
⇒ सीएम पोर्टल: शिकायतें ठंडी, कुर्सी गर्म ⇒ जनसमस्याओं का नहीं, अफसरों के आराम का पोर्टल बना सीएम पोर्टल ⇒ सीएम पोर्टल पर फाइलें लटकीं, समाधान गायब ⇒ शिकायतों की नहीं, चुप्पी की सुनवाई कर रहा सीएम पोर्टल ⇒ एल-1 से एल-3 तक घूमती रही फाइलें, निस्तारण नदारद ⇒ सीएम पोर्टल की कहानी : कागज़ों में सक्रिय, हक़ीक़त में निष्क्रिय
(राज शेखर भट्ट)
देहरादून। मुख्यमंत्री समाधान पोर्टल, सूचना के अनुसार एक ऐसी वेबसाईट है, जहां से आम जनमानस की समस्याओं का समाधान दिया जाता है। अब जब सूचना के अनुसार है तो जरूरी नहीं है कि प्रत्येक समस्या का समाधान दिया जाता है। यह भी हो सकता है कि प्रार्थी को लटकाया जाता हो, घुमाया-फिराया जाता हो और समस्या की फाईल को इधर से उधर टहलाया जाता हो। एक अधिकारी की समाधान करने की समयसीमा पूरी हो जाय, तब भी अधिकारी को कोई मतलब नहीं कि इस समस्या का समधान दिया जाना है। यदि समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा हो तो अधिकारी का कर्तव्य है कि इस पत्र को दूसरे अधिकारी को अग्रेषित/हस्तांतरित कर दिया जाय, लेकिन इस विभाग में या सीएम पोर्टल में ऐसा नहीं होता है।
बहरहाल, अपने समाचार की बात करें तो कुछ ऐसा ही मामला वर्तमान में चल रहा है। हमारे सभी पाठकों और सम्पादकों को पता है कि सूचना एवं लोक संपर्क विभाग में मनमर्जी से विज्ञापन बांटे जा रहे हैं। सबसे बड़ी गर्व की बात तो यह है कि यह सब मुख्यमंत्री की स्वीकृति के अनुसार हो रहा है। इसी संबंध में 26 अगस्त 2025 और 29 अगस्त 2025 को दो प्रार्थना पत्र/शिकायत पत्र भेजे गये थे। केवल इतनी अभिलाषा थी कि शायद सीएम पोर्टल/सूचना विभाग से प्रति उत्तर प्राप्त होगा और शिकायत का समाधान त्वरित गति से होगा। लेकिन यहां भी गंगा उल्टी बह रही है, सीएम पोर्टल से समाधान नहीं बल्कि अधिकारियों को आराम दिया जा रहा है।
वर्ष 2025 के उक्त दो मामलों में भी सीएम पोर्टल के अधिकारियों द्वारा कुछ ऐसा ही किया जा रहा है। 26 अगस्त और 29 अगस्त को जमा की गयी दोनों शिकायतों को नियमानुसार सबसे पहले एल-1 अधिकारी को भेजा गया। एल-1 अधिकारी का पद वर्तमान जिला सूचना अधिकारी बद्री चन्द को दिया गया था। उन्होंने नियमों के साथ निष्ठापूर्वक अपना कार्य किया, दोनों शिकायती पत्रों को देखा और अपनी टिप्पणी (संबंधित कार्यवाही मुख्यालय स्तर पर की जाती है, जिसके फलस्वरूप शिकायत पर निस्तारण की कार्यवाही के अनुरोध के साथ मुख्यालय को हस्तांतरित की जा रही है) के साथ दोनों पत्रों को एल-2 अधिकारी को हस्तांतरित कर दिया।
मुख्यमंत्री समाधान पोर्टल में एल-2 अधिकारी का पद कलम सिंह चौहान के पास है, जो कि सूचना निदेशालय में संयुक्त निदेशक के पद पर हैं। महोदय की कार्यनिष्ठा और कार्यप्रणाली को देखकर मुझे अत्यंत आश्चर्य की अनुभूति हुयी। क्योंकि इन्होंने उक्त दोनों शिकायतों को 1 महीने तक लटकाकर रखा और कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी। यदि एल-2 अधिकारी को यह कार्य करना ही नहीं था, तो एल-3 अधिकारी को हस्तांतरित कर देना चाहिए था, लेकिन नहीं किया। दूसरी ओर न ही सीएम पोर्टल को इस बात की कोई खबर की एल-2 अधिकारी ने दो शिकायतों पर एक महीने से न कोई कार्यवाही की है और न ही कोई टिप्पणी की है, जबकि निस्तारण की समयसीमा केवल सात दिन की रखी गयी है।
बहरहाल, शिकायत निस्तारण में जब अधिकारी के स्तर से शून्य का भाव बना रहा, तो प्रार्थी द्वारा 1905 पर कॉल की गयी। 1905 से जवाब प्राप्त हुआ कि हो सकता है कि एल-2 अधिकारी किसी अन्य कार्य में व्यस्त होंगे, आपकी शिकायत एल-3 अधिकारी को हस्तांतरित की जाती है। जब 1905 पर पूछा गया कि ‘‘क्या सारे अधिकारी शिकायत निस्तारण के लिए एक-एक महीना लटकाकर रखते हैं।’’ 1905 का जवाब था कि ‘‘नहीं इनको 7 दिन की समयसीमा दी गयी है’। प्रार्थी ने कहा, ‘‘यदि अधिकारियों ने निस्तारण करने के बजाय फाईल लटकाकर रखी तो कोई सजा या जुर्माना है’’ तो 1905 ने चुप्पी साध ली। यह है सीएम पोर्टल का पावन धाम और उस धाम में समस्याओं का निस्तारण करने वाले पुजारियों की पावन गाथा।
मुख्यमंत्री समाधान पोर्टल के द्वारा 28 सितम्बर 2025 को दोनों फाईलें एल-3 अधिकारी को समाधान के लिए सौंप दी गयी। एल-3 अधिकारी, सूचना निदेशालय में अपर निदेशक के पद पर हैं और जिनका नाम आशिष कुमार त्रिपाठी है। फाईल अभी 1905 वेबसाईट पर ही है, एल-3 अधिकारी ने न ही अब तक शिकायत निस्तारण से संबंधित कोई कार्य किया और न ही कोई टिप्पणी दी कि क्या कार्यवाही हो रही है। जबकि 5 अक्टूबर 2025 को एल-3 अधिकारी के 7 दिनों की समयसीमा पूर्ण होती है तो 6 अक्टूबर 2025 को दुबारा 1905 पर कॉल की गयी। 1905 के द्वारा वही पुरानी रटी-रटाई बात की गयी और कहा गया कि ‘‘हम एल-3 अधिकारी को आपकी फाईल पर दुबारा पिन करते हैं।’’ उसी दिन 1905 द्वारा मेरी आईडी से एक टिप्पणी की गयी और आज 10 अक्टूबर 2025 तक भी वो दोनों फाईलें वेब पर नुमाईश की भांति टांगकर रखी हुयी हैं।
सभी अधिकारी महानुभावों से मेरा निवेदन है कि यदि निस्तारण नहीं करना है तो बोल दो, कह दो, वेब पर टिप्पणी कर दो, प्रार्थी को लटकाकर रखने का क्या मतलब? यदि यह समाचार पढ़कर होशा फाख्ता हो जायें तो कृपया दोनों फाईलों की ओर अपना ध्यान जरूर दें। इसी स्थिति को देखकर तो कहा गया है कि…
काम से ज्यादा हो जहां आराम, वह है सीएम पोर्टल का पावन धाम।