भ्रम

वीरेंद्र बहादुर सिंह
“डा. साहब, आप मुझे अपने क्लिनिक पर ले जाने से क्यों मना कर रहे हैं?” अपने डाक्टर पति जगदीश सक्सेना को टाई पहनाते हुए इशानी ने थोड़ा प्यार जताते हुए कहा। अभी दो महीने पहले ही तो इशानी का डा. जगदीश सक्सेना के साथ ब्याह हुआ था। शादी के बाद रीति-रिवाज और स्विट्जरलैंड में हनीमून, इसमें दो महीने कब बीत गए, इशानी को पता ही नहीं चला।
सगाई के बाद एक बार इशानी कुछ समय के लिए डा.जगदीश की क्लिनिक पर गई थी। पर उससे इशानी को संतोष नही था। उसके पतिदेव किस तरह काम करते हैं, यह देखने-जानने की उसकी बहुत इच्छा थी। वह सोचती थी कि उनके बैठने की जगह कंफर्टेबल होनी चाहिए, वह उनके घंटों काम करने के दौरान उनकी चीजों का ख्याल रखे, वह हेल्दी रहें, उनके लिए हेल्दी फूड बना कर खुद अपने हाथों से खिलाए।
इस तरह के छोटे-बड़े सपने हर नववधू की तरह इशानी की आंखों में भी थे। उसके मन में अपने पति के लिए अथाह प्यार था। इसीलिए वह पति से मीठी फरियाद कर रही थी। पर जगदीश ने उसका हाथ अपने हाथ में ले कर प्यार से कहा, “प्लीज इशानी, कभी क्लीनिक चलने की जिद मत करना। शादी की वजह से काफी दिनों तक छुट्टी पर रहा। तुम तो जानती ही हो कि इतने दिनों तक क्लीनिक ट्रेनी डाक्टर के भरोसे रहा। पहले तो मुझे पेंडिंग काम निपटाने हैं। उसके बाद तुम्हारी पसंद के अनुसार क्लिनिक का रिनोवेशन भी करवाना है। तब तुम्हें जरूर क्लिनिक ले चलूंगा। पर तब तक क्लिनिक चलने की जिद मत करना। वैसे भी मैं अभी बिजी रहूंगा। तुम वहां चल कर अकेली ऊबोगी। इसलिए तुम अभी घर में ही रहो। वैसे भी अभी शहर में वायरल बहुत फैला है। मैं नहीं चाहता की क्लिनिक आ कर कहीं तुम उसके लपेटे में आ जाओ। डार्लिंग तुम घर में रहो और सेफ रहो। चलो मेरा मोबाइल दो और मैं फटाफट क्लिनिक के लिए निकलूं।”
“तुम भी वायरल से बचना।” इशानी ने चिंतित स्वर में कहा।
एकाकी जीवन में इशानी जैसी प्यार करने वाली पत्नी पा कर खुश डा.जगदीश सक्सेना अपनी स्विफ्ट डिजायर ले कर क्लिनिक के लिए निकल पड़े। पति के जाने के बाद इशानी सोच रही थी कि शादी और हनीमून का खर्च के बाद इतने बड़े क्लिनिक के रिनोवेशन का खर्च की व्यवस्था कहां से होगी? रात को उसने यह बात पति से कही तो डाक्टर साहब ने कहा, “सब हो जाएगा डार्लिंग। थोड़े ज्यादा ऑपरेशन करने पड़ेंगे बस। तुम यह सब छोड़ो, यह बताओ कि यह डायमंड रिंग किस अंगुली में पहनाऊं?”
“डायमंड रिंग?”
