
तीन माह में आवेदन गायब, निजी दर को विभागीय दर में बदल दिया
जून 2025 में निजी दर पर विज्ञापन प्राप्ति के लिए आवेदन दिया गया था, जिस पर 31 अगस्त तक कोई कार्यवाही नहीं की गयी। इस संबंध में 4 सितंबर को डीजी से मुलाकात की गई, लेकिन पता चला कि विभाग के पास आवेदन उपलब्ध नहीं था, आखिर कहां गया आवेदन। इसके बाद आवेदन पुनः मंगवाया गया और 24 सितंबर को इसे विभागीय दर में बदलकर विज्ञापन जारी कर दिया गया।
(सीएल चौधरी)
देहरादून। उत्तराखण्ड में सूचना एवं लोक संपर्क विभाग के कामकाज को लेकर राज्य के पत्रकारों में असंतोष बढ़ता जा रहा है। पत्रकारों का आरोप है कि विभाग सरकारी विज्ञापन और सहयोग केवल कुछ चुनिंदा मीडिया हाउस और पत्रकारों तक सीमित कर रहा है, जबकि अन्य पत्रकार और अखबार पूरी तरह नजरअंदाज किए जा रहे हैं। सूत्रों ने बताया कि सूचना विभाग कई मामलों में सूचना अधिकार (RTI) के तहत मांगी गई जानकारी देने में विलंब करता है या इसे छुपाने की कोशिश करता है। इससे छोटे और मध्यम मीडिया हाउस के पत्रकार अपने पेशेवर कामकाज में बाधाओं का सामना कर रहे हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह मामला सिर्फ विज्ञापन वितरण तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें राजनीतिक हस्तक्षेप और सूचना पर नियंत्रण का भी संकेत है। सरकारी संदेश और विज्ञापन केवल कुछ “पसंदीदा” मीडिया तक ही पहुँच रहे हैं, जबकि बाकी पत्रकारों को अनदेखा किया जा रहा है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि क्या मुख्यमंत्री को इस पक्षपात की जानकारी है। यदि उन्हें पता है, तो यह नैतिक और प्रशासनिक सवाल खड़ा करता है। वहीं, अगर मुख्यमंत्री अनजान हैं, तो यह विभाग की गैर-जवाबदेही को उजागर करता है।
अब यह देखना बाकी है कि सरकार और सूचना विभाग इस मामले पर क्या कदम उठाते हैं। पत्रकार और मीडिया विशेषज्ञ इस पर नजर बनाए हुए हैं, क्योंकि इस रवैये का असर सीधे राज्य की पत्रकारिता और लोकतांत्रिक सूचना प्रणाली पर पड़ता है।