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वर्ष 2010 का देहरादून डीप फ्रीजर हत्याकांड आज भी इंसानियत को शर्मसार कर देने वाला अपराध माना जाता है, जिसमें सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने अपनी पत्नी के 72 टुकड़े कर दिए। उच्च न्यायालय ने निचली अदालत द्वारा सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखते हुए फैसले पर मुहर लगा दी है।
- देहरादून का खौफनाक हत्याकांड, जिसे याद कर आज भी कांप उठता है शहर
- प्यार, शादी और फिर दरिंदगी; 72 टुकड़ों में बंटी एक जिंदगी की कहानी
- डीप फ्रीजर में छिपा कत्ल का सच, हाईकोर्ट ने बरकरार रखी उम्रकैद
- पत्नी की हत्या कर दो महीने तक सच छिपाता रहा पति, आखिरकार कानून के शिकंजे में आया
देहरादून का डीप फ्रीजर हत्याकांड जब भी चर्चा में आता है, तो इंसानियत, रिश्तों और भरोसे पर से विश्वास डगमगा जाता है। वर्ष 2010 में सामने आया अनुपमा हत्याकांड न केवल उत्तराखंड, बल्कि पूरे देश के सबसे जघन्य अपराधों में गिना जाता है। इस मामले में सॉफ्टवेयर इंजीनियर राजेश गुलाटी ने जिस क्रूरता और योजनाबद्ध तरीके से अपनी पत्नी अनुपमा गुलाटी की हत्या की, वह आज भी रोंगटे खड़े कर देता है। राजेश गुलाटी ने पत्नी अनुपमा की हत्या करने के बाद उसके शव के 72 टुकड़े किए और उन्हें करीब दो माह तक घर में रखे डीप फ्रीजर में छिपाकर रखा।
बाद में इन टुकड़ों को ठिकाने लगाने के लिए वह मालसी डियर पार्क के जंगल में फेंकता रहा। वर्ष 2017 में निचली अदालत ने उसे दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। अब उच्च न्यायालय ने भी इस फैसले को सही ठहराते हुए सजा को बरकरार रखा है। अदालत के इस निर्णय पर अनुपमा के परिजनों ने संतोष जताया है। राजेश और अनुपमा की मुलाकात वर्ष 1992 में दिल्ली के एक रेस्टोरेंट में एक कॉमन फ्रेंड के माध्यम से हुई थी। धीरे-धीरे दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ीं और सात साल तक चले प्रेम संबंध के बाद 10 फरवरी 1999 को दोनों विवाह बंधन में बंध गए। शादी के बाद अगले ही साल दोनों अमेरिका चले गए, जहां से उनके रिश्तों में तनाव की शुरुआत हुई।
वर्ष 2003 में अनुपमा अकेली भारत लौट आई, लेकिन राजेश ने उसे मनाकर 2005 में फिर अमेरिका ले गया। जून 2006 में अनुपमा ने जुड़वां बच्चों सिद्धार्थ और सोनाक्षी को जन्म दिया, इसके बावजूद दंपती के बीच मतभेद कम नहीं हुए। वर्ष 2008 में दोनों भारत लौट आए। परिवार की सलाह पर 2009 में वे देहरादून आकर प्रकाश नगर में किराये के मकान में रहने लगे और बच्चों का दाखिला डीपीएस स्कूल में कराया गया। देहरादून आने के बाद भी घरेलू कलह खत्म नहीं हुई। मामला घरेलू हिंसा से संरक्षण अधिकारी तक पहुंचा, जहां राजेश को फटकार लगाई गई। सितंबर 2010 में यह तय हुआ कि राजेश अनुपमा को हर माह 20 हजार रुपये खर्च के रूप में देगा। एक महीने तक भुगतान हुआ, लेकिन इसके बाद इसी मुद्दे पर विवाद बढ़ गया।
17 अक्टूबर 2010 को हुए झगड़े ने खौफनाक मोड़ ले लिया और राजेश ने अनुपमा की बेरहमी से हत्या कर दी। हत्या के समय बच्चों को दूसरे कमरे में सुला दिया गया। अगली सुबह बच्चों को बताया गया कि उनकी मां नाना के घर चली गई है। बच्चों के सवालों से बचने के लिए वह लैपटॉप पर फर्जी ई-मेल दिखाता रहा और फोन मिलाने की बात को टालता रहा। बच्चों को इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि उनकी मां का शव घर में ही डीप फ्रीजर में रखा हुआ है। राजेश छुट्टियों के बहाने बच्चों को मसूरी घुमाने ले जाता और इसी दौरान शव के टुकड़ों को मालसी डियर पार्क के जंगल में ठिकाने लगाता रहा।
इस बीच अनुपमा के मायके वालों को संदेह हुआ, क्योंकि कई दिनों तक उनकी कोई बात नहीं हो पा रही थी। 11 दिसंबर 2010 को अनुपमा के भाई सिद्धांत ने हरिद्वार निवासी अपने दोस्त माधव पौड़ियाल को देहरादून भेजा। 12 दिसंबर को माधव जब राजेश के घर पहुंचा तो उसने खुद को पासपोर्ट एजेंट बताकर अनुपमा के बारे में पूछा। राजेश ने कहा कि वह दिल्ली गई है। संदेह गहराने पर सिद्धांत स्वयं देहरादून पहुंच गया। तब तक राजेश बच्चों को लेकर विदेश भागने की तैयारी कर चुका था और घर में सामान पैक कर रहा था।
पुलिस ने शक के आधार पर 12 दिसंबर 2010 को राजेश को गिरफ्तार किया। पूछताछ में उसने जो खुलासे किए, उन्हें सुनकर पुलिस भी सन्न रह गई। उसने स्वीकार किया कि हत्या के बाद उसने कटर से शव के 72 टुकड़े किए और उन्हें दो महीने तक डीप फ्रीजर में रखा। निचली अदालत ने वर्ष 2017 में राजेश गुलाटी को दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास और जुर्माने की सजा सुनाई थी, जिसे अब उच्च न्यायालय ने भी सही ठहराया है। वर्तमान में राजेश गुलाटी के दोनों बच्चे अमेरिका में पढ़ाई कर रहे हैं, जबकि यह मामला आज भी समाज के लिए एक भयावह चेतावनी बना हुआ है कि रिश्तों में हिंसा और संवेदनहीनता किस हद तक जा सकती है।





