि ऐसे लोगों को सुबह और देर शाम बाहर निकलने से बचना चाहिए, मास्क का प्रयोग करना चाहिए और किसी भी तरह की परेशानी होने पर तुरंत चिकित्सकीय सलाह लेनी चाहिए। मौसम विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले एक-दो दिनों में वायु गुणवत्ता में किसी बड़े सुधार की संभावना कम है। बारिश या तेज हवाएं चलने पर ही प्रदूषण के स्तर में गिरावट आ सकती है, क्योंकि बारिश धूल और प्रदूषक कणों को जमीन पर बैठा देती है और तेज हवाएं इन्हें फैला देती हैं। फिलहाल ऐसी मौसमी परिस्थितियां बनने के संकेत कमजोर बताए जा रहे हैं।
देहरादून के साथ-साथ ऋषिकेश की हवा पर भी प्रदूषण का असर दिखने लगा है। मंगलवार को ऋषिकेश का एक्यूआई 105 दर्ज किया गया, जो भले ही बेहद खराब श्रेणी में न आए, लेकिन सालभर अपेक्षाकृत साफ हवा वाले शहर के लिए यह चिंता का विषय माना जा रहा है। लगातार बिगड़ती वायु गुणवत्ता ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण को लेकर ठोस कदम उठाने की जरूरत अब और टाली नहीं जा सकती।





