
(मनमोहन आहूजा)
देहरादून। उत्तराखण्ड में सूचना एवं लोक संपर्क विभाग के कामकाज को लेकर राज्य के पत्रकार और मीडिया विशेषज्ञ असंतोष जता रहे हैं। उनका आरोप है कि विभाग सरकारी विज्ञापन और सहयोग केवल चुनिंदा मीडिया हाउस और पत्रकारों तक सीमित कर रहा है, जबकि बाकी पत्रकारों और अखबारों को नजरअंदाज किया जा रहा है। सूत्रों के अनुसार, विभाग के इस रवैये से पारदर्शिता और निष्पक्षता पर सवाल उठ रहे हैं।
कई पत्रकारों ने यह भी कहा कि सूचना अधिकार (RTI) के माध्यम से भी जरूरी जानकारी नहीं मिल पाती, और विभाग कई मामलों में सूचनाओं को विलंबित या छुपाने की रणनीति अपनाता है। इससे छोटे और मध्यम पत्रकारों के पेशेवर कामकाज और करियर पर गंभीर असर पड़ रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह केवल व्यक्तिगत लाभ तक सीमित मामला नहीं है, बल्कि राजनीतिक हस्तक्षेप और सूचना नियंत्रण का भी संकेत है।
सरकारी विज्ञापन और जानकारी कुछ “चुनिंदा” मीडिया हाउस तक पहुंच रही हैं, जबकि अन्य पत्रकारों को अनदेखा किया जा रहा है। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि क्या मुख्यमंत्री को इस पक्षपात की जानकारी है। यदि उन्हें पता है, तो यह नैतिक और प्रशासनिक सवाल खड़ा करता है। वहीं, यदि मुख्यमंत्री अनजान हैं, तो यह विभाग की गैर-जवाबदेही और स्वेच्छा को उजागर करता है। अभी यह देखना बाकी है कि सरकार और सूचना विभाग इस मुद्दे पर किस तरह प्रतिक्रिया देंगे। पत्रकार और मीडिया विशेषज्ञ इस पर निगाह रखे हुए हैं, क्योंकि इस रवैये का असर सीधे राज्य की पत्रकारिता और लोकतांत्रिक सूचना प्रणाली पर पड़ता है।