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यूपीसीएल द्वारा बिजली दरों में 16.23% बढ़ोतरी का प्रस्ताव हितधारकों के विरोध के बाद सवालों के घेरे में है। बिजली चोरी और लाइन लॉस का स्पष्ट ब्योरा दिए बिना टैरिफ बढ़ाने की यह कवायद उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त बोझ डालने के रूप में देखी जा रही है।
- यूपीसीएल के 16.23% टैरिफ बढ़ोतरी प्रस्ताव पर हितधारकों का विरोध
- बिजली चोरी व लाइन लॉस पर सवाल, उपभोक्ताओं पर बढ़ेगा भार
- रेवेन्यू बढ़ा, पावर परचेज लागत घटी—फिर भी क्यों बढ़ रहे बिजली दर?
- टैरिफ बढ़ाने से पहले चोरी व लाइन हानि का पूरा ब्यौरा दें: विशेषज्ञ
देहरादून। उत्तराखंड पावर कारपोरेशन लिमिटेड (यूपीसीएल) द्वारा बिजली दरों में 16.23 प्रतिशत बढ़ाने का प्रस्ताव रखते ही उपभोक्ताओं और हितधारकों में नाराज़गी की लहर दौड़ पड़ी है। करीब एक हजार करोड़ रुपये के नुकसान की भरपाई के लिए टैरिफ बढ़ाने के इस कदम पर सवाल उठाए जा रहे हैं कि आखिर बिजली चोरी और लाइन लॉस जैसे मूल कारणों को दूर किए बिना यह बोझ आम उपभोक्ता पर क्यों डाला जा रहा है। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यह कोई पहली घटना नहीं है; पिछले वित्तीय वर्ष में भी यूपीसीएल ने 12 प्रतिशत टैरिफ बढ़ोतरी का प्रस्ताव रखा था, जिसके समय भी हितधारकों ने यही मुद्दे उठाए थे कि बिजली की चोरी रोककर ही घाटे को कम किया जाना चाहिए।
नए वित्तीय वर्ष के लिए टैरिफ निर्धारण का अंतिम फैसला उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग की आगामी सुनवाई के बाद होगा, लेकिन उससे पहले हुए सार्वजनिक विचार-विमर्श में कई हितधारकों ने गंभीर सवाल खड़े किए। पिछले वर्ष की सुनवाई के दौरान एसपी चौहान, वीरेंद्र सिंह रावत और टीका सिंह सैनी ने जोर देकर कहा था कि बिजली चोरी रोकना प्राथमिकता होनी चाहिए। इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के राकेश भाटिया ने भी स्पष्ट रूप से कहा कि हरिद्वार, उधम सिंह नगर, लक्सर और रुड़की जैसे जिलों में यूपीसीएल बिजली चोरी रोकने में असफल रहा है, जिसके कारण लाइन लॉस बढ़ता जा रहा है और इसका बोझ सीधे उपभोक्ताओं पर पड़ रहा है।
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हितधारकों का यह भी कहना था कि यूपीसीएल अपनी रिपोर्ट में सिर्फ कुल नुकसान का आंकड़ा बताता है, जबकि इसमें बिजली चोरी और तकनीकी हानियों का प्रतिशत क्या है, यह कहीं स्पष्ट नहीं किया जाता। यह अस्पष्टता उपभोक्ताओं पर अनुचित बोझ डालने जैसा है। कई विशेषज्ञों ने जोर देकर कहा कि टैरिफ बढ़ाने से पहले यूपीसीएल को लाइन लॉस में शामिल चोरी का वास्तविक हिस्सा पारदर्शिता के साथ सार्वजनिक करना चाहिए, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि नुकसान कितनी हद तक रोकथाम योग्य था।
रेवेन्यू और वित्तीय प्रदर्शन पर भी सवाल उठाए गए। हितधारक शकील सिद्दीकी ने बताया कि सब-स्टेशनों के बेहतर मूल्यांकन और क्षमता बढ़ाने से नुकसान को कम किया जा सकता है। दिनेश मुद्गल ने कहा कि यूपीसीएल के 1341.96 करोड़ रुपये के रेवेन्यू गैप की भरपाई सिर्फ टैरिफ बढ़ाकर करना उचित नहीं है। उनका तर्क था कि कॉरपोरेशन की वित्तीय प्रगति के विश्लेषण में रेवेन्यू जेनरेशन लगातार बढ़ा है और पावर परचेज कॉस्ट घटी है। ऐसे में उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त बोझ डालना न्यायसंगत नहीं माना जा सकता।
इसके साथ ही हितधारकों का सुझाव था कि टैरिफ बढ़ाने की जगह यूपीसीएल को अपने संचालन स्तर पर सुधार करने चाहिए—जैसे बकाया वसूली तेज करना, वित्तीय प्रबंधन सुधारना और चोरी पर कड़ी कार्रवाई करना। हिमाचल प्रदेश में बिजली पर मिलने वाली सब्सिडी का उदाहरण देते हुए महावीर प्रसाद भट्ट ने कहा कि उत्तराखंड की बिजली दरें पड़ोसी राज्यों के अनुरूप होनी चाहिए, ताकि उपभोक्ताओं पर लगातार बढ़ता भार कम हो सके।
उधर, यूपीसीएल का अपना पक्ष यह रहा कि बिजली चोरी रोकने के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं। पिछली सुनवाई में कॉरपोरेशन ने बताया था कि विजिलेंस रेड बढ़ाई जा रही हैं, खराब मीटर बदले जा रहे हैं, लो-टेंशन एरियल बंडल्ड केबल बिछाने का काम जारी है और बिलिंग सुधार के लिए एंड्रॉयड आधारित बिलिंग प्रणाली शुरू की गई है। हालांकि इन सभी प्रयासों का प्रभाव अब तक उपभोक्ताओं को दिखाई नहीं दे रहा है, क्योंकि लाइन लॉस और चोरी का अनुपात अभी भी गंभीर स्तर पर बना हुआ है।
बढ़ती बिजली दरों को लेकर उपभोक्ताओं में चिंता बढ़ती जा रही है। यह मुद्दा अब केवल वित्तीय नहीं, बल्कि पारदर्शिता और जवाबदेही का भी हो गया है। आगामी सुनवाई में आयोग क्या फैसला करता है, यह प्रदेश के लाखों बिजली उपभोक्ताओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण होगा।