“हम शापिंग करने गए थे तो अच्छी लग गई थी, इसलिए ले आया।”
इशानी ने प्यार से अपना सिर पति के सीने पर रख दिया। उसका सवाल हवा में उड़ गया और उस सीधी-सादी लड़की को भी अपने सवाल का ख्याल न रहा।
इशानी इस बात को भूल गई। समय जैसे पंख लगा कर उड़ रहा था। छह महीना बाद एक दिन डा.जगदीश ने इशानी को रीनोवेशन के बारे में अपनी टीम से चर्चा करने के लिए अस्पताल में बुलाया। जगदीश क्लिनिक चला गया तो अपनी शंका को दूर करने के लिए इशानी ने प्रेग्नेंसी चेक करने के लिए मेडिकल किट का उपयोग किया। उसमें आई पाॅजिटिव रिपोर्ट को बताने के लिए इशानी खुशी-खुशी घर से निकली। वह अस्पताल पहुंची तो जगदीश ऑपरेशन में व्यस्त था। वह लगभग दो घंटे तक पति की राह देखती बैठी रही। ऑपरेशन थिएटर के बाहर पड़ी बेंच पर बैठे-बैठे वह देखती रही कि 25 से 30 मिनट के अंतर पर युवतियां अंदर जातीं और ऑपरेशन करा कर बाहर आ जातीं। ऑपरेशन किस चीज का हो रहा था, यह इशानी की समझ में नहीं आ रहा था।
इशानी के ठीक सामने वाली बेंच पर सास-बहू की एक जोड़ी बैठी थी। घबराई और हाल-बेहाल बहू सास से गिड़गिड़ा रही थी कि वह उसके गर्भ में पल रही बच्ची की हत्या न कराए। सास ने आंख दिखा कर उसे चुप करा दिया था।
तब तक उस औरत का नंबर आ गया तो नर्स उसका हाथ पकड़ कर ऑपरेशन थिएटर के अंदर ले गई। करीब आधे घंटे बाद वह अर्ध बेहोशी की हालत में भी रोते हुए स्ट्रेचर पर बाहर आई। थोड़ी देर में डा.जगदीश बाहर आए। उन्होंने इशानी के बारे में पूछा, अस्पताल तलाश लिया, पर इशानी उन्हें कहीं नहीं मिली। इशानी का फोन भी स्विच आफ था। जगदीश ने होशियारी के साथ अपनी ससुराल फोन कर के पता कर लिया कि इशानी वहां तो नहीं है। दो-तीन ऑपरेशन और थे, डा.जगदीश उन्हें निपटा कर घर आए। घल पर ताला लगा था। अपनी चाभी से उन्होंने दरवाजा खोला। अंदर घुसते ही विशाल ड्राइंगरूम में सामने ही तिपाई पर कांच के पेपरवेट के नीचे एक चिट्ठी दबा कर रखी थी। जगदीश ने जल्दी से उठा कर उसे पढ़ना शुरू किया।
“प्रिय लिख सकूं, अब यह संभव नहीं है, इसलिए मात्र जगदीश,
आज क्लिनिक में आ कर मैं ने देखा कि सफेद एप्रिन का आवरण ओढ़ कर आप किस तरह का काला काम कर रहे हैं। आप का केवल नाम ही जगदीश है, आप बिलकुल जगत के ईश नहीं हैं, क्योंकि आप किसी जीव की गर्भ में ही हत्या कर देते हैं। आप को ऐसा करने का हक किसने दिया? उस अजन्मे जीव का अपराध क्या है? मात्र यही कि वह लड़का नहीं, लड़की है? उसकी सासों की गति रोकने वाले आप कौन होते हैं? इस तरह कि काम कर के जमा किया गया पैसा मुझे नहीं चाहिए। अब मुझे पता चला कि आप मुझे क्लिनिक आने से क्यों रोक रहे थे। मुझे संक्रमण न लग जाए, यह बात कहने के पीछे आप का प्यार नहीं स्वार्थ था। मेरा वह भ्रम आज टूट गया।
“हां, एक बात तो कहना मैं भूल ही गई। मेरे भी पेट में आप का अंश आ गया है। रीनोवेशन की चर्चा के साथ यह समाचार मैं तुम्हे रूबरू देने और तुम्हारे चेहरे पर आने वाली अवर्णनीय खुशी देखने वहां आई थी। पर मुझे पता नहीं था कि जिसे मैं अपना सर्वस्व मानती थी, मेरा वह पति इस तरह का काम करता है। आप में और एक हत्यारे में आखिर अंतर ही क्या है? वहां बिताए दो-ढ़ाई घंटे मेरी जिंदगी के सब से खराब घंटे थे। मुझे तुम्हारे गहनों, महंगे कपड़ों या इस विशाल कोठी का जरा भी मोह नहीं है। मैं यह सब छोड़ कर जा रही हूं। मुझे खोजने की कोशिश भी मत करना।
मेरे पेट में अगर लड़की हुई तो? उसकी भी आप इसी तरह हत्या कर दो तो? इसलिए मैं अपने अंश को ले कर ऐसी जगह जा रही हूं, जहां उस पर आप जैसे हत्यारे की परछाई तक न पड़े।
गुडबाय फार एवर।
आठ महीने से रास्ते पर भटकते हुए अब सही रास्ते पल आने वाली इशानी।”
उस चिट्ठी को पढ़ कर डा.जगदीश फफकफफक कर रोने लगे। इशानी द्वारा उतार कर टेबल पर रखे गए गहनों की चमक जगदीश के मुंह पर कालिख पोत रही थी। थोड़ी देर में स्वस्थ हो कर उन्होंने पुलिस को फोन लगाया।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
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From »वीरेंद्र बहादुर सिंहलेखक एवं कविAddress »जेड-436-ए, सेक्टर-12, नोएडा-201301 (उत्तर प्रदेश) | मो : 8368681336Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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