
सुनील कुमार माथुर
स्वतंत्र लेखक व पत्रकार, जोधपुर (राजस्थान)
कोई भी कार्य जब हम पहली बार आरम्भ करते हैं तो एक बार इस बात का डर रहता है कि कहीं बिगड़ न जाएं। कहीं बिना वजह नुकसान न हो जाए। लेकिन जब आप आत्मविश्वास के साथ व पूरी ईमानदारी व निष्ठा से उसे करते हो तो एक दिन आप देखते हैं कि उस कार्य में आपको उम्मीद से भी अधिक सफलता मिली है और आपका भीतरी दुःख व डर समाप्त हो जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि हमें हर कार्य के लिए प्रयास करते रहना चाहिए और सफलता प्राप्त होते ही ईश्वर का धन्यवाद करना चाहिए। आप जीवन में प्रयास अवश्य कीजिए — लक्ष्य मिलें या अनुभव, दोनों ही अमूल्य हैं।
कोई भी कार्य करें तब हंसते, मुस्कुराते और गुनगुनाते हुए कीजिए, फिर देखिए कि कार्य कितनी तत्परता से पूर्ण होता है। आपको पता भी नहीं चलेगा कि कब समय व्यतीत हो गया। कभी भी उदास मन से कार्य न करें। जब मन में ही निराशा का भाव हो तो सफलता कैसे मिलेगी। इस दुनिया में कोई भी व्यक्ति टेंशन मुक्त नहीं है। हर किसी को किसी न किसी बात को लेकर टेंशन अवश्य है। वह तो भीतर से फूट-फूट कर रो रहा है लेकिन लोक दिखावे के लिए अपने चेहरे पर मुस्कराहट का मुखौटा पहन कर घूम रहा है। आप ही बताइए कि टेंशन किसको कम है? अच्छा या बुरा तो एक भ्रम है — इस जिंदगी का नाम ही “कभी खुशी कभी ग़म” है। कहा भी जाता है कि इंसान का वजन हर बार तौलने से नहीं, कई बार बोलने से भी पता चल जाता है।
हमारी गलती
कभी-कभी हम देखते हैं कि कोई गलती करता है, तब उसे प्रेमपूर्वक बार-बार समझाते हैं कि गलती तुम्हारी है, अतः क्षमा मांग लीजिए। लेकिन वो सज्जन हैं कि आपकी बात पर कोई ध्यान नहीं देते हैं व आपकी बात को हर बार नजरअंदाज कर देते हैं, तो समझो कि गलती उसकी नहीं है, अपितु गलती हमारी ही है कि हमने उसे परखने व पहचानने में ही गलती की है, अन्यथा हमें यह नज़ारा देखने को न मिलता। जब कोई प्यार व स्नेह की भाषा को ही न समझे तो ऐसे लोगों से बातचीत करना ही बेकार है व समय की बर्बादी करना है। अतः जब भी दोस्त बनाएं तब सोच-समझ कर ही बनाएं। भले ही दोस्तों की संख्या कम हो लेकिन जो भी हों वे सब समझदार होने चाहिए, ताकि वक्त पड़ने पर बिना किंतु-परंतु किए आपका साथ दे सकें।
साहित्यकारों का सम्मान के बहाने — उपहास मत कीजिए
पिछले कुछ दिनों से हम व्हाट्सएप पर एक तरह की सूचना पढ़ रहे हैं जिसमें कतिपय लोग साहित्यकारों का सम्मान के बहाने उनसे प्रार्थना पत्र, संक्षिप्त जीवन परिचय एवं आवेदन पत्र के साथ 500 रुपए, 1100 रुपए, 1500 रुपये मांग रहे हैं। तभी साहित्यकार को शील्ड, प्रशस्ति-पत्र देकर सम्मानित किया जाएगा। जो साहित्यकार व्यक्तिगत रूप से उपस्थित नहीं होगा, उन्हें यह सम्मान डाक या कुरियर द्वारा भेजा जाएगा और उसका खर्च भी साहित्यकार को ही देना होगा।
इस तरह के सम्मान समारोह का आयोजन करना एक तरह की दुकानदारी के अलावा कुछ भी नहीं है। साहित्यकारों का सम्मान करने की अगर आपकी हार्दिक इच्छा है, तो आयोजक संस्था अपने यहां के भामाशाहों से सहयोग राशि एकत्रित करें और साहित्यकारों को आमंत्रित करें। उनको आने-जाने का खर्च दें। उनके ठहरने की नि:शुल्क माकूल व्यवस्था करें। इसी प्रकार नि:शुल्क भोजन व नाश्ते की व्यवस्था करें। फिर साहित्यकारों को शील्ड, शाल, श्रीफल, नकद राशि, प्रशस्ति-पत्र आदि-आदि जो भी देना हो वह सह सम्मान दीजिए। लेकिन सम्मान के बहाने साहित्यकारों से शुल्क राशि वसूलना, साहित्यकारों का उपहास उड़ाना ही कहा जा सकता है।
साहित्यकार समाज का दर्पण होता है, जो हर समय सजग रहकर समाज को अपनी लेखनी के जरिए नई दिशा व दशा देने का निस्वार्थ भाव से कार्य करता है। यही वजह है कि साहित्यकार सम्मान के लिए नहीं लिखता है, अपितु सम्मान साहित्यकार के पीछे दौड़ता है। इसलिए साहित्यकारों, साधु-संतों, ब्राह्मणों का कभी भी उपहास नहीं उड़ाना चाहिए। इसका अर्थ यह नहीं है कि हम दूसरों का उपहास उड़ाएं — बल्कि सभी के प्रति सादर आदर भाव रखें।