कविता में भोजपुरी तड़का : आलू की असलियत कि इंसानी फितरत

कविता में भोजपुरी तड़का : आलू की असलियत कि इंसानी फितरत, बाकी ललका त ललके ह, चोखा चटनी अचार भुजिया तरकारी, कुछहू बनाईं नीक लागेला, एही से ई ललका हाथों हाथ बिकेला, अब एमे आलू के का दोष? ऊ का जाने ललका उजरका आलू त आलू ह… नवाब मंजूर की कलम से…
आलू जवन लाल हो जाला
कमाल हो जाला
एकदमे गुलाल हो जाला
फूल के गुलाब हो जाला
सबका ईहे सोहाला!
उजरका ना भाला
का त ई भसभसवा हअ
सब्जी तरकारी ठीक ना होला
टाइट लागेला….
स्वाद ना बुझाए!
तनी चोखवे ठीक लागेला?
बस…
बाकी ललका त ललके ह
चोखा चटनी अचार भुजिया तरकारी
कुछहू बनाईं नीक लागेला
एहीसे ई ललका हाथों हाथ बिकेला
अब एमे आलू के का दोष?
ऊ का जाने ललका उजरका
आलू त आलू ह
देखे के नजरिया आपन आपन
हमनी के लागे बेजाए चाहे निमन !
इहे सच्चाई बा
बाकी सब मोह-माया बा !
का ?…
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